बहेड़ा रस में मधुर, कषैला, गुण में हल्का, खुश्क, प्रकृति में गर्म, विपाक में मधुर,
त्रिदोषनाशक, उत्तेजक, धातुवर्द्धक, पोषक, रक्तस्तम्भक, दर्द को नष्ट करने वाला तथा आंखों के लिए गुणकारी होता है।
यह कब्ज, पेट के कीड़े, सांस, खांसी, बवासीर, अपच, गले के रोग, कुष्ठ, स्वर भेद,
आमवात, त्वचा के रोग, कामशक्ति की कमी, बालों के रोग, जुकाम तथा हाथ-पैरों की जलन में लाभकारी होता है।
जानते हैं बहेड़ा के 36 गुण, उपयोग, लाभ और फायदों के बारे में.
बहेड़ा की पहचान
बहेड़ा या बिभीतक (Terminalia bellirica) के पेड़ बहुत ऊंचे, फैले हुए और लंबे होते हैं, लगभग सभी प्रदेशों में पाये जाते हैं।
इसके पेड़ 18 से 30 मीटर तक ऊंचे होते हैं जिसकी छाल लगभग 2 सेंटीमीटर मोटी होती है।
बहेड़ा पेड़ पहाडों और ऊंची भूमि में अधिक मात्रा में पाये जाते हैं।
इसके पत्ते बरगद के पत्तों के समान होते हैं.
इसकी छाया स्वास्थ्य के लिए लाभदायक होती है।
पत्ते लगभग 10 सेंटीमीटर से लेकर 20 सेंटीमीटर तक लम्बे तथा और 6 सेंटीमीटर से लेकर 9 सेंटीमीटर तक चौडे़ होते हैं।
फल अण्डे के आकार का गोल और लम्बाई में 3 सेमी तक होता है, जिसे बहेड़ा के नाम से जाना जाता है।
इसके अंदर एक मींगी निकलती है, जो हल्की मीठी होती है।
औषधि के रूप में बहेड़ा का उपयोग अधिकतर इसके फल के छिलके का उपयोग किया जाता है।
बहेड़ा की खेती नहीं की जाती है
विभिन्न भाषाओं में नाम
हिन्दी बहेड़ा
संस्कृत विभीतक
अंग्रेजी बेलेरिक मिरोबोलम
मराठी बहेड़ा
गुजराती बहेड़ां
बंगाली बहेड़े
कर्नाटकी तारीकायी
मलयालम तान्नि
तमिल अक्कनडं
तेलगू बल्ला
फारसी वलैले
लैटिन टर्मिनेलिया बेलेरिका ( Terminalia belerica)
स्वरूप
बहेड़े का पेड़ जंगलों और पहाड़ों पर होता है।
इसके पत्ते बरगद के पत्तों के समान होते हैं।
फूल बहुत ही छोटे-छोटे होते हैं।
इसके फल वरना के गुच्छों के फल के समान गुच्छों में लगते हैं।
बहेड़े की छाल का उपयोग औषधि के रूप में किया जाता है।
और बहेड़ा शीतल होता है।
बहेड़ा के उपयोग – 36 गुण
बहेड़ा कब्ज को दूर करने वाला होता है।
यह मेदा (आमाशय) को शक्तिशाली बनाता है, भूख को बढ़ाता है, वायु रोगों को दस्तों की सहायता से दूर करता है.
पित्त के दोषों को भी ठीक करता है, सिर दर्द को दूर करता है, बवासीर को खत्म करता है.
आंखों व दिमाग को स्वस्थ व शक्तिशाली बनाता है, यह कफ को खत्म करता है तथा बालों की सफेदी को मिटता है।
बहेड़ा-कफ तथा पित्त को नाश करता है तथा बालों को सुन्दर बनाता है।
यह स्वर भंग (गला बैठना) को ठीक करता है।
बहेड़ा नशा, खून की खराबी और पेट के कीड़ों को नष्ट करता है तथा क्षय रोग (टी.बी) तथा कुष्ठ (कोढ़, सफेद दाग) में भी बहुत लाभदायक होता है।
बहेड़े की गिरी अथवा मींगी प्यास मिटाती है।
यह उल्टी को रोकती है, कफ शांत करती है तथा वायु दोषों को दूर करती है।
यह हल्की, कषैली और नशीली होती है।
आंवला की मींगी के गुण भी इसी के समान होता है।
इसका सुरमा आंखों के फूले को दूर करता है।
वैज्ञानिक मतानुसार :
बहेड़ा की रासायनिक संरचना का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि
इसके फल में 17 प्रतिशत टैनिन, 25 प्रतिशत मींगी में हलके पीले रंग का तेल, सैपोनिन और राल पाए जाते हैं।
आईये जानते हैं इसके प्रचलित नुस्खों के बारे में, विस्तार से.
