रीठे को बवासीर (Piles) का आसान अचूक उपाय माना जाता है.
बवासीर के इलाज का यह आयुर्वेद का नुस्खा कई वैद्यों, सन्यासियों द्वारा प्रचारित व प्रसारित किया जाता है.
ऐसी अवधारणा है कि इस नुस्खे के उपयोग से 100 में से 80-90 मरीज लाभावान्तित हो जाते हैं.
यानि कि यह योग 80- 90 प्रतिशत तक सफल है.
आईये जानते हैं क्या होता है बवासीर रोग और क्या है बवासीर (Piles) का आसान अचूक उपाय.
क्या होता है बवासीर रोग
बवासीर के रोग में गुदा के अंदर या द्वार में मस्से उभर आते हैं.
ये दो प्रकार के होते हैं.
यदि मस्से सख्त होते हैं तो इसे वादी बवासीर कहा जाता है.
इस प्रकार की बवासीर में हलकी सी कब्ज़ होने पर मल का निकास सही से नहीं हो पाता
और ये मस्से उग्र होकर अपने अंदर रक्त संचित कर ने लगते हैं और अपना आकार बढाने लगते हैं.
वादी बवासीर के मस्से जब रक्त से भरे हुए किसी छोटे अंगूर की भांति गुदा की अंदरूनी या द्वार की सतह पर लटकने लगते हैं
और ज़रा सा मलावरोध होने के कारण फट जाते हैं, तो इनसे रक्त निकलना आरम्भ हो जाता है.
इसे ही खूनी बवासीर कहा जाता है.
इसमें असह्य पीड़ा तो होती ही है.
इसका आक्रमण होने पर रोगी का चेहरा निस्तेज भी हो जाया करता है.
रीठा है बवासीर (Piles) का आसान अचूक उपाय
बीज रहित आधा किलो अरीठे ( Soapberry) के फलों को लोहे की कढाई में डालकर आंच पर तब तक चढ़ाए रखे
जब तक वह जल कर कोयले की तरह हो जाए.
तदुपरांत इसे आंच पर से उतार कर सामान मात्रा में पपडिया कत्था मिला दें
और फिर दोनों का चूर्ण बना लें.
औषधि तैयार है.
इस तैयार औषधि चूर्ण की एक रत्ती मात्रा (लगभग 120 मिलीग्राम) मक्खन या मलाई के साथ सुबह-शाम लेते रहें.
सात या ग्यारह दिन तक यह दवाई लेनी होती है.
इस औषिधि को मात्र सात दिन तक लेने से ही
कब्ज, बवासीर की खुजली, बवासीर खून का बहना आदि ठीक होकर मरीज को राहत महसूस होती है.
छ: महीने के बाद फिर से यह कोर्स दोहरा लेना चाहिए.
इस प्रकार, दो तीन बार लेने से रोग से सदा के लिए छुटकारा पाना संभव है.
रीठे के अन्य नाम
संस्कृत – अरिष्ट, मागल्य
हिन्दी- रीठा, अरीठा
अंग्रेजी: Soap berries
गुजराती- अरीठा
मराठी- रीठा
मारवाड़ी- अरीठो
पंजाबी- रेठा
कर्नाटक- कुकुटेकायि
विशेष
औषिधि लेते समय सात दिन सफ़ेद नमक, मिर्च, मसाले का सेवन बिलकुल नहीं करें.
आयुर्वेदिक इलाज में पथ्यापथ्य का विशेष ध्यान रखा जाता है जो रोगों के उपचार में दवाई समान ही अनिवार्य होता है.
दिन में दो तीन बार मठा पियें, मूली खायें.
पथ्य
मूंग या चने की दाल, कुल्थी की दाल, पुराने चावलों का भात,सांठी चावल,
बथुआ, परवल, तोरई, करेला, कच्चा पपीता, मूली
गुड, दूध, घी, मक्खन, काला नमक, सरसों का तेल, पका बेल , सोंठ आदि पथ्य है
रोगी को दवा सेवन काल में इनका ही सेवन करना चाहिए.
अपथ्य
उड़द, राजमाह, लोबिया, सेम, भारी तथा भुने पदार्थ,
अरबी, कचालू, धूप या ताप, अपानुवायु को रोकना, साइकिल की सवारी, सहवास,
कड़े आसन पर बैठना आदि, ये सभी बवासीर के लिए हानिकारक होते हैं.