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हरड है हर रोग हर वनौषधि – जानिये 12 विशेष उपयोग

हरड अथवा हरीतकी (Myrobalan) का आयुर्वेद में एक विशेष स्थान है.

आयुर्वेद का वनस्पति विज्ञान जिसे “भावप्रकाश ग्रन्थ” के नाम से जाना जाता है, हरीतकी से ही प्रारंभ होता है.

जानते हैं क्यों हरड है हर रोग हर वनौषधि.

उल्लेख है कि अश्वनीकुमारों ने प्रजापति दक्ष से हरीतकी की उत्पत्ति व गुणों के बारे में पूछा.

तो दक्ष ने कहा कि…

अमृतपान करते हुए इंद्र के मुख से देवात एक बूँद अमृत पृथ्वी पर गिर पड़ी

उसी दिव्य अमृत से सात जाति वाली हरीतकी उत्पन्न हुई (भावप्रकाश 1-5)

विजया, रोहिणी, पूतना, अमृता, अभया, जीवन्ती व चेतकी;

ये हरड के सात जाति भेद बताये गए हैं.

यह भी बताया गया है कि विन्ध्यपर्वत पर विजया,

हिमालय पर चेतकी,

सिन्धु क्षेत्र में पूतना,

चंपादेश में अमृता और अभया,

सौराष्ट्र में जीवन्ती तथा सब जगह पर रोहिणी पैदा होने से सात हैं.

पीली हरड़

हरीतकी को वैद्यों ने चिकित्सा साहित्य में अत्यधिक सम्मान देते हुए उसे अमृतोपम औषधि कहा है।

राज बल्लभ निघण्टु के अनुसार-

यस्य माता गृहे नास्ति, तस्य माता हरीतकी।

कदाचिद् कुप्यते माता, नोदरस्था हरीतकी ॥

(अर्थात्  जिनके घर माँ  नहीं होती, हरीतकी उनकी माँ समान हित करने वाली होती है।

माता तो कभी-कभी नाराज़ भी हो जाती है, परन्तु खायी हुई हरड़ कभी भी अपकारी नहीं होती।)

हरड़ का पेड़ पहचान

हरीतकी (वानस्पतिक नाम: Terminalia chebula) एक ऊँचा वृक्ष होता है.

यह पूरे भारत में, विशेषतः निचले हिमालय क्षेत्र में रावी तट से लेकर पूर्व बंगाल-आसाम तक पाँच हजार फीट की ऊँचाई पर पाया जाता है।

सामान्य बोलचाल की हिन्दी में इसे ‘हर्रे’ भी कहते हैं।

आयुर्वेद में इसे अमृता, प्राणदा, कायस्था, विजया, मेध्या आदि नामों से जाना जाता है|

हरड़ का वृक्ष 60 से 80 फुट तक ऊँचा होता है|

इसकी छाल गहरे भूरे रंग की होती है, पत्ते आकार में वासा के पत्र के समान 7 से 20 सेण्टीमीटर लम्बे, डेढ़ इंच चौड़े होते हैं।

फूल छोटे, पीताभ श्वेत लंबी मंजरियों में होते हैं।

फल एक से तीन इंच तक लंबे और अण्डाकार होते हैं, जिसके पृष्ठ भाग पर पाँच रेखाएँ होती हैं।

कच्चे फल हरे तथा पकने पर पीले धूमिल होते हैं।

प्रत्येक फल में एक बीज होता है।

अप्रैल-मई में नए अंकुर आते हैं। फल शीतकाल में लगते हैं।

पके फलों का संग्रह जनवरी से अप्रैल के मध्य किया जाता है।

छोटी हरड़, छोटी हर्र अथवा काली हरद

हरद की किस्में

दो प्रकार की हरड़ बाजार में मिलती हैं – बड़ी हर्र और छोटी हर्रे।

बड़ी हरड में पत्थर के समान सख्त गुठली होती है, जबकि छोटी हरड में कोई गुठली नहीं होती,

ऐसे फल जो गुठली पैदा होने से पहले ही पेड़ से गिर जाते हैं या तोड़कर सुखा लिया जाते हैं उन्हें छोटी हरड़ या काली हर्र कहते हैं।

आयुर्वेद के जानकार छोटी हरड़ का उपयोग अधिक निरापद मानते हैं क्योंकि आँतों पर उनका प्रभाव सौम्य होता है, तीव्र नहीं।

आयुर्वेदाचार्यों के अनुसार हरड़ के 3 भेद और बताये गए हैं-

1 पका फल या बड़ी हरड़,

2 अधपका फल पीली हरड़ (इसका गूदा काफी मोटा स्वाद में कसैला होता है।)

3 कच्चा फल जिसे ऊपर छोटी हरड़ के नाम से बताया गया है।

इसका रंग गहरा भूरा-काला तथा आकार में यह छोटी होती है। यह गंधहीन लेकिन स्वाद में तीखी होती है।

फल के स्वरूप, प्रयोग एवं उत्पत्ति स्थान के आधार पर भी हरड़ को कई वर्ग भेदों में बाँटा गया है.

