जीवन में सुख दुःख, हार जीत, राग द्वेष लगे ही रहते हैं.
किसी वस्तु की चाह करना राग है, और उसके न मिलने पर मन के विषाद को द्वेष कहते हैं.
समय बीतने के साथ साथ, जीवन के दुखद अनुभवों के कारण, मन में कुंठा, अनिश्चितता, भय और खिन्नता के भाव संचित हो जाया करते हैं.
ये भाव हमारी नैसर्गिक शक्ति को प्रभावित कर धीरे धीरे आत्मबल, निर्भयता, सृजनता इत्यादि सकारात्मक प्रवृतियों को कमज़ोर करते हैं.
नकारात्मकता बढ़ने पर हमें भविष्य के हर कार्य और परिस्थिति में कमियां दिखने लगती हैं न कि सकारात्मकता.
आत्मबल कम होने के कारण तनाव, अनिद्रा, हाइपरटेंशन जैसे रोग भी हो जाया करते हैं.
ध्यान (Meditation) की जरुरत और विधि
आपने देखा होगा कंप्यूटर और मोबाइल फ़ोन अकसर हैंग (hang) हो जाया करते हैं.
यह इसलिए, क्योकि जब उनकी मेमोरी (RAM) में बहुत सारे प्रोग्राम चलने लगते हैं तो यह प्रोग्राम ही आपस में उलझ जाते हैं.
नतीजतन एक भी प्रोग्राम ठीक से काम नहीं कर पाता, और सिस्टम hang हो जाता है.
ऐसी स्थिति में हम इन्हें एक बार बंद कर दोबारा चालू करते हैं जिसे हम reboot कहते हैं.
जैसे ही reboot किया, ये ठीक से काम करने लग जाते हैं.
ठीक यही हाल हमारे मन का भी है.
बीते समय की स्मृतियां, खिन्नताएँ, दुःख, संताप मन पर इतने हावी हो जाते हैं कि हम सही से सोच भी नहीं पाते.
इसलिये, हमें भी अपने मन मस्तिष्क के साथ वही करना चाहिए जो हम मोबाइल फ़ोन या कंप्यूटर के साथ करते हैं.
इनकी भी बिजली थोड़ी देर के लिए बंद कर देनी चाहिए.
इस बिजली बंद करने की क्रिया को ही ध्यान अथवा meditation कहते हैं.
आप जागे हुए हैं लेकिन मन विचारशून्य है.
न अच्छे विचार न बुरे विचार.
ध्यान की आसान विधि
सूर्योदय से पहले सुबह जागते ही नित्यकर्मों से निवृत हो बिस्तर पर कमलासन या सुखासन में बैठ जाईये.
ये वैसे ही आसन हैं जैसे आप चित्रों में भगवान् बुद्ध या शिव को ध्यानस्थ अवस्था में देखते हैं.
आँखें बंद कर लीजिये.
जो विचार आते हैं आने दीजिये.
उन विचारों को साक्षी भाव से देखिये.
ठीक ऐसे, जैसे कि वे विचार न होकर छोटे बच्चे हों.
ये विचारनुमा बच्चे खूब हुडदंग मचाएंगे.
लेकिन आप इनके हुडदंग में हस्तक्षेप न करें.
बस इन्हें मन की आँखों से देखते रहें.
बीच बीच में हलके से अपनी साँसों के आने और जाने पर ध्यान करें.
बिलकुल साक्षी भाव से.
मतलब, अपनी साँसों के आवागमन को भी ऐसे ही महसूस करें जैसे कि वे आपकी अपनी साँसें न होकर कोई अन्य वस्तु हों.
जब आप अपनी साँसों का अवलोकन कर रहे होंगे तो बीच बीच में विचारों वाले बच्चे भी आपको परेशान करते रहेंगे.
उन पर ध्यान मत दें.
5-7 मिनट बाद ये बच्चे खेलकूद कर थक जायेंगे.
शांत हो जायेंगे और सो जायेंगे.
