सन्त ने कहा . . .
“मनुष्य में धैर्य हो तो बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान हो सकता है।।”
आलोचक ने प्रश्न किया . . .
“क्या धैर्य से आप छलनी में पानी को ठहरा सकते हो ?
क्या यह सम्भव है ?”
सन्त ने उत्तर दिया…
‘पानी’ को ‘बर्फ़’ बनने तक का ‘धैर्य’ रखोगे तो सम्भव है।।
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