परमपूज्य डॉ. विश्वामित्र जी महाराज
साधक को एक ही मंत्र व एक ही गुरु में निष्ठा होनी चाहिये !
गुरु व मंत्र पर अटूट विश्वास हो उसे विचलित नहीं होना चाहिये !
एक स्थान से मांग पूरी नहीं हुई तुरंत दूसरी जगहमत्था टेकने चले गये ; यह बात नहीं होनी चाहिये !
इधर उधर भटकने वाला कही का नहीं होता !
एक बार स्वामी विवेकानंद बाबरी बाबा के आश्रम चले गये! बाबरी बाबा की प्रसिद्धी थी कि ये बिना खाये भक्ति करते है दिन भर साधना में बिताते है !
विवेकानंद ने सोचा कि यह गुरु तो बहुत अच्छा है,
मेरा गुरु तो दिन में दो बार खाता है ! मेरा गुरु नीचा है बाबरी बाबा तो बहुत ऊँचा है
विश्वास डावांडोल हो गया ; आँखे बंद कर के बैठ गये !
जब आँखे खोली तो क्या देखा कि उनके गुरु स्वामी रामकृष्णपरमहंस उनके सामने खड़े है ; बोले –
रे मूर्ख, तुझे इन्सान बनाने में मैं कंगाल हो गया पर तेरी कंगाली नहीं गई !
स्वामी विवेकानंद को अपने किये पर सोच कर बहुत पछतावा हुआ ! गुरु के चरणों पर गिर गये क्षमा मांगी और कालान्तर में आध्यात्मिक ऊचाई पर पहुंचे!
साधकजनों,
स्वामी जी महाराज जी के परिवार का सदस्य भी एकनिष्ठ होना चाहिये!
अपने मन्त्र एवं गुरु पर विश्वास सजीव हो, इस का प्रयत्न कीजियेगा !