डेंगू और चिकुनगुनया (Dengue & Chikungunya) ये दोनों रोग, मच्छरों के मौसम गर्मी बरसात में ही पनपते हैं. यद्यपि ये दोनों रोग अलग अलग हैं, और इनके वायरस भी भिन्न होते हैं. लेकिन इनके लक्षण और उपचार एक ही तरह के होते हैं, इस लिए यह लेख इन दोनों रोगों की रोकथाम और उपचार के लक्ष्य से लिखा गया है. आईये, जानते हैं कैसे करें डेंगू, चिकुनगुनया का पक्का इलाज.[the_ad id=”19731″]
डेंगू (Dengue) व चिकुनगुनया (Chikungunya) दो ऐसे रोग हैं जिन से दुनिया के 100 से अधिक उष्णकटिबंधीय (Tropical) देश हर वर्ष जूझते हैं. World Health Organization (WHO) के अनुसार लगभग 5 करोड़ से 10 करोड़ लोग इन रोगों से हर वर्ष ग्रसित होते हैं.
चिकुनगुनया के बाद के दुष्प्रभाव डेंगू रोग की अपेक्षा अधिक दुखदायी होते हैं. कई महीनों तक इतनी कमजोरी व दर्द बना रहता है कि जीवन के सामान्य कार्यकलाप करने में भी बड़ी तकलीफ होती है. अंगों में दर्द बना रहता है और ऐसा लगता है मानो शरीर के अंगों में जान ही न हो.
लक्षण व कारण
इन दोनों रोगों के वायरस मच्छरों द्वारा फैलते हैं. चिकुनगुनया और डेंगू के लक्षण लगभग एक समान होते हैं.
यद्यपि ये रोग ठीक हो जाते हैं लेकिन इनमें कोई भी कोताही नहीं होनी चाहिए, अथवा ये जानलेवा भी हो जाते हैं.
चिकुनगुन्या का नाम स्वाहिली भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है; जो मुड़ जाता है और यह रोग से होने वाले जोड़ों के दर्द व सूजन के परिणामस्वरूप रोगी के कष्टकारी झुके शरीर के कारण प्रचलित हुआ है.
इन दोनों रोगों में जोड़ों में पीड़ा के साथ बुखार आता है और त्वचा रूखी हो जाती है. ये सीधे मनुष्य से मनुष्य में नहीं फैलते बल्कि एक संक्रमित व्यक्ति को मच्छर के काटने के बाद स्वस्थ व्यक्ति को काटने से फैलते है। इससे पीड़ित गर्भवती महिला के बच्चे के भी रोगी हो जाने का खतरा बना रहता है.
प्राथमिक उपचार
क्योंकि ये रोग मच्छरों के काटने के कारण ही होते हैं, इसलिए अपने आसपड़ोस में पानी और गंदगी का जमाव न होने दें. मच्छरों के पनपने के यह मुख्य कारण होते हैं.
रोग होने पर डॉक्टर की सलाह लेना अति आवश्यक है क्योंकि इन रोगों में रोग प्रतिरोधक क्षमता अत्यधिक कमज़ोर हो जाती है. श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBC) का गणमान भी अप्रत्याशित रूप से घट जाता है. इस कारण रोगी को निम्न उपाय भी अपनाने चाहिए:
- अधिकाधिक पानी पियें, कुनकुना पानी पियें
- आराम करें
- चिकनगुनिया में जोड़ों में बहुत दर्द होता है जिसके लिए डाॅक्टर की सलाह पर दर्द निवारक (Pain Killer) लें
- दूध से बने उत्पाद, दूध-दही या अन्य चीजों का सेवन करें
- रोगी को नीम, सहिंजन या पपीते के पत्तों को पीस कर उसका रस निकालकर दें
- रोगी के कपड़ों एवं बिस्तर की सफाई का विशेष ध्यान दें. इन पर नीलगिरी का तेल, सिट्रोनेला, कपूर इत्यादि की सुंगंध लगायें जो मच्छरों व वायरस को पनपने नहीं देते.
