पलाश अथवा ढाक एक अति उपयोगी औषधीय पेड़ है.
यह जलन को कम करता है, वीर्य को बढ़ाता है, टूटी हुई हडि्डयों को जोड़ता है और बवासीर के लिए लाभकारी होता है।
फूल कफ, तथा सूजाक नाशक मने जाते है, यह मल को रोकते है।
इसके कोमल पत्ते पेट के कीड़े और वात को नष्ट करते है।
सफेद फूलवाला पलाश अत्यन्त लाभकारी माना जाता है, फिर नारंगी रंग वाला और फिर पीले फूल वाला।
ढाक पलाश का पेड़ – परिचय
पलाश को ढाक, टेसू, पलाह, संस्कृत में पलाश, किंशुक; बंगला में पलाशगाछ, मराठी में पलस और गुजराती में खाखरो के नामों से जाना जाता है.
पलाश का english name: Forest fire और botanical name: Butea monosperma होता है.
पेड़ बड़े-बड़े होते हैं और लगभग पूरे भारत में पैदा होते हैं।
पेड़ों की ऊंचाई 40 से 50 फुट तथा टहनियों की चौड़ाई 5 से 10 फुट तक होती है।
टहनिया टेढ़ी-मेढ़ी और छाल हल्के भूरे रंग की होती है.
पत्ते गोल और एक डण्डी में 3-3 होते हैं,
इसीलिये कहावत है ढाक के तीन पात; ये पहले कोमल लाल होते हैं, फिर हरे हो जाते हैं.
पत्ते 5 से 8 इंच लम्बे और 4 से 6 इंच चौड़े होते हैं। स्वाद फीका, तीखा और कसैला होता है।
अधिकतर पलाश के फूल चमकीले नारंगी-लाल होते हैं।
सफेद फूल और चितकबरे सफ़ेद काले फूल वाली दुर्लभ प्रजातियां भी होती हैं.
बीजों की फली 4 से 6 इंच लम्बी, डेढ़ से 2 इंच चौड़ी, चपटी होती हैं।
बीज चपटे, गोलाकार और फली के अग्र (आगे वाले) भाग में एक ही लगता है।
इनके फूलों को पानी में उबालकर प्राकृतिक रंग बनाया जाता है।
होली के त्योहार में इस रंग से होली भी खेली जाती है.
इसके पत्तों से पकवान परोसने वाले दोने (कटोरी) तथा पत्तलें (थाली) बनाई जाती हैं।
पलाश के औषधीय गुण
आयुर्वेद में पलाश को रस में कटु, तीखा, कषैला, गुण में छोटा, रूक्ष, गर्म प्रकृति का बताया गया है।
इसका फूल-शीतल तथा कफ, वात शामक होता है।
फूल कामोत्तेजक, संकोचक, गर्भवती के रक्तातिसार दूर करने वाले, मासिक-धर्म को साफ व ठीक समय में लाने वाले तथा सूजन को दूर करने वाले होते हैं।
यह रुधिर विकार, मूत्रकच्छ (पेशाब में जलन), प्यास, जलन, कुष्ठ नाशक आदि गुणों से युक्त रहते हैं।
पलाश बवासीर, अतिसार (दस्त), रक्त विकार, मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन),
मधुमेह, नपुंसकता, गर्भ की रक्षा, पीड़ा को दूर करने वाला,
फोड़े-फुंसी और तिल्ली की सूजन में गुणकारी और लाभकारी है।
यूनानी चिकित्सामत में, ढाक के बीज और गोंद तीसरे दर्जे के गर्म और खुश्क होते है,
नपुंसकता में इसके बीज और तेल लाभदायक होते है।
पत्ते भूख बढ़ाते हैं और पेट के कीड़ों को नष्ट करते हैं।
जड़ का काढ़ा कामशक्तिवर्द्धक, शीघ्रपतन दूर करने वाला और प्रमेह नाशक होता है।
इसकी स्वभाव प्रकृति गर्म होती है।
पलाश (ढाक) के 39 घरेलू उपयोग
1 कमजोरी
20 ग्राम ढाक के बीजों का चूर्ण, 60 ग्राम काले तिल और 120 ग्राम मिश्री मिलाकर पीस लें।
इसका एक चम्मच सुबह-शाम 1 कप दूध के साथ सेवन करने से शरीर की कमजोरी दूर हो जाती है।
2 नपुंसकता
आधा कप ढाक की जड़ का काढ़ा दिन में 2 बार पीने से,
और इसके बीज का तेल शिश्न पर मुण्ड (सुपारी) छोड़कर मालिश करते रहने से,
कुछ ही दिनों में नपुंसकता के रोग में लाभ मिलता है।
3 शीघ्रपतन
ढाक के कोमल पत्तों का चूर्ण गुड़ में मिलाकर गोलियां बनाकर रख लें.
