महादेव शिव अति दयालू हैं, कृपा निधान हैं. महाशिवरात्रि पर्व की यही महिमा है.
भक्तों की सहायता के लिए आतुर हो जाते हैं. महाशिवरात्रि पर्व का एक दृष्टान्त इस प्रकार है…
एक शिकारी जंगली जानवरों का शिकार कर अपने परिवार का भरण-पोषण किया करता था।
हमेशा शिकार नहीं मिलने के कारण वह एक महाजन से क़र्ज़ भी लेता रहता था.
बार बार क़र्ज़ लेते रहने से उस पर महाजन का काफ़ी कर्ज़ हो गया था।
महाजन तकाजे करता रहता था लेकिन वह हर बार न नुकर करता रहता.
एक दिन महाजन ने उसे पकड़कर कोठरी में बंद कर दिया और खाने के लिए कुछ नहीं दिया।
संयोगवश ये दिन महाशिवरात्रि का पूर्वदिवस था.
महाशिवरात्रि विशेष
महाजन के मन में दयाभाव उपजा और शाम को उसने शिकारी को छोड़ दिया.
साथ ही एक शर्त रख दी कि जब तक वह कुछ कमा कर नहीं लाता है वह अपने घर न जाए.
परिस्थितिवश शिकार की तलाश में, धनुष-बाण लेकर वह जंगल की तरफ़ निकल गया।
जंगल में एक तालाब दिखा तो उसने सोचा कि यहाँ पर पानी पीने के लिए जानवर ज़रूर आएंगे और उसे शिकार मिल जाएगा।
यह सोचकर वह एक पेड़ पर चढ़ गया और अपने को उस पेड़ की डालियों पत्तियों को तोड़ कर खुद को ढँक लिया।
तालाबौ के किनारे का यह पेड़ बेल का था और नीचे एक प्राचीन शिवलिंग भी था।
डालियाँ तोड़ते समय बेल की कुछ पत्तियां शिवलिंग पर गिर गई।
एक तरह से उससे शिव जी की पूजा हो गई।
आधी रात के बाद तालाब के पास एक हिरणी नज़र आई तो उसने धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाई।
हिरणी की नज़र शिकारी पर पड़ी तो उसने शिकारी से उसे न मारने का अनुरोध किया।
हिरणी का कहना था कि वह गर्भवती है और थोड़ी देर में ही वह बच्चों को जन्म देने जा रही है।
वह बच्चे की हत्या का पाप क्यों अपने सिर पर लेता है, बच्चा जनने के बाद वह लौट आएगी, तब शिकार कर लेना।
शिकारी ने उसे जाने दिया।
थोड़ी देर बाद एक दूसरी हिरणी आई तो उसने भी शिकारी से कुछ देर बाद आने की अनुमति मांगी।
शिकारी ने उसे भी छोड़ दिया।
फिर ऐसे ही बाद में तीसरी हिरणी दिखी तो उसने भी कुछ देर बाद आने की अनुमति मांग ली।
शिकारी की समझ में नहीं आ रहा था कि शिकार करना उसका पेशा है और वह आकंठ कर्ज़ में डूबा हुआ है,
भूखा-प्यासा है, उसके परिवार के पास खाने के लिए कुछ नहीं है
फिर भी वह हाथ आए शिकार को क्यों छोड़े जा रहा है?
इसी उधेड़बुन में वह जितनी बार भी अपनी अवस्था बदलता, बेल की कुछ पत्तियाँ टूट कर शिवलिंग पर गिर जातीं।
रात भर वह इस तरह जागता रहा। और हर बार अवस्था बदलने पर पत्तियां शिवलिंग पर गिरती रहती.
पौ फटने को हुई तो वह घबरा गया कि पूरी रात बीत गई और एक भी शिकार नहीं मिला।
अब तो महाजन उसे फिर पकड़ लेगा?
तभी उसने देखा कि तीनों हिरणियाँ पेड़ के पास आकर खड़ी हो गई हैं और उनके साथ एक हिरण और छोटे बच्चे भी है।
हिरण ने शिकारी से कहा कि यह उसका परिवार है।
तीनों हिरणियों ने उससे बाद में आने की अनुमति मांगी थी तो अपने वायदे के अनुसार वे आ गई हैं,
तुम इनका शिकार कर लो लेकिन साथ में मुझे और सब परिवार को भी मार डालो
क्योंकि परिवार बिना मेरे जीवन का कोई महत्व नहीं।
शिकारी ने सोचा कि ये पशु होकर भी त्याग और बलिदान की भावना से भरपूर हैं
और वह मनुष्य होकर भी स्वार्थी ही बना रह गया। जीवों की हत्या कर परिवार का पालन करता रहा.
