मोटापे से त्रस्त लोग आजकल के समाज का अभिन्न अंग बन गए हैं. जबकि 30-40 साल पहले तक मोटे आदमी को ढूँढना एक कठिन काम होता था. अधिकतर मोटे लोग यह मानते हैं कि यदि वे घी मक्खन खायेंगे तो उनका मोटापा और बढ़ जायेगा.
1970 का दशक आजकल के रोगों का एक बड़ा मील का पत्थर है. उस दशक के कुछ आधे अधूरे शोधों ने बताया कि घी मक्खन नहीं खाने चाहिए. इन्हें कोलेस्ट्रॉल और दिल के रोग का कारक बताया गया.
डॉक्टरों और आहार विशेषज्ञों के बहुत बड़े तबके नें सबकी ऐसी धारणा बनाई कि मक्खन, घी, का हर चम्मच, तेल की हर बून्द सीधे हमारे ह्रदय में पहुँच कर कोलेस्ट्रॉल जमा कर देती है. हमारी धमनिया सिकुड़ जाती हैं, ब्लॉक भी हो जाती हैं, और लोग हार्ट अटैक का शिकार हो जाते हैं.
घी, मक्खन, तेल के उपयोग पर ऐसी ब्रेक लगा दी गयी जैसे ये खाद्य वस्तु न होकर कोई खतरनाक ज़हर हों.
बीते 30-40 वर्षों की इस भेड़चाल के भंवर में, जनसँख्या का एक बड़ा हिस्सा फंस गया. कोलेस्ट्रॉल और दिल के रोगों में तो कोई लाभ मिला नहीं, उलटे कई और रोग जैसे डायबिटीज, आर्थराइटिस, थाइरॉयड समस्या, मोटापा, ओस्टेओपोरोंसिस इत्यादि इस युग के मुख्य जानलेवा रोगों के रूप में उभर आये.
कैसे खुली पोल
जब भी कोई शोध होते हैं तो उनकी पड़ताल भी होती है.
2010 के शोधों में पिछले शोधों की पड़ताल की गयी. यह अध्ययन उन 347747 लोगों पर किये गए जिन्हें 1970-80 के दशकों के शोधों के आधार पर घी. तेल चर्बी से दूर रहने को कहा गया था.
पुनरावलोकन में पता चला कि घी, तेल, चर्बी जैसी तृप्त वसा और ह्रदय रोग का आपस में कोई सम्बन्ध होता ही नहीं है. ( देखिये 1)
यह भी तथ्य सामने आया कि 1970-80 के कई शोध (जिनमे वसा खाने से ह्रदयरोगों तथा मोटापे का बढ़ना बताया जाता था) बिना किसी सबूत के ही लोकप्रिय बना दिए गए थे.
इसके बाद तो पड़ताल करने की एक होड़ सी लग गई और एक एक कर कई शोधों ने पिछले कई शोधों की हवा निकाल दी.
हाल ही में हुए कई शोधों ने पाया है कि घी, चर्बी, तेल का मोटापे, ह्रदय रोग या डायबिटीज से कोई सम्बन्ध नहीं होता. (देखिये 2)
क्यों गलत थे पिछले शोध
वास्तव में, पुराने शोधों के पीछे कुछ संस्थाओं एवं शोधकर्ताओं की कारगुज़ारी थी.
उन्हें अरबों खरबों का योगदान ऐसी कम्पनियों से मिलता था जिनके हित हमारी सेहत से कहीं अधिक अपने उत्पाद बेचना है। उनका सेहत से कभी भी सरोकार ही नहीं रहा। उनका मकसद केवल ऐसे उत्पाद बनाना है जिससे ग्राहक एक नशेड़ी की तरह उनके उत्पाद बार बार खरीदें; चाहे उन्हें इसके लिए पेस्टिसायड ही क्यों न उपयोग करने पड़ें।
आपको जान कर हैरानी होगी कि कोकाकोला, केलॉग्स, नेसले इत्यादि जैसे अन्य कई; इन शोध संस्थाओं एवं शोधकर्ताओं पर अथाह धन खर्च करते हैं और दुनियाभर की सरकारें सब जानते हुये भी चुप्पी साधे रहती हैं। क्योंकि राजनीतिक पार्टियों को भी बड़ा चंदा इन्हीं कंपनियों से मिलता है।
एक और विशेष पहलू
दुनिया भर के वे वैज्ञानिक जो बड़ी कंपनियों की कारगुजारी से वाकिफ थे, ने एकजुट होकर कई शोध किये. उनके शोधों में पाया गया है कि यदि पिज़्ज़ा पेप्सी का कॉम्बिनेशन लगातार 15 दिन तक लिया जाए तो उसके बाद आपको घर का भोजन अच्छा लगेगा ही नहीं.
हमारे शरीर में कोलेस्ट्रॉल का एक एहम योगदान होता है. कोलेस्ट्राल हमारे दिमाग़ और नरवस प्रणाली का एक अति महत्वपूर्ण एवं मुख्य आधार है, जिसके बिना हम जिन्दा नहीं रह सकते.
