प्रारब्ध सार

डॉ गौतम चैटर्जी

जब आत्मा शरीर तत्व को प्राप्त करता है उसको प्रारब्ध भी मिलते हैं।

भाग्य की यात्रा और कुछ नहीं बल्कि तपिश सहना है, जैसे सोना जब गर्म किया जाता है तब उसकी चमक व निखार उभरता है।

यह तप व राम नाम आराध्य तपस्या भाग्य की एक सम्पूर्ण यात्रा में परिवर्तित हो जाती है, जहाँ हम त्याग की तपस्या व माया के निवारण का उत्सव मनाते हैं।

जीवन में बहुत दुख दर्द पीडा व प्रायश्चित होता है पर वे ते केवल शरीर तत्व की स्मृतियाँ हैं, जैसे आत्म तत्व का उत्थान होता है, गहन राम नाम तप द्वारा।

यह ताप स्वयं के जला कर पका कर, दूसरों की सेवा व आरोग्यता प्रदान करने हेतु होती है क्योंकि राम नाम की तपस्या में सभी को लकड़ी बनना है और स्वयं को जला कर दूसरों को गर्माहट पहुँचानी है।

राम , आत्मानन्द की प्रकृति है, शरीर तत्व श्रीनादेश्वर से गुज़रता है। प्रारब्ध तो उसकी लीला है। रामममममममममममममममममममममम

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