यह भावना उसके भीतर शिवलिंग की अनायास की गई पूजा से ही आई थी।
तभी देवाधिदेव भगवान शंकर भी अवतरित हो गए.
शिकारी से कहा कि वह उसकी पूरी रात की निरंतर पूजा से प्रसन्न हुए हैं, वह कुछ भी मांग ले।
शिकारी ने कहा कि उसने कोई पूजा नहीं की और वह नास्तिक है।
भगवान शंकर ने बताया कि उसने शिवलिंग पर पूरी रात्रि बेल पत्र चढ़ाये हैं यही उनकी पूजा है।
शिकारी अपने शुद्ध भाव में आ गया. बोला, उसे पशुओं की हत्या के काम से मुक्त कर दें और अपनी शरण में ले लें।
भगवान ने उसे श्रृंगवेरपुर का राजा गुह्य बनने और त्रेता में भगवान राम की सेवा का अवसर पाने का आशीर्वाद दिया।
कथा से प्रेरणा मिलती है कि भगवान भोलेनाथ शंकर, थोड़े से ही प्रयास से प्रसन्न हो जाते हैं।
सिव सिव, होही प्रसन्न, करू दाया
(हे शिव, हे शिव; सब पर प्रसन्न होईये और दया कीजिये)
महाशिवरात्रि पर्व
चतुर्दशी तिथि के स्वामी भोलेनाथ महादेव शिव हैं।
वैसे तो शिवरात्रि हर महीने आती है परंतु फाल्गुन माह की कृष्ण चतुर्दशी को महाशिवरात्रि कहा गया है।
कृष्ण चतुर्दशी के इस पर्व का महत्व इसलिए अधिक फलदाई हो जाता है
क्योंकि ज्योतिषीय गणना के अनुसार सूर्यदेव भी इस समय तक उत्तरायण में आ चुके होते हैं तथा
इसी दिन से ॠतु परिवर्तन की भी शुरुआत हो जाती है।
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार चतुर्दशी तिथि को चन्द्रमा अपनी सबसे कमज़ोर अवस्था में पहुँच जाता है
जिससे मानसिक संताप उत्पन्न हो जाता है।
चूँकि चन्द्रमा शिवजी के मस्तक पर सुशोभित है, इसलिए चन्द्रमा की कृपा प्राप्त करने के लिए शिवजी की आराधना की जाती है।
इससे मानसिक कष्टों से मुक्ति मिल जाती है।
वर्ष में 365 दिन होते हैं और इतनी ही रात्रियाँ भी।
इनमें से कुछ विशेष रात्रियाँ ही होती हैं जिनका पारलौकिक महत्व होता है।
उन सब विशेष रात्रियों में से महाशिवरात्रि ही ऐसी रात्रि है जिसका महत्व सबसे अधिक है।
यह भी माना जाता है कि इसी रात्रि में भगवान शंकर का रुद्र के रूप में अवतार हुआ था।
महाशिवरात्रि पर उपवास का भी अपना विशेष महत्व है।
उपवास का अर्थ होता है भगवान का वास।
उपवास का अर्थ भूखा रहना या निराहार रहना नहीं है।
आराध्य देव को मन में बसा कर किसी उद्देश्य को लेकर इनकी पूजा करना भी उपवास रहना है।
इसलिए महाशिवरात्रि के दिन पवित्र होकर शिव को मन में बसाना भी उपवास है।
कहते हैं कि महाशिवरात्रि के दिन भगवान शंकर जल्दी ही प्रसन्न हो जाते हैं।
इसलिए भगवान शंकर का आशीर्वाद ग्रहण करने का भक्तों के समक्ष शानदार अवसर होता है।
महाशिवरात्रि के दिन रात्रि जागरण की भी महत्ता है।
संतों का कहना है कि रात भर जागना जागरण नहीं है बल्कि पाँचों इंद्रियों की वजह से आत्मा पर जो बेहोशी या विकार छा गया है,
उसके प्रति जागृत होना ही जागरण है।
यंत्रवत जीने को छोड़कर, तन्द्रा को तोड़कर; चेतना को शिव के तंत्र में लाना ही महाशिवरात्रि है।