इसकी 1-1 गोली दिन में 3 बार सेवन करने से शीघ्रपतन रोग दूर हो जाता है।
4 शुक्रमेह
ढाक की जड़ की छाल का चूर्ण 1 चम्मच की मात्रा एक कप दूध के साथ सुबह-शाम पीने से शुक्रमेह का कष्ट दूर होकर कामशक्ति में बढ़ोत्तरी होती है।
5 अण्डकोष का बढ़ना
ढाक के फूलों को पानी में डालकर उबाल लें।
खौलने पर उतारकर ठण्डा होने दें।
इसका धीरे-धीरे से लेप करने से अण्डकोष की सूजन में आराम मिलता है।
6 पलाश के शक्तिवर्धक योग
• लगभग 50 ग्राम की मात्रा में ढाक के बीज, 25 ग्राम बायविडंग और 200 ग्राम की मात्रा में आंवले लेकर पीसकर चूर्ण बना लें।
रोजाना इस चूर्ण को 3 ग्राम मात्रा गाय के दूध के साथ लेने से शरीर की ताकत बढ़ जाती है।
• शरीर में ताकत बढ़ाने के लिए पलाश (ढाक) के फूलों की कलियों का गुलकन्द बना लें.
इस गुलकन्द की 6 ग्राम की मात्रा दूध के साथ सेवन करने से शरीर की ताकत बढ़ती है।
• ढाक की जड़ या छाल का चूर्ण बनाकर दूध के साथ सेवन करने से व्यक्ति के शरीर की संभोग करने की शक्ति में वृद्धि होती है।
7 बिच्छू दंश
ढाक के दूध में बीज को पीसकर दंश पर 2-3 बार लगाने से लाभ मिलता है।
8 पेशाब न लगने पर
ढाक के फूल को खौलते हुए पानी में डालकर निकाल लें।
इसे गर्म ही नाभि के नीचे बांधने से पेशाब खुलकर आने लगता है।
9 सिर दर्द
ढाक के बीजों को पानी में पीसकर बने लेप को सिर पर लगाने से सिर दर्द में आराम मिलता है।
10 मिर्गी का दौरा
• ढाक के बीज का तेल सुंघाने और जड़ को पानी में घिसकर 2-4 बूंद नाक में डालने से मिर्गी के दौरे में रोगी को तुंरत लाभ मिलता है।
• मिर्गी का दौरा आते समय ढाक की जड़ को घिसकर रोगी की नाक में टपकाने से रोगी को आराम मिलता है।
11 दांत का दर्द
ढाक के पत्ते पर खाने का चूना और चुटकी भर नौसादर लगाकर दांतों के बीच दबाकर रखने से दर्द खत्म हो जाता है।
12 दाद
• ढाक के बीजों को नींबू के रस में पीसकर बने लेप को 2-3 बार रोजाना लगाने से दाद ठीक हो जाता है।
• ढाक (पलास) के बीज और कत्था बराबर मात्रा में लेकर पानी में पीसकर दाद पर लगाने से दाद पूरी तरह से ठीक हो जाता है।
13 मलेरिया का बुखार
10 ग्राम ढाक के बीजों की गिरी और 10 ग्राम करंजवा के बीजों की गिरी को पानी में घिसकर छोटी-छोटी गोलियां बनाकर सूखा लें।
मलेरिया के रोगी को ये गोली देने से मलेरिया के बुखार में लाभ होता है।
14 व्रण, घाव
• घाव होने पर ढाक के सूखे पत्ते की राख को घी में मिलाकर लगाते रहने से घाव भर जाते हैं।
• ढाक की कलियों का सूखा चूर्ण और मिश्री मिलाकर एक चम्मच की मात्रा में सुबह-शाम पियें.