1 हाथ-पैर की जलन में
बहेड़े की मींगी (बीज) पानी के साथ पीसकर हाथों और पैरों में लगाने से जलन में आराम मिलता है।
2 दाह और जलन
बहेडे़ के गूदे को बारीक पीसकर शरीर पर लेप करने से सभी भी प्रकार की जलन दूर हो जाती है।
3 कफ
बहेड़े के पत्ते और उससे दुगुनी चीनी का काढ़ा बनाकर पीने से कफरोग दूर हो जाता है।
बहेड़ा की छाल का टुकड़ा मुंह में रखकर चूसते रहने से खांसी मिट जाती है और बलगम आसानी से निकल जाता है।
खांसी की गुदगुदी बंद हो जाती है।
4 कामशक्ति वर्धक
रोजाना एक बहे़ड़े का छिलका खाने से कामशक्ति तेज हो जाती है, स्तम्भन काल भी बढ़ जाता है.
5 आंखों की रोशनी बढ़ाने के लिए
बहेड़े का छिलका और मिश्री बराबर मात्रा में मिलाकर एक चम्मच सुबह-शाम गर्म पानी से लेने से दो-तीन सप्ताह में आंखों की रोशनी तेज़ हो जाती है।
6 कब्ज
बहेड़े के आधे पके हुए फल को पीस लेते हैं।
इसे रोजाना एक-एक चम्मच की मात्रा में थोड़े से पानी से लेने से पेट की कब्ज समाप्त हो जाती है और पेट साफ हो जाता है।
7 श्वास या दमा
बहेड़े को थोड़े से घी से चुपड़कर पुटपाक विधि से पकाते हैं।
जब वह पक जाए तब मिट्टी आदि हटाकर बहेड़ा को निकाल लें और इसका वक्कल मुंह में रखकर चूसने से खांसी, जुकाम, स्वरभंग (गला बैठना) आदि रोगों में बहुत जल्द आराम मिलता है।
40 ग्राम बहेड़े का छिलका, 2 ग्राम फुलाया हुआ नौसादर और 1 ग्राम सोनागेरू लें।
अब बहेड़े के छिलकों को बहुत बारीक पीसकर छान लें और उसमें नौसादर व गेरू भी बहुत बारीक करके मिला देते हैं।
इसे सेवन करने से सांस के रोग में बहुत लाभ मिलता है।
मात्रा : उपयुर्क्त दवा को 2-3 ग्राम तक शहद के साथ सुबह-शाम सेवन करना चाहिए। इससे दमा रोग ठीक हो जाता है।
250 ग्राम बहेड़े के फल का गूदा लेकर पीसकर छान लें और फिर इसमें 10 ग्राम फूलाया हुआ नौसादर और 5 ग्राम असली सोनागेरू लेकर पीसकर मिला दें।
अब इस तैयार सामग्री को 3 ग्राम रोजाना सुबह व शाम को शहद में मिलाकर चाटने से सांस लेने में फायदा मिलता है
तथा इससे धीरे-धीरे दमा भी खत्म हो जाता है।
बहेड़े के छिलकों का चूर्ण बनाकर बकरी के दूध में पकायें
और ठण्डा होने पर शहद के साथ मिलाकर दिन में दो बार रोगी को चटाने से सांस की बीमारी दूर हो जाती है।
8 बालों का गिरना
2 चम्मच बहेड़े के फल का चूर्ण लेकर एक कप पानी में रात भर भिगोकर रख देते हैं और सुबह इसे बालों की जड़ पर लगाते हैं।
इसके एक घंटे के बाद बालों को धो डालते हैं। इससे बालों का गिरना बंद हो जाता है।
9 अतिसार (दस्त)
बहेड़ा के फलों को जलाकर उसकी राख को इकट्ठा कर लेते हैं।
इसमें एक चौथाई मात्रा में कालानमक मिलाकर एक चम्मच दिन में दो-तीन बार लेने से अतिसार के रोग में लाभ मिलता है।
2 से 5 ग्राम बहेड़े के पेड़ की छाल और 1-2 लौंग को 1 चम्मच शहद में पीसकर दिन में 3-4 बार रोगी को चटाने से दस्त बंद हो जाते हैं।
बहेड़े को भूनकर खाने से भी पुराने दस्त बंद हो जाते हैं।
10 पीलिया
बहेड़ा चूर्ण के फायदे पीलिया में भी होते हैं.