ये तीन वर्गीकरण’ ही सर्व प्रचलित हैं।

इन तीन किस्मों को ही यूनानी पद्धति में छोटी स्याह, पीली जर्द और बड़ी काबुली के नाम से जाना जाता है.

औषधि के लिये फल ही प्रयुक्त होते हैं एवं उनमें भी डेढ़ तोले (18 ग्राम) से अधिक भार वाली भरी हुई, छिद्र रहित छोटी गुठली व बड़े खोल वाली हरड़ उत्तम मानी जाती है।

भाव प्रकाश निघण्टु के अनुसार जो हरड़ जल में डूब जाए वह उत्तम है।

हरड - हर रोग हर वनौषधि - 12 विशेष उपयोग

क्रियाशील तत्व

हरड़ में ग्राही (एस्टि्रन्जेन्ट) पदार्थ होते हैं,

टैनिक अम्ल (बीस से चालीस प्रतिशत)

गैलिक अम्ल,

शेबूलीनिक अम्ल और

म्यूसीलेज।

इस में उपलब्ध एन्थ्राक्वीनिन जाति के ग्लाइको साइड्स ही इसे एक रेचक वनस्पति बनाते हैं.

इनमें से एक की रासायनिक संरचना सनाय के ग्लाइको साइड्स सिनोसाइड ‘ए’ से मिलती जुलती है।

इसके अतिरिक्त हरड़ में 10 प्रतिशत जल, 13.9 से 16.4 प्रतिशत नॉन टैनिन्स और शेष अघुलनशील पदार्थ होते हैं।

वैज्ञानिक शोध के अनुसार ग्लूकोज, सार्बिटाल, फ्रक्टोस, स्क्रोज़, माल्टोस एवं अरेबिनोज हरड़ के प्रमुख कार्बोहाइड्रेट हैं।

18 प्रकार के मुक्तावस्था में अमीनो अम्ल पाए जाते हैं।

फास्फोरिक तथा सक्सीनिक अम्ल भी उसमें होते हैं।

जैसे जैसे फल पकता चला जाता है, उसका टैनिक एसिड घटता एवं अम्लता बढ़ती है।

बीज में एक तीव्र तेल होता है।

हरड है हर रोग हर वनौषधि

हरीतकी एक टॉनिक तो है ही, साथ ही पेट की बीमारियों के साथ साथ अन्य कई बीमारियों में बेहद लाभ पहुंचाती है|

हरड़ के कुछ लाभ इस प्रकार बताये गए है:

  • इससे बनी गोलियों का सेवन करने से भूख बढ़ती है।
  • हरड़ का चूर्ण खाने से कब्ज से छुटकारा मिलता है।
  • उल्टी होने पर हरड़ और शहद का सेवन करने से उल्टी आना बंद हो जाता है।
  • हरड़ को पीसकर आंखों के आसपास लगाने से आंखों के रोगों से छुटकारा मिलता है।
  • भोजन के बाद अगर पेट में भारीपन महसूस हो तो हरड़ का सेवन करने से राहत मिलती है।
  • हरड़ का सेवन लगातार करने से शरीर में थकावट महसूस नहीं होती और स्फूर्ति बनी रहती है।
  • इसका सेवन गर्भवती स्त्रियों को नहीं करना चाहिए।
  • हरड़ पेट के सभी रोगों से राहत दिलवाने में मददगार साबित हुई है।
  • इसका सेवन करने से खुजली जैसे रोग से भी छुटकारा पाया जा सकता है।
  • अगर शरीर में घाव हो जांए हरड़ से उस घाव को भर देना चाहिए।

12 विशेष उपयोग

हरड के उपयोग लगभग हर प्राकृतिक चिकत्सा पद्धत्ति में मिलते हैं. चाहे वह आयुर्वेद हो, यूनानी हो, तिब्बतन हो या फिर बौद्धिक चिकित्सा.

आयुर्वेद विशेषज्ञों ने हरड के भिन्न भिन्न प्रकार से उपयोग कर आश्चर्यजनक परिणाम पाए हैं.

1. आंव, मरोड़ में

बड़ी हरड़ के छिलके, अजवाइन एवं सफेद जीरा बराबर बराबर मात्रा में लेकर चूर्ण बनाकर रख लें।

इस चूर्ण को प्रतिदिन सुबह—शाम दही में मिलाकर लेते रहने से सूखी आंव तथा मरोड़ में लाभ पहुंचता है।

पेटदर्द होने पर हरड़ को घिसकर गुनगुने पानी के साथ लेने पर तत्काल लाभ होता है।

2. मुंह के छाले

काली हरड़ को महीन पीसकर मुंह तथा जीभ के छालों पर लगाते रहने से छालों से मुक्ति मिलती है।

प्रतिदिन दो—चार बार लगाते रहने से हरेक प्रकार के छालों से मुक्ति मिलती है।

3. लिवर टॉनिक

पीली हरड़ के छिलके का चूर्ण तथा पुराना गुड़ बराबर मात्रा में लेकर मटर के दानों के बराबर गोली बनाकर रख लें।

