बथुआ एक खरपतवार वनस्पति होते हुए भी सर्वोत्तम शाक अथवा साग है.
यह वनस्पति खरीफ की फसलों जैसे गेहूं, चना की फसल के बीच, सर्दियों में उगती है.
ये इतनी सुलभ और सर्वत्र पैदा होने वाली वनस्पति है जिसकी बहुत ही कम जगहों में खेती की जाती है.
यदि अन्य शाकों जैसे पालक, सरसों इत्यादि से इसके पोषक तत्वों और औषधीय गुणों की तुलना की जाए
तो बथुआ 21 ही निकलेगा 19 नहीं.
बथुआ की तासीर भी ऐसी है कि इसे हर कोई उपयोग कर सकता है.
आईये जानते हैं इससे मिलने वाले फायदे लाभ और इसके पोषक तत्वों व औषधीय गुणों के बारे में…
बथुआ – परिचय पहचान
बथुआ को बाथरो, बतुया, बाथू, वास्तुक, बेतुया, वेतोशाक, चाकवत, चकवत, टांको,
क्षारपत्र, चीलो, चिल्लीशाक, परुपूकिरै, विलिय चिल्लिके, सरमक, सलमह, कतफ, इत्यादि अन्य नामों से भी जाना जाता हैं.
इसका english name: Lamb’s quarters, और वानस्पतिक नाम (botanical name) Chenopodium album होता है.
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इस post के चित्रों से बथुआ का परिचय सुगमता से किया जा सकता है.
इसकी श्वेत, हरी और लाल-हरी तीन मुख्य किस्में पायी जाती हैं.
पोषक तत्वों का भण्डार
बेशक, बथुआ का शाक पोषक तत्वों का भण्डार होता है.
कई तत्व तो पालक के शाक से भी काफी अधिक मात्रा में मिलते हैं.
एक कप बथुए में लगभग तीन दिन का विटामिन A,
11 दिन का विटामिन K
और पूरे दिन भर से अधिक का विटामिन C मिल जाता है.
एक कप (180 ग्राम) कटे हुए (chopped) बथुए में हमारी नित्य ज़रूरत का
विटामिन A 281%,
C विटामिन 111%,
विटामिन K 1112%,
E विटामिन 17%, और
Riboflavin 28% तक मिलता है.
मिनरल्स भी खूब प्रचुरता में मिलते हैं.
इसमें रोजाना की ज़रूरत का
कैल्शियम 46%,
मैंगनीज 47%,
कॉपर 18%,
पोटैशियम 15%,
मैग्नीशियम 10% और
आयरन 7% तक मिलता है.
फाइबर की मात्रा भी 15% रहती है.
बथुआ खाने के फायदे – शोध आधारित औषधीय गुण
यद्यपि विश्व की कई सभ्यतायें और आयुर्वेद बथुआ के उपयोग को कई रोगों से बचाने वाला मानते हैं,
लेकिन इस पर हुए वैज्ञानिक शोध अभी कम ही है.
बेहतरीन बात यह है कि इन सब शोधों के परिणाम अति उत्साहवर्धक रहे हैं.
इसे ब्लड प्रेशर, पेट के अलसर व ह्रदय रोग ठीक करने वाला,
कृमि व बैक्टीरिया नाशक, दर्द एवं सूजन निवारक, वायरल व एलर्जी से बचाने वाला पाया गया है. (1, 2, 3)
शोधों के अनुसार इसका उपयोग कैंसर कोशिकाओं, विशेषकर breast कैंसर को पनपने से रोकता है. (4)
उत्तम एंटी ऑक्सीडेंट होने के कारण बथुआ विषद्रव्यों को भी शरीर में जमा नहीं होने देता.
इसी कारण इसे उत्तम रक्त शोधक भी माना गया है (5)
बथुआ के आयुर्वेदीय गुण
आयुर्वेद में यद्यपि शाकों को निषिद्ध माना गया है, तथापि वास्तुक (बथुआ) गुणों में अन्य सागों से कई गुणा बेहतर है.
इसका का साग क्षारयुक्त (rich in potassium) स्वादिष्ट,
अग्निदीपक (appetite excitanat), पाचक (digestive), लघु (easily digestable), शुक्र तथा बल को बढ़ने वाला (tonic),
सारक (free radical scavenger), रक्तपित्त (Gout, rhumatism)
बवासीर (piles), और कृमि (worms) में लाभकारी बताया गया है.
बथुआ को त्रिदोष नाशक भी कहा गया है.
यह पथरी होने से बचाता है.
गठिया, गाउट, यूरिक एसिड व अन्य सूजन इत्यादि जोड़ों के दर्द में लाभकारी है.
गर्मी से बढ़े हुए लीवर को ठीक कर देता है.
बथुआ शरीर को बलवान बनाता है व एक सस्ता सुगम वीर्यवर्धक रसायन भी है.
कैसे करें उपयोग
बथुआ का सब से अधिक उपयोग इसकी शाक सब्जी बना कर किया जाता है.
इसके पूरी और परांठे भी बनाये जाते हैं जो स्वादिष्ट होते हैं
इसको धुली मूंग, अरहर और उड़द की दाल में मिलाकर भी खाया जाता है।
इसका दही में बनाया हुआ रायता भी स्वादिष्ट होता है।
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इसका का उबला हुआ पानी अथवा काढ़ा और सूप भी अति लाभकारी भी होता है और स्वादिष्ट भी.
बथुआ के बीज
इस शाक के बीज भी बेहतरीन माने जाते हैं.
इन्हें अंकुरित कर खाइये, लाभ मिलेंगे.
बथुआ के नुकसान
इसके कोई नुक्सान नहीं होते हैं.
सारशब्द
बथुआ एक बेहद गुणकारी शाक है.
इससे कई व्यंजन बनाए जा सकते हैं.
इसके उपयोग से पौष्टिकता भी पायी जा सकती है और कई रोगों से भी बचा जा सकता है.
सर्दियों के मौसम में किसी भी तरह से बथुआ का सेवन करना अति लाभकारी है।