बहेड़ा के छिलके का चूर्ण एक चम्मच शहद के साथ सुबह-शाम नियमित रूप से लेने से पीलिया का रोग दूर हो जाता है।
11 मुंहासे
बीजों की गिरी का तेल रोजाना सोते समय मुंहासों पर लगाने से मुंहासे साफ हो जाते हैं और चेहरा साफ हो जाता है।
12 शक्ति बढ़ाने के लिए
आंवले के मुरब्बे के साथ बहेड़ा को रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से शरीर मजबूत और शक्तिशाली हो जाता है।
13 बच्चों का मलावरोध
मल रुकने पर बहेडे़ का फल पत्थर से पीसकर आधा चम्मच की मात्रा में एक चम्मच दूध के साथ बच्चे को सेवन कराने से पेट साफ हो जाता है।
14 कोढ़ (कुष्ठ रोग)
बहेड़े के पेड़ की छाल का काढ़ा स्वित्र कोढ़ को नष्ट करता है।
15 सांस की खांसी
एक बहेड़ा लेकर उसके ऊपर घी चुपड़ दें और आटे में बंदकर आग पर रखकर पका लेते हैं।
इसके बाद बहेड़ा को निकालकर उसकी छाल को निकाल लेते हैं।
यह छाल अकेले ही बहुत ही तेज सांस और खांसी को दूर करती है।
थोड़ी-थोड़ी छाल मुंह में डालकर चूसना चाहिए।
इसका प्रयोग करते समय खटाई, मिर्च और तेल का परहेज करना चाहिए और मैथुन क्रिया भी नहीं करनी चाहिए।
16 कंठसर्प पर
बहेड़े की वृक्ष की छाल को पानी में पीसकर पिलाना चाहिए।
पालतू पशुओं को कंठ सर्प होने पर भी यही औषधि देनी चाहिए।
17 पालतू पशुओं के घाव में कीड़े पर जाने पर
पशुओं के घाव में कीड़े हो जाने पर बहेड़े की छाल को मोटी रोटी के साथ खिलाना चाहिए।
18 भिलावा से उत्पन्न छाले
बहेड़े के गूदे को घिसकर लगाना चाहिए अथवा बहेडे़ के गूदे, मधुयष्टि, नागरमोथा और चंदन का लेप करना चाहिए।
19 स्वरभेद (गला बैठना)
बहेड़े की छाल को आग में भूनकर चूर्ण बना लें इस चूर्ण को लगभग 480 मिलीग्राम तक्र (मट्ठा) के साथ सेवन करने से स्वरभेद (गला बैठना) ठीक हो जाता है।
20 मूत्रकृच्छ
बहेड़ा की फल की मींगी का चूर्ण 3-4 ग्राम की मात्रा में शहद मिलाकर सुबह-शाम चाटने से मूत्रकृच्छ (पेशाब में जलन) और पथरी में लाभ मिलता है।
21 पित्तज प्रमेह
बहेड़ा, रोहिणी, कुटज, कैथ, सर्ज, छत्तीबन, कबीला के फूलों का चूर्ण बनाकर 2 से 3 ग्राम की मात्रा में लेकर 1 चम्मच शहद के साथ मिलाकर पित्तज प्रमेह के रोगी को दिन में तीन बार देना चाहिए।
22 नपुंसकता
3 ग्राम बहेड़े के चूर्ण में 6 ग्राम गुड़ मिलाकर रोजाना सुबह-शाम सेवन करने से नपुंसकता मिटती है
और कामोत्तेजना बढ़ती है।
23 आंत उतरना
आंत उतरने पर बहेड़े का लेप करने से पहले ही दिन से फायदा हो जाता है।
24 बंद गांठ
अरंडी के तेल में बहेड़े के छिलके को भूनकर तेज सिरके में पीसकर बंदगाठ पर लेप करने से 2-3 दिन में ही बंदगांठ बैठ जाती है।
25 पित्त की सूजन
बहेड़े की मींगी का लेप करने से पित्त की सूजन दूर हो जाती है।
आंख की पित्त की सूजन पर बहेड़े का लेप करने से लाभ मिलता है।