कुछ ही दिनों में योनि शैथिल्यता (योनि का ढीलापन) दूर हो जाता है।
15 बालों के रोग
ढाक के पत्ते और छाल को जलाकर छान लें और इसमें हड़ताल पीसकर मिला दें।
इसके बाद बालों को साफ करके इसका प्रयोग करें, इससे बालों के रोगों में फायदा होता है।
16 अफारा (पेट में गैस का बनना)
ढाक के पत्तों को पानी में उबालकर पीने से अफारा (पेट में गैस) और पेट के दर्द में आराम मिलता है।
17 डकारें लगने पर
लगभग आधा ग्राम से लगभग 1 ग्राम ढाक की गोंद सुबह और शाम सेवन करने से डकार आने में लाभ होता है।
18 कब्ज
• ढाक, हरड़, चीनी या सेंधानमक को पानी में मिलाकर पीने से कब्ज में लाभ होता है।
• ढाक के 20 पत्तों की घुण्डी ताजे पानी में पीसकर रोगी को दें,
यदि पेट का दर्द हल्का हो जाये तो एक बार फिर इसी मात्रा में देने से कब्ज के रोग में राहत मिलती है।
19 गर्भधारण
मासिक-धर्म के दिनों में ढाक का एक पत्ता गाय के कच्चे दूध में पीसकर सुबह के समय लगातार 3 दिनों तक स्त्री को सेवन कराना चाहिए।
इसके सेवन से स्त्री गर्भधारण के योग्य हो जाती है।
20 गर्भनिरोध
• ढाक की 10 ग्राम छाल को 20 ग्राम गुड़ के साथ पानी में उबालकर पीने से गर्भनिरोध होता है।
• इसके बीजों की राख को ठण्डे पानी के साथ स्त्रियों को पिलाने से गर्भ नहीं ठहरता है।
• पलाश के फल को शहद और घी में पीसकर योनि में पोटली बनाकर रखने से गर्भधारण नहीं होता है।
• ढाक के बीजों को पीसकर 1 चम्मच की मात्रा में एक चौथाई चम्मच हींग मिला लें.
ऋतुस्राव (माहवारी) शुरू होने के दिन से 4 दिन तक इसका सेवन करने से गर्भधारण करने की संभावना समाप्त हो जाती है।
21 खून की उल्टी
ढाक के ताजे रस में मिश्री मिलाकर पीने से खून की उल्टी होना बंद हो जाती है।
22 गर्भपात रोकना
ढाक के फूल के रंग में रंगे हुए लाल डोरे में एक करंजुआ बांधकर उसे गर्भवती स्त्री की कमर में लपेट देने से गर्भ नहीं गिरता है।
यदि गर्भ स्थिति होते ही यह डोरा बांध दिया जाए तथा नौ महीने तक बंधा रहने दिया जाए,
साथ ही गर्भपात के कारणों से बचा जाए तो गर्भ गिरने का भय ही नहीं रहता है।
23 दस्त
• ढाक की गोंद को लगभग आधा ग्राम से लेकर लगभग 1 ग्राम की मात्रा में पीने से दस्तों में आराम मिलता है।
• ढाक के गोंद का चूर्ण बना लें।
इसे लगभग 2 ग्राम की मात्रा में थोड़ी-सी दालचीनी के साथ लेने से अतिसार यानी दस्त में आराम मिलता है।
24 आमातिसार
लगभग आधा ग्राम से लगभग 1 ग्राम ढाक की गोंद का सेवन करने से आमातिसार (ऑवयुक्त दस्त) के रोग ठीक हो जाते हैं।
25 घाव में कीड़े
ढाक के बीजों को पीसकर घाव पर छिड़क देने से कीडे मर जाते हैं।
26 आमाशय में जलन
ढाक की गोंद लगभग आधा ग्राम से लगभग 1 ग्राम तक सुबह और शाम सेवन करने से आमाशय में जलन लाभ होता है।
27 पित्त ज्वर
ढाक के कोमल पत्तों को नींबू के रस में पीसकर शरीर पर लगाने से गर्मी उतर जाती है।
28 आठवें महीने के गर्भ के विकार
ढाक का पत्ता पानी के साथ पीसकर घोटकर पिलाएं। इसे गर्भशूल नष्ट होकर गर्भ की पुष्टि होती है।
29 पेट के कीड़े
• पलाश के बीजों को पीसकर प्राप्त हुए रस को चावल के पानी (धोवन) या छाछ के साथ पीने से पेट के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
• इसके बीजों के रस और छाछ में ‘शहद मिलाकर पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
• ढाक के बीजों को पीसकर 3 से लेकर 6 ग्राम की मात्रा में सेवन करने से पेट के कीड़ों में लाभ होता है।
• इसके बीजों को पीसकर रस निकाल लें,
निकले हुए रस को 14 मिलीलीटर से लेकर 28 मिलीलीटर तक की मात्रा में शहद के साथ मिला लें.
इसे सुबह और शाम पीने से आंतों के कीड़े नष्ट हो जाते हैं।
ये भी हैं पेट के कीड़ों के इलाज
• ढाक के बीजों को लगभग 25 ग्राम की मात्रा में लेकर बारीक पीसकर रख लें.
खुराक के रूप में 100 मिलीलीटर छाछ के साथ दिन में सुबह और शाम पीने से पेट के कीड़े मर जाते हैं।
• इसके बीजों और बायविंडग को बराबर मात्रा में पीसकर बारीक चूर्ण बना लें.