- करेला, पपीता, नीम के पत्ते, सहिंजन फली, व गिलोय का सूप पिलायें.
एक सकारात्मक पहलू
यदि कोई कभी डेंगू (Dengue) व चिकुनगुन्या (Chikungunya) से संक्रमित हो जाता है, तो इन बीमारियों के प्रति उसकी आजीवन रोग प्रतिशोधक क्षमता भी बढ़ जाती है. जिसके चलते भविष्य में ये रोग फिर से होने की सम्भावना अति न्यून हो जाती है.
कैसे करें डेंगू, चिकुनगुनया का पक्का इलाज
यदि हम बरसात के मौसम में ऐसी वनस्पतियों का उपयोग करें जो मच्छरों के काटने पर रोक लगाएं, संक्रमण न होने दें. रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं; तो इन रोगों से कारगर तरीके से निपटा जा सकता है.
बचने के लिये मुख्यत: उन वनस्पतियों का उपयोग किया जाता है जो:
1 मच्छरों व वायरस से बचाव करें
2 रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा कर रखें
3 श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBC) का गणमान न गिरने दें
4 मूत्रल हों, ताकि पानी पीने पर शरीर के विषद्रव्य (Toxins) बाहर निकल सकें
उपयोगी औषधीय वनस्पतियाँ
1 दारुहल्दी
दारुहल्दी का सेवन रोगप्रतिरोधक क्षमता को बढाता है और श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBC) का गणमान भी नहीं गिरने देता.
यदि आप दारुहल्दी न ले पाए तो इसका सत्व भी ले सकते हैं जिसे रसौंत के नाम से जाना जाता है. रसौंत एक टॉनिक भी माना जाता है. 60 ग्राम रसौंत को दो लीटर पानी में उबाल कर एक बोतल में रख लें. इसके दो बड़े चम्मच (20ml) दिन में तीन बार पियें, दो दिन में लाभ मिलने लगेगा. उपयोग एक माह तक करें.
दारुहल्दी के गुण और उपयोग पर इस लेख को देखिए
2 श्वेत आक
श्वेत आक के 10-12 फूल नित्य चबाने से मच्छर नहीं काटते, जिससे आप इन रोगों से बच सकते हैं.
यह एक अनुभूत योग है जिसे कई आदिवासी बहुल क्षेत्रों में मच्छरों से बचाव के लिये उपयोग किया जाता है. ऐसी मान्यता है कि आक युक्त रक्त को मच्छर पसंद नहीं करते.
श्वेत आक के अन्य गुण इस लेख में देखे जा सकते हैं.
3 गिलोय
दारू हल्दी की भांति ही गिलोय अथवा गुडूची भी रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाती है व श्वेत रक्त कोशिकाओं (WBC) का गणमान नहीं गिरने देती.
यह शरीर में ब्लड प्लेटलेट्स की संख्या बढ़ाता है जिससे यह डेंगू, चिकुनगुन्या तथा स्वाइन फ्लू के निदान में बहुत कारगर है. गिलोय का एक्सट्रेक्ट भी बाज़ार में मिलता है जिसे गिलोयसत्व के नाम से जाना जाता है. इस सत्व की 500mg मात्रा दिन में तीन बार उपयोग करें.
गिलोय के अन्य गुणों के लिये इस लेख को पढ़िए.
4 सहिंजन (Moringa oleifera)
सहिंजन अथवा मुनगा, शिग्रु (Drumstick) के पत्ते व फली का सेवन इन रोगों के प्रकोप से बचाता है. सहिंजन पौष्टिकता व रोग निवारण में एक अतुल्य वनौषधि है.
बरसात में सहिंजन के उपयोग से कई अन्य रोगों से भी बचा जा सकता है. सहिंजन की फलियों की सब्जी बनायें या फिर इन्हें दाल में मिला कर पकाएं. सहिंजन के पत्तों का जूस (मात्रा 50ml) या साग बना कर भी खाया जा सकता है.
जानिये, सहिंजन के अन्य गुण इस लेख में.
