आयुर्वेद में पुनर्नवा (Punernava) को एक ऐसा रसायन (Tonic) बताया है जो मानव शरीर को फिर से नया बनाने में सक्षम होता है.
कुछ वनस्पतियों को आयुर्वेद में रसायन कहा जाता है जिसका मतलब है टॉनिक.
पुनर्नवा को भी एक ऐसा ही रसायन बताया गया है.
जानते हैं लाजवाब पुनर्नवा की पहचान, किस्में, गुण और उपयोग के बारे में.
पुनर्नवा की पहचान
पुनर्नवा (English name: Horse Purslane, वानस्पतिक नाम: Boerhaavia diffusa) एक प्रकार की खरपतवार (Weed) वनस्पति है
जो बरसात से लेकर हेमंतऋतु तक भारत में लगभग हर जगह पाई जाती है.
पुनर्नवा लगभग पूरे भारत में पाई जाती है.
इसका पौधा लेटे हुए छत्ताकार बेलनुमा होता है.
यह बरसात की पहली बारिश के बाद पैदा होकर बढ़ता है और हेमन्त ऋतु के अंत तक सूख जाता है.
पुनर्नवा की जड़ एक से डेढ़ फुट तक लंबी, कभी कभी दो फुट तक भी, उंगली जितनी मोटी, गूदेदार,
2 से 3 शाखाओं से युक्त, तेजगंध वाली तथा स्वाद में तीखी रहती है.
औषधि के लिए इसकी जड़ और पत्ते उपयोग किये जाते हैं.
- पुनर्नवा का पौधा
पुनर्नवा का मूल अथवा जड़ बरसात की पहली बारिश की नमी के साथ ही नया जीवन पाकर फलने फूलने लगता है.
साथ ही पिछले मौसम के बीजों से हर बरसात में नए पौधे निकलना और गर्मियां आने पर सूख जाना इसकी विशेषता है.
इसकी जड़ को अधिक गुणकारी माना जाता है, यद्यपि इसके सभी अंग जैसे पत्ते, शाखें इत्यादि भी उपयोग की जाती हैं.
इसके इसमें पुष्प (फूल) सफेद या गुलाबी छोटे-छोटे, छतरीनुमा लगते हैं।
फल जीरे के बीज जैसे छोटे, चिपचिपे बीजों से युक्त तथा पांच धारियों वाले होते हैं.
पक जाने पर बाहरी भाग सूख जाता है।
परंतु जड़ें भूमि में पड़ी रहती है, जो बरसात के मौसम में फिर से उग आती है.
पुनर्नवा की किस्में
भारत में इसकी चार किस्में पाई जाती हैं जिनमें से दो मुख्य हैं.
श्वेत अथवा सफेद पुनर्नवा और लाल अथवा रक्त पुनर्नवा.
श्वेत पुनर्नवा के पत्ते तथा डंठल सफेदी लिये होते हैं.
फूल भी सफ़ेद रंग के होते हैं.
इसके पत्ते थोड़े चक्राकार होते हैं.
पत्ते कोमल, मांसल, गोल या अंडाकार रहते हैं जिनका निचला तला सफेद होता है.
रक्त अथवा लाल पुनर्नवा के फूल गुलाबी हल्के लाल होते हैं।
इसके पत्ते श्वेत की अपेक्षा चक्राकार न होकर कुछ लंबे होते हैं.
इसके पत्तों को छोड़ कर कांड (तना), फूल सभी लालिमा लिये होते हैं।
पत्ते भी पृष्ठ भाग में श्वेत लालिमा लिये होते हैं.
औषधि के रूप में रक्त जाति की वनस्पति का प्रयोग ही मुख्यत: किया जाता है, जबकि सफ़ेद पुनर्नवा का साग अथवा शाक के रूप में.
पुनर्नवा के अन्य नाम
इटसिट, रक्तपुष्पा, शिलाटीका, शोथघ्नी, क्षुद्रवर्षाभू, वर्षकेतू, कठिल्ल्क, विशखपरा, विषकपरा, शरुन्ने, साबुनी, वसु इत्यादि नाम आयुर्वेद के भावप्रकाश ग्रन्थ में वर्णित हैं.
पुनर्नवा के औषधीय गुण
इसका मुख्य औषधीय घटक पुनर्नवाइन (Punarnavine) नामक एल्केलायड होताहै.
पुनर्नवा की जड़ में इसकी मात्रा लगभग 0.4 प्रतिशत होती है.
अन्य एल्केलायड्स की मात्रा लगभग 6.5 प्रतिशत होती है जिनमें से Boeravinones G और H दो ऐसे rotenoids जिन्हें कैंसर रोधी और रोग प्रतिरोधी पाया गया है.
पुनर्नवा में कुछ स्टेरॉन भी पाए गए हैं, जिनमें बीटा-साइटोस्टीराल (Beta-cytosterol) और एल्फा-टू (Alfa-2) स्टेरोल प्रमुख है.
इसमें पाया जाने वाला ऐसेण्टाइन एक प्रमुख एंटीऑक्सीडेंट माना जाता है।
इसके अतिरिक्त कुछ विशेष कार्बनिक अम्ल तथा लवण भी पाए जाते हैं.