26 ज्वर(बुखार)
40 से 60 मिलीलीटर बहेड़े का काढा़ सुबह-शाम पीने से पित्त, कफ, ज्वर आदि रोगों में लाभ मिलता है।
27 खुजली
फल की मींगी का तेल खुजली के रोग में लाभकारी होता है तथा यह जलन को मिटाता है।
इसकी मालिश से जलन और खुजली मिट जाती है।
28 अपच
भोजन करने के बाद 3 से 6 ग्राम विभीतक (बहेड़ा) फल की फंकी लेने से भोजन पचाने की क्रिया तेज होती है।
इससे आमाशय को ताकत मिलती है।
29 सूखी खांसी
एक बहेड़े के छिलके का टुकड़ा या छीले हुए अदरक का टुकड़ा सोते समय मुंह में रखकर चूसने से बलगम आसानी से निकल जाता है।
इससे सूखी खांसी और दमा का रोग भी मिट जाता है।
3 से 6 ग्राम बहेड़े का चूर्ण सुबह-शाम गुड़ के साथ खाने से खांसी के रोग में बहुत लाभ मिलता है।
बहेड़े की मज्जा अथवा छिलके को हल्का भूनकर मुंह में रखने से खांसी दूर हो जाती है।
या
250 ग्राम बहेड़े की छाल, 15 ग्राम नौसादर भुना हुआ, 10 ग्राम सोना गेरू को एकसाथ पीसकर रख लेते हैं।
यह 3 ग्राम चूर्ण शहद में मिलाकर खाने से सांस का रोग ठीक हो जाता है।
30 कनीनि का प्रदाह
2 भाग पीली हरड़ के बीज, 3 भाग बहेड़े के बीज और 4 आंवले की गिरी को एक साथ पीसकर और छानकर पानी में भिगोकर गोली बनाकर रख लें।
जरूरत पड़ने पर इसे पानी या शहद में मिलाकर आंखों में रोजाना 2 से 3 बार लगाने से कनीनिका प्रदाह का रोग दूर हो जाता है।
31 सीने का दर्द
सीने के दर्द में बहेड़ा जलाकर चाटना लाभकारी होता है।
32 हिचकी का रोग
10 ग्राम बहेड़े की छाल के चूर्ण में 10 ग्राम शहद मिलाकर रख लें।
इसे थोड़ा-थोड़ा करके चाटने से हिचकी बंद हो जाती है।
33 कमजोरी
लगभग 3 से 9 ग्राम बहेड़ा का चूर्ण सुबह-शाम शहद के साथ सेवन करने से कमजोरी दूर होती है और मानसिक शक्ति बढ़ती है।
34 दिल की तेज धड़कन
बहेड़ा के पेड़ की छाल का चूर्ण दो चुटकी रोजाना घी या गाय के दूध के साथ सेवन करने से दिल की धड़कन सामान्य हो जाती है।
35 स्वर यंत्र में जलन
3 ग्राम से 9 ग्राम बहेड़ा का चूर्ण सुबह और शाम शहद के साथ सेवन करने से स्वरयंत्र शोथ (गले में सूजन) और गले में जलन दूर हो जाती है। साथ ही इसके सेवन से गले के दूसरे रोग भी ठीक हो जाते हैं।
36 गले के रोग में
छोटी पीपल, बहेड़े का छिलका और सेंधानमक को बराबर मात्रा में लेकर और पीसकर 6 ग्राम गाय के दही में या मट्ठे में मिलाकर खाने से स्वर-भेद (गला बैठना) दूर हो जाता है।
मुरब्बा
बहेड़े को बर्तन में डालकर उबाल लें.
उसके पानी में शक्कर डालकर मुरब्बे के अनुसार चाशनी तैयार कर ले.
फिर उसमें उबले हुए बहेड़े तथा छोटी पीपल का चूर्ण डालकर किसी बर्तन में रख दे।
ज्यों-ज्यों वह मुरब्बा पुराना होता जाएगा, त्यों-त्यों विशेष गुणकारी बनता जायेगा।
इस मुरब्बे से खांसी तुरन्त दूर हो जाती है।