(रामायण में लंका काण्ड की यह लोकप्रिय कथा राम नाम की महिमा का अनूप प्रमाण है)
लंका पर आक्रमण हेतु समुद्र पर पुल बनाया जा रहा था।
सभी बानर, भालू, लंगूर बढ़ चढ़ कर पुल बनाने मे जुटे थे।
वे मन में राम सिमरते, पानी में पत्थर गिराते और पत्थर तैरने लगते।
प्रभु राम ने भी हाथ बटाना चाहा।
वे भी समुद्र में पत्थर डालने लगे।
लेकिन हरि के छोड़े हुये पत्थर तैरने की बजाय डूब जाते।
ये देख श्रीपति राम बोले-
आप जो पत्थर छोड़ रहे हैं वे तैरने लगते हैं, लेकिन मेरे छोड़े पत्थर डूब रहे हैं।
ऐसा क्यों?
हनुमान जी ने उत्तर दिया-
प्रभु, जिसने आपका नाम लिया वह तो स्वयं भी तरेगा और अन्य को भी तारेगा।
लेकिन जिसे आपने छोड़ दिया, वह भला कैसे तैर सकता है।
यही है नाम की महिमा
श्री रघुबीर प्रताप ते, सिंधु तरे पाषान।
ते मतिमंद जे राम तजि, भजहिं जाइ प्रभु आन।।
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