आर्थराइटिस और यूरिक एसिड की अधिकता से उत्पन्न होने वाले जोड़ों के दर्द असहनीय हो जाते हैं.
आधुनिक इलाज पद्धतियों में केवल दर्द निवारक दवाएं (NSAIDs, steroid) खिलाकर इतिश्री कर दी जाती है
जिनके भयंकर दुष्परिणाम झेलने पड़ते हैं.
इन दवाओं के दुष्परिणाम किडनी रोग, ह्रदय रोग, पाचन क्रिया विकृति व अन्य कई रोगों में परिणित होते हैं.
आयुर्वेद में ऐसी वनौषधियाँ हैं जो इन रोगों का इलाज अथवा उपचार कारगर तरीके से करने में सक्षम हैं.
उनके कोई दुष्परिणाम भी नहीं होते.
आईये जानते हैं एक ऐसे नुस्खे को जो यूरिक एसिड को कम करता है.
दर्द से राहत दिलाता है, साथ ही पाचन क्रिया में सुधार करता है.
जब यूरिक एसिड का स्तर ही सामान्य हो जायेगा तो फिर रोग के उग्र होने का प्रश्न भी नहीं उठेगा…
आर्थराइटिस- औषधि की सामग्री
इस नुस्खे में निम्नलिखित वनौषधियों का समावेश करना होता है:
मेथी बीज
100 ग्राम. मेथी बीज रसोई में उपयोग होने वाला एक सुलभ मसाला है.
इसमें एनाबोलिक होर्मोंस (anabolic hormones) की गतिविधि बढाने की क्षमता रहती है.
ये हॉर्मोन उम्र के बढाव से होने वाले दोषों से हमें बचाते हैं.
अजमोद
50 ग्राम. अजमोद (Trachyspermum roxburghianum) को अजवायन का बड़ा भाई भी बोला जाता है
क्योकि ये दिखने में अजवायन जैसा ही होता है लेकिन बीज थोडा बड़ा होता है.
अजमोद के उपयोग से वायु विकार पर अंकुश लगता है जो सूजन का मुख्य कारण होता है.
दालचीनी
50 ग्राम. दालचीनी एक उत्तम आयुर्वेदिक औषधि है, जिस पर दुनिया भर में कई शोध हुए हैं.
कुछेक शोध मानते है कि इसके उपयोग से RA फैक्टर को भी; जो गठियावात अथवा आर्थराइटिस (Arthritis) का कारक होता है; बदला जा सकता है.
गिलोय सत्व
50 ग्राम. गिलोय अथवा अमृता को आयुर्वेद में त्रिदोषहर बताया गया है.
शोध भी इसे इम्युनिटी बढाने के लिये एक उत्तम रसायन मानते हैं.
आयुर्वेद में वर्णित वनौषधियों में गिलोय के संभवत: सबसे अधिक उपयोग हैं.
इसके उपयोग से भी वात रोग की उग्रता में गजब का सुधार देखा गया है.
काली हरड
150 ग्राम. इसके सेवन से पेट की क्रियाएं सुचारू रहती है क्योकि खराब पेट से ही वायु कुपित होकर जोड़ों के दर्द व सूजन को बढ़ावा देती है.
जब पेट ठीक होगा तो शरीर के अन्य हिस्से भी रोगग्रस्त नहीं होंगे.
हरड के अधपके फल जो बड़े होने से व बीज बनने से पहले तोड़ लिये जाते हैं काली हरड के नाम से जाने जाते हैं.
त्रिकटु
काली मिर्च (Piper nigrum), सौंठ अथवा सूखी अदरक (Zingiber officinale) व पिप्पली (Piper longum) के समभाग मिश्रण को त्रिकटु कहते हैं. 60 ग्राम.
यह दर्द व वायु निवारक तो है ही साथ ही योगवाही भी होता है.
योगवाही का मतलब है ऐसी वास्तु जो अन्य खाद्यों को सुचारू रूप से शरीर में पहुँचाने का काम करे.
यदि हो सके तो इस योग में
30 ग्राम शुद्ध शिलाजीत,
50 ग्राम शुद्ध शलाकी,
25 ग्राम रसौंत, व
50 ग्राम यशद भस्म भी मिला सकते हैं.
शिलाजीत एक उत्तम आणविकपोषण है, शलाकी जोड़ों के लचीलेपन की सुधारक व यशद भस्म (Zinc oxide) एक उत्तम एंटीऑक्सीडेंट.
बनाने की विधि अथवा तरीका
सभी वस्तुओं को मिक्सर ग्राइंडर में महीन पीस कर चूर्ण बना लें.
आपस में मिला कर रख लें.
औषधि तैयार है.
मात्रा व लेने की विधि
इस औषधि का एक चम्मच कुनकुने पानी से दिन में दो बार उपयोग करें.
पहली खुराक खाली पेट लें.
दूसरी रात को सोते समय.
रात की खुराक दूध के साथ भी ले सकते हैं.
लाभ ज़रूर मिलेगा.
आयुर्वेद सेंट्रल में Anabol (एनाबोल) नामक औषधि उपलब्ध है जो इस योग से काफी मिलती जुलती है.
फर्क इतना है कि Anabol की निर्माण में भावना प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है
जिससे औषधि अधिक गुणकारी बन जाती है.
एनाबोल (Anabol) के गुण, धर्म, उपयोग और खरीद सम्बन्धी जानकारी इस लिंक पर देखी जा सकती है.