उन्होंने पाया कि शरीर की ज़रूरत के लिये कोलेस्ट्रॉल का निर्माण हमारा लिवर स्वयं करता है. ऐसा कभी नहीं होता कि लिवर किसी कोलेस्ट्रॉल युक्त आहार से कोलेस्ट्रॉल निकाल कर हमें दे दे.
ये भी प्रमाणित हो गया है कि घी, मक्खन, तेल युक्त भोजन हमारे शरीर में HDL (अच्छी कोलेस्ट्रोल) को बढाने में सहायक होते है. साथ ही यह सूक्ष्म VLDL (हानिकारक कोलेस्ट्रोल) को बड़ी LDL (जो कि हानिरहित है) में बदलने का काम भी करते है ( देखिये 3, 4).
लाभकारी हैं वसायुक्त आहार
आप कुछ भी खाइए; घी, मक्खन, सरसों, नारियल, मूगफली के तेल, अंडा, मांस, मछली; चिंता की न तो कोई वजह है न ही आधार. शोधों ने यह साबित कर दिया है कि तृप्त वसा से कोई ह्रदय रोग नहीं होता.
यह भी साबित हो गया है कि वसा युक्त आहार सेहत के लिये लाभदयक होते है, जिनके उपयोग से हम डायबिटीज, आर्थराइटिस, थाइरोइड इत्यादि रोगों से बचे रह सकते हैं.
यह भी सिद्ध हो गया है कि वसायुक्त आहार मोटापे का कारण नहीं होता.
मोटापे का मुख्य कारण घी तेल जैसी वसा का कम उपयोग ही है जिस कारण हमारा लिवर प्रत्येक भोजन से उर्जा निकालकर अनावश्यक मोटापे को बढ़ावा देने लग जाता है; तथा जैसे ही कभी कभार हम वसा युक्त खानपान करते हैं तो उसका मुख्य भाग वसा में तब्दील हो जाता है।(5, 6, 7, 8).
एक और चौंकाने वाली सच्चाई
कोलेस्ट्रॉल पर हुए शोधों के चलते, 2015 में, अमेरिका ने कोलेस्ट्रॉल को ह्रदय की सेहत पर प्रभाव डालने वाली लिस्ट में से हटा दिया है. ये तब जाकर हुआ है जब दवा कम्पनियां पहले ही अरबों खरबों की दवाईयां कोलेस्ट्रॉल कण्ट्रोल करने के नाम पर बेच चुकी हैं.
आयुर्वेद में घी मक्खन की महता
हमारे बुज़ुर्ग और गुज़रे समय के कई डॉक्टर घी मक्खन की महता बताते रहे हैं. वे इन्हें सर्वरोगहर टॉनिक और जोड़ों के लिए, पेट के लिए, त्वचा की खुश्की के लिए हितकारी औषधि बताते रहे हैं.
आयुर्वेद में भी मक्खन और घी पर अलग से विवरण उपलब्ध हैं जिन्हें नवनीत वर्ग और घृतवर्ग कहा जाता है. मक्खन घी के गुणों और उपयोगों का स्पष्ट उल्लेख है कि ये वीर्यवर्धक, अग्निवर्धक, समस्त रोगनाशक और अलक्ष्मी (दरिद्रता) नाशक होते हैं.
अभी भी वक्त है
तत्कालीन पीढ़ी के एक बड़े तबके ने शोधों की विश्वसनीयता परखे बिना ही बुजुर्गों और आयुर्वेद की सब नसीहतों को नकार दिया था जो घी मक्खन को बेहतर बताती थी. और वे अब इसका खामियाजा भुगत रहे हैं.
दुनियाभर के लोग घी, मक्खन का उपयोग कर अपनी खोई हुई सेहत को फिर सही करने में जुटे हैं. मोटापा घटने के लिए keto डाइट इसी श्रृंखला की एक कड़ी है. दुनिया भर की कई हस्तियाँ इस मुहीम में जुटी हैं कि पिछली गलतियों को सुधारा जाये और लोगों को फिर से घी, तेल वसा की उपयोगिता से जागरूक किया जाए.
इस पोस्ट का मुख चित्र Kourtney Kardashian का है जो घी तेल खाकर वज़न कम करने की प्रबल प्रचारक हैं.
सारशब्द
तृप्त वसा से ह्रदय रोग, डायबिटीज जैसी कोई समस्याएं नहीं होती. मोटापा भी नहीं होता.
यदि घी खाने से मोटापा होता तो राजस्थान, मारवाड़ के लोग मोटे ही होते क्योंकि उनके अधिकतर व्यंजन जैसे दाल,बाफला,चूरमा, भरता इत्यादि सब, घी से लबालब होते हैं.
वसा युक्त आहार तंदुरुस्त रहने के लिये अत्यंत महत्वपूर्ण है. कोलेस्ट्रॉल जीवन के लिये अति महत्वपूर्ण है जिसके बिना हम जिन्दा भी नहीं रह सकते.
घी, मक्खन, तेल का उपयोग कीजिये और नीरोगी रहिये.
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