अम्लों में स्टायरिक तथा पामिटिक अम्ल एवं लवणों में पोटेशियम नाइट्रेट, सोडियम सल्फेट एवं क्लोराइड प्रमुख हैं.
इन्हीं के कारण पुनर्नवा सूक्ष्म स्तर पर कार्य करने की सामर्थ्य रखती है.
आयुर्वेद के मतानुसार पुनर्नवा खाने में ठंडी, सूखी और हल्की होती है।
ये कफ नाशक भी होती है।
पेट रोग, जोड़ों इत्यादि की सूजन (Inflamation), पांडुरोग (Anemia),
ह्रदयरोग, लिवर, पथरी (Kidney, urinary stone), खांसी, डायबिटीज,
उर:क्षत (फेफड़ों के घाव) आर्थराइटिस और पीड़ा (Pain) के लिये पुनर्नवा संजीवनी मानी जाती है.
कुछ शोध पुनर्नवा को कैंसर, पेट के रोगों जैसे amoebiasis में लाभकारी व रोग प्रतिरोधक भी मानते हैं.
शोधों ने पुनर्नवा को बुढ़ापा रोकने में सक्षम एंटीएजिंग (Anti-aging) तत्वों युक्त पाया है.
शरीर दर्द निवारक गुणों के कारण भी पुनर्नवा एक विशेष वनस्पति मानी जाती है.
पुनर्नवा एक बेहतरीन मूत्रल (Diuretic) औषधि है जिस कारण इसे किडनी व मूत्राशय की पथरी को हरने वाली औषधि माना जाता है.
मूत्रल होने के कारण ही इसे उच्च रक्तचाप ( High Blood Pressure) में भी लाभकारी जाना गया है.
पुनर्नवा फेफड़ों में कफ़ का निस्सारण करने में भी अत्यंत लाभकारी पायी गयी है.
इसके उपयोग से छाती की जकड़न (lungs congestion) में अदभुत लाभ होता है.
पुनर्नवा उपयोग के कई नुस्खे प्रचलित हैं.
पुनर्नवा के उपयोग
गांवों में पुनर्नवा का उपयोग पुनर्नवा की सब्जी काम में लाई जाती है।
पुनर्नवा का साग बना कर खाईये या काढ़ा बना कर सेवन कीजिये. दोनों ही उपयोगी हैं.
बस इसमें थोडा सा स्वादानुसार अदरक या अजवायन या दालचीनी; व काली मिर्च अवश्य मिलाएं
जिससे इसका वायवीय प्रभाव कम हो जाए व औषधीय उपयोगिता बढ़ जाए।
इसके कई योग भी बनाये जाते हैं जैसे कि पुनर्नवा मंडूर, पुनर्नवा अर्क और पुनर्नवा वटी इत्यादि.
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शोधों द्वारा पुनर्नवा को एक उत्तम रसायन बताने के बाद इसके supplements भी खूब बिकने लगे हैं जो Amazon जैसे ऑनलाइन स्टोर्स से घर बैठे मंगाए जा सकते हैं.
अमेज़न पर उपलब्ध पुनर्नवा के supplements साथ में दिए चित्र पर क्लिक कर या इस लिंक पर देखे खरीदे जा सकते हैं.
पुनर्नवा की औषधीय उपयोग मात्रा
पुनर्नवा के पत्तों का रस 10 से 20 मिलीलीटर,
जड़ का चूर्ण 3 से 5 ग्राम,
बीजों का चूर्ण 1 से 3 ग्राम,
पंचांग (जड़, तना, पत्ती, फल और फूल) चूर्ण 5 से 10 ग्राम तक प्रतिदिन लेना पर्याप्त माना गया है.
सारशब्द
पुनर्नवा एक मुफ्त में पायी जाने वाली उत्तम औषधि है जिसका उपयोग कर हम नीरोग रह आयु को बढ़ा सकते हैं
और फेफड़ों, prostate, लिवर, पेट के रोगों व उच्च रक्तचाप, पथरी, त्वचा विकार जैसी विसंगतियों से बचे रह सकते हैं।
इस लेख में पढिये > पुनर्नवा के 26 गुणकारी घरेलु नुस्खे
पुनर्नवा के 26 गुणकारी स्वास्थ्य लाभ – उपयोग कीजिये, स्वस्थ रहिये
चित्र साभार:
हमारे घर पर उगाई पुनर्नवा के पंचांग के चित्र के अतिरिक्त; अन्य सारे चित्र प्रोफेसर सुरेन्द्र सिंह जी द्वारा उपलब्ध कराये गए हैं.
अतिशय धन्यवाद.
बहुत बढ़िया जानकारी है. धन्यवाद
Badhiya jaankaari. Aapka dhanyavad
Excellent post on punarnava. I am grateful. Thanks
पुनर्नवा के बारे में ऐसी मान्यता है की यह आदमी को पुनर्जीवित कर सकती है. आपका लेख सराहनीय है.
ऐसी जानकारी को शेयर करने के लिए आपका बहुत ही आभारी हूँ.
इस प्रकार की जानकारी आपको सबको देनी चाहिए
Great ji bhut jaruret h es ki sabh ko