इन गोलियों को दिन में दो बार सुबह—शाम पानी के साथ एक महीनें तक लेते रहने से यकृत लीवर एवं प्लीहा के रोग दूर हो जाते हैं।

4. खून की कमी अथवा पांडुरोग (Anemia)

छोटी हरड़ के चूर्ण को गाय के घी के साथ मिलाकर सुबह —शाम खाते रहने से पांडुरोग में लाभ मिलता है।

सुबह खाली पेट एक चम्मच त्रिफला का क्वाथ काढ़ा पीते रहने से खून की कमी दूर हो जाती है

5. पुरानी पुरानी कब्ज के लिये हरड़

पुराने कब्ज के रोगी को नित्यप्रति भोजन के आधा घंटा बाद डेढ़—दो ग्राम की मात्रा में हरड़ का चूर्ण गुनगुने पानी के साथ लेते रहने से फायदा होता है।

6. प्रोस्टेट उपचार

एक मध्यम आकार की पीली हरड़ के दो टुकड़े छिलके सहित कांच के गिलास में इस तरह भिगो दें कि वह भीगने पर पूरी तरह फूल जाये।

चौदह घण्टे भीगने के बाद हरड़ की गुल्ली को निकालकर उसके अन्दर के बीजों को निकालकर गुल्ली को खूब चबा—चबाकर खायें.

ऊपर से हरड़ वाला पानी पी लें।

एक माह तक इस विधि का सेवन लगातार करते रहने से ‘प्रोस्टेट ग्लैण्ड’ की सूजन ठीक हो जाती है।

7. नेत्र ज्योतिवर्धक

गर्मी के कारण नेत्र में जलन होती हो, नेत्र लाल हो जाते हों, नेत्र से पानी गिरता हो तो त्रिफला के जल से आंखों को धोते रहने से आराम मिलता है।

हरड़, सेंधा नमक तथा रसौंत को पानी में पीसकर आंख के ऊपरी भाग के चारों तरफ लेप करने से आंख आना, आंखों की सूजन, व दर्द नष्ट हो जाते हैं।

8. गले की खराश

हरड़ के काढ़े में चाशनी मिलाकर पीने से गले के रोगों में लाभ मिलता है।

छोटी पीपल और बड़ी हरड़ का छिलका समान मात्रा में लेकर पीस लें।

तीन ग्राम की मात्रा में सुबह ताजे जल के साथ लेते रहने पर बैठा गला खुल जाता है।

9. बाल विकार

जिन नवजात शिशुओं के भौहें नहीं हों, हरड़ को लोहे पर घिसकर, सरसों तेल के साथ मिलाकर शिशु के भौंह वाले स्थान पर धीरे—धीरे मालिश करते रहने से धीरे-धीरे भौंह उगने लगते हैं।

अगर सप्ताह में एक बार बच्चे को हरड़ पीसकर खिलाया जाता रहे, तो उसे जीवन में कब्ज का सामना कभी नहीं करना पड़ता है।

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10. गर्भस्थापक

जिन स्त्रियों को गर्भपात की बार—बार शिकायत हो, उन्हें त्रिफला चूर्ण के साथ लौह भस्म मिलाकर लेते रहना चाहिए।

11. रसायन योग

रात को सोते समय थोड़ा—सा त्रिफला चूर्ण दूध के साथ पीते रहने से मानसिक शक्ति बढ़ती है.

शीघ्र स्खलन अथवा शीघ्र पतन का भय दूर हो जाता है।

12. सफ़ेद दाग (Leucoderma) व दाद

नित्यप्रति प्रात: काल शीतल जल के साथ तीन ग्राम की मात्रा में छोटी हरड़ का चूर्ण सेवन करते रहने से सफेद दाग मिटने शुरू हो जाते हैं।

शरीर के जिन अंगों पर दाद हो, वहां बड़ी हरड़ को सिरके के साथ घिसकर लगाने से लाभ होता है।

हरीतकी के ऋतु अनुसार अनुपान

हरीतकी एक प्रभावी रसायन (Tonic) व औषधि भी है|

आयुर्वेद में इसके गुणों का लाभ लेने के लिए विभिन्न ऋतुओं में इसके सेवन की विधि बताई है जो इस प्रकार है

  • वर्षा ऋतु में सेंधा नमक के साथ।
  • शरद ऋतु में शकर के साथ।
  • हेमंत ऋतु में सोंठ के साथ।
  • शिशिर ऋतु में पीपल के साथ।
  • वसंत ऋतु में शहद के साथ।

सारशब्द

हरीतकी में इतने गुण हैं जो किसी भी एक शाक या फल में नहीं.

चाहे वह सेव हो, संतरा हो, गोभी हो या गाजर.

आरोग्य के लिये, विशेषकर पेट के लिये हरीतकी से बेहतर कोई विकल्प नहीं.

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