इस चूर्ण की 2 ग्राम मात्रा को 3 ग्राम नींबू के रस में मिलाकर पीने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
• ढाक के बीजों का काढ़ा बना लें.
इसी काढे में 3 ग्राम की मात्रा में अजवायन का बारीक चूर्ण मिला लें.
इसे पीने से पेट के कीड़े मरकर मल के द्वारा बाहर निकल जाते हैं।
• ढाक के बीजों को बारीक चूर्ण बनाकर गुड़ के साथ सेवन करने से पेट के कीड़े दूर हो जाते हैं।
• पलाश के बीजों को पानी में भिगोकर रख लें फिर सुखाकर चूर्ण बना लें.
इस चूर्ण को 3 दिन तक 2 ग्राम की मात्रा में दें,
चौथे दिन इसमें एरण्डी का तेल मिलाकर पिलायें.
आंतों में मौजूद लम्बे कीड़े मल के साथ बाहर निकल जाते हैं।
इसे शहद के साथ देने से भी कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
• 1 ग्राम ढाक के बीजों के बारीक चूर्ण को खुराक के रूप में दिन में 3 बार गुड़ के साथ देने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
• ढाक के पत्तों का रस या बीजों का रस ‘शहद के साथ चाटने से पेट के अन्दर मौजूद कीड़े खत्म हो जाते हैं।
• इसके बीज और अजवायन को बारीक पीसकर सेवन करने से पेट के कीड़े समाप्त हो जाते हैं।
30 गुल्म
ढाक के क्षार के पानी के साथ पकाया हुआ घी पीने से स्त्रियों का रक्त (खूनी) गुल्म समाप्त होता है।
31 योनिकन्द (योनि की गांठ)
ढाक, धाय के फूल, जामुन, लज्जालु, मोचरस और राल को एक साथ पीसकर चूर्ण बनाकर रख लें,
फिर इसी चूर्ण को योनिकन्द (योनि की गांठ) में लगाने से योनि की दुर्गन्ध और योनिकन्द (योनि की गांठ) रोग समाप्त हो जाती है।
32 मूत्ररोग
ढाक पलाश की सूखी कोंपलें, गोंद तथा छाल को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बना लें।
इसमें से 1 चम्मच भर चूर्ण लेकर दूध के साथ खाने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) का रोग ठीक हो जाता है।
33 योनि के रोग
• ढाक के फल और गूलर के फल को तिल के तेल (तेल के नीचे बैठी लई) में पीसकर स्त्री की योनि पर लगाने से योनि सख्त हो जाती है।
• ढाक की छाल और गूलर के फल को बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण तैयार कर लेते हैं।
फिर शहद व तिल का तेल मिलाकर योनि में लेप करना चाहिए।
इससे भी योनि का आकार छोटा होता है।
• ढाक के केवल एक पत्ते को दूध में पीसकर मिलाकर पीने से स्त्री को ज्यादा ताकतवर लड़का पैदा होता है।
34 टी.बी.
ढाक के पत्तों का रस पीने से टी.बी. रोग में लाभ मिलता है।
35 नासूर
50 ग्राम ढाक के बीजों को पीसकर उसमें 5 ग्राम गुड़ मिलाकर सुबह-शाम रोगी को देने से नासूर भी ठीक हो जाता है।
36 फीलपांव (गजचर्म)
20 ग्राम ढाक की जड़ लेकर सरसों के तेल में मिलाकर रोजाना सेवन करने से फीलपांव के रोगी को फायदा मिलता है।
37 कण्ठमाला (गले की गांठे)
ढाक की जड़ को घिसकर और पानी में मिलाकर कान के नीचे लेप करने से कण्ठमाला रोग (गले की गांठे) ठीक हो जाती है।
38 नवें महीने के गर्भसम्बंधी रोग
ढाक पलाश के बीज, काकोली और प्रियवासा की जड़ को पीसकर पानी के साथ सेवन करने से
नवें महीने में होने वाली गर्भ सम्बन्धी सभी समस्याएं समाप्त होती हैं।
39 प्रदर
ढाक के फूल के चूर्ण में बराबर मात्रा में मिश्री मिलाकर एक चम्मच सुबह-शाम दूध के साथ सेवन करने से प्रदर रोग नष्ट हो जाता है।
उपयोग मात्रा
ढाक की छाल का चूर्ण 2-3 ग्राम, छाल का काढ़ा 50 से 100 मिलीलीटर,
बीज का चूर्ण 1 से 3 ग्राम। फूल चूर्ण 3 से 6 ग्राम। गोंद 1 से 3 ग्राम।
विशेष : इसका अधिक मात्रा में उपयोग गर्म स्वभाव वालों के लिए हानिकारक होता है।