5 पपीता
पपीता के पत्तों का उपयोग इन रोगों के संक्रमण होने पर कारगर रहता है. आधा कप पत्तों का जूस नित्य लेने से अप्रत्याशित लाभ मिलता है.
पपीता का उपयोग रोग से होने वाली पाचन विकृति में भी सुधार ला कर अन्य दुष्परिणामों से बचाता है.
पपीता के अन्य गुण जानने के लिये इस लेख को देखिये.
6 नीम
नीम की 10-20 पत्तियां या 5-10 नीम्बोलियाँ नित्य चबाने पर मच्छर नहीं काटते. काटे जाने पर भी वायरस संक्रमण का खतरा न के बराबर रहता है.
आदिवासी बहुल क्षेत्रों में ऐसी मान्यता है रक्त में आक या नीम के सार पहुँचने पर मच्छर खून चूसना पसंद नहीं करते.
नीम एक उत्तम रक्तशोधक भी है, जानिए इस लेख में.
7 भूमि आंवला
भूमि आंवला एक बेहतरीन लिवर टॉनिक व मूत्रल वनौषधि है. शरीर में विषद्रव्यों के जमाव से डेंगू (Dengue) व चिन्कुंगुन्या (Chikungunya) के वायरस को पनपने में सहायता मिलती है.
भूमि आंवला का उपयोग मूत्रल होने के कारण रक्त में विषद्रव्यों को एकत्रित नहीं होने देता. यह वनस्पति बरसात के मौसम में खूब मिलती है. इसके 500 ग्राम पंचांग को दो लिटर पानी में उबाल कर काढ़ा बना लें. रोज़ 30 से 50 मात्रा की दिन में तीन खुराक लें.
भूमि आंवला के अन्य गुण इस लेख में देखिये.
8 पुनर्नवा
पुनर्नवा भी भूमि आंवला कि भांति एक उत्तम रसायन है जो शरीर में विषद्रव्यों को एकत्रित नहीं होने देता. पुनर्नवा रोग प्रतिरोधक भी है.
यह भी एक प्रकृति का वरदान है कि जिस ऋतु में रोग या संक्रमण अधिक होते हैं उसी ऋतु में पुनर्नवा व भूमि आंवला जैसी उत्तम वनौषधिया भी हमें उपलब्ध होती हैं. इसके 500 ग्राम तने पत्तों या पंचांग को दो लिटर पानी में उबाल कर काढ़ा बना लें. रोज़ 30 से 50 मात्रा की दिन में तीन खुराक लें.
पुनर्नवा के अन्य गुण इस लेख में देखिये.
औषधि बनाने की दूसरी विधि
यदि आप चाहें तो इन सभी वनौषधियों (या फिर जो भी इनमें से उपलब्ध हो जाएँ) को समभाग मिलाकर भी इनका काढ़ा (क्वाथ) या चूर्ण बना कर रख सकते है, जिसे घर का प्रत्येक सदस्य नित्य सेवन करे.
जान लीजिये, इन से तैयार चूर्ण या काढ़े की कीमत रोग के उपचार की कीमत के सामने कुछ भी मायने नहीं रखती.
आखिर सावधानी ही पहला बचाव है.
काढ़ा बनाने की प्रक्रिया इस लिंक पर देखिये.
सारशब्द
बरसात का मौसम रोगों का मौसम होता है.
यदि हम कुछ सावधानी रख अपनी रोग प्रतिरोधक क्षमता को ठीक रकें तो कई बीमारियों से बचा जा सकता है. यह जानकारी केवल रोग प्रतिरोध के लिये है.
रोग होने पर अपने डॉक्टर से अविलम्ब उपचार करवाईये.
पाइये हर प्रमाणित लेख सीधे अपनी ईमेल में, और फुर्सत में पढ़िये
निजी स्वास्थ्य सलाह लेने के लिए इस लिंक पर विवरण दीजिये
हमारे फेसबुक ग्रुप को ज्वाइन करने के लिये यहाँ क्लिक कीजिये