अब आप देखेंगे कि आप अपनी साँसों पर पूरा ध्यान दे पा रहे हैं.
कुछ और समय बाद आप अपनी साँसों पर भी ध्यान नहीं दे पाएंगे.
मन विचारशून्य हो जायेगा.
विचारशून्यता की यह स्थिति कुछ सेकंड्स से लेकर एक आधे मिनट तक की हो सकती है.
इस स्थिति को समाधि कहते हैं.
समाधि में जगह, समय और अपने आप का कोई भी भान नहीं रहता.
आप भूल जाते हैं कि आप कौन हैं, कहाँ हैं और दिन के किस प्रहर में हैं.
शुरुआत में आपको 15 से 20 मिनट का ध्यान करना चाहिए.
समाधि की स्थिति ध्यान में एक बार, दो बार या अधिक बार आ सकती है.
ध्यान की समाप्ति
अवधि पूरी होने पर मन को शरीर भाव में लायें.
मन ही मन अपने चारों ओर के वातावरण का अवलोकन करें और आँखें धीरे धीरे खोल दें.
एक आधा मिनट बैठे रहें और फिर अपना आसन त्याग दें.
ध्यान के बाद
थोड़े समय मौन ज़रूर रखें.
मौन रखने से ध्यान की अनुभूतियाँ मन में समाहित हो जाती हैं, जो आपको रोज़ आगे बढ़ने में सहायता करेंगी.
यदि आप चाहें तो इस मौन के समय का सदुपयोग मानसिक जाप या सिमरन में किया जा सकता है.
ध्यान का समय निश्चित रखना चाहिए.
यदि सुबह 5 बजे का रखा है तो रोज़ 5 बजे ही होना चाहिए.
कुछ दिनों में ऐसा करने से आपकी नैसर्गिक उर्जा का संचय समयबद्ध होने लगता है
और आप आसानी से ध्यान करने लग जाते हैं.
मौसम के हिसाब से साल में एक दो बार ध्यान के समय को बदल भी सकते हैं.
कुछ लोग अपने समय को सूर्योदय और सूर्यास्त के हिसाब से भी रखते हैं.
आधे घंटे सूर्योदय से पहले और आधा घंटा सूर्यास्त के बाद.
ध्यान हमेशा दिन में दो बार करना चाहिए. सुबह और शाम.
सायंकाल के ध्यान की अवधि कम भी रखी जा सकती है.
लेकिन 10 मिनट से कम कभी नहीं.
ध्यान की यह विधि सरल भी है और आजकल के जीवन के हिसाब से, कारगर भी.
विशेष
यदि आप में तीव्र अध्यात्मिक इच्छा है तो हो सकता है पहले ही दिन आप ध्यान की काफी उच्च स्थिति को पा जाएँ.
अधिक मानसिक उद्वेग होने पर ध्यान करना थोडा कठिन हो जाता है.
दुःख, सदमे, राग, द्वेष, मन की मलिनता बढ़ा देते हैं.
ऐसे में हो सकता है, समाधि की स्थिति आने में 5-10 दिन या अधिक का समय लग जाए.
क्योंकि पहले कुछ दिन मन के निर्मल होने में लग जाया करते हैं.
धीरज रखिये, और रोजाना अभ्यास कीजिये.
ध्यान में कई प्रकार के अनुभव भी हो जाया करते हैं जैसे कि पूर्वाभास, अनदेखे दृश्य या घटनाएँ इत्यादि.
कईयों को ध्यान में अद्भुत ज्योति दिखती है या शब्द भी सुनाई देते हैं.
कईयों को ऐसा अनुभव होता है कि वे अपने शरीर के बाहर निकल गए हैं.
समस्याओं के अचानक समाधान भी मिलने लगते हैं.
इस प्रकार की अनुभूतियों को देवकृपा मान’ कभी भी किसी से शेयर नहीं करना चाहिए.
तो आज से ही ध्यान का अभ्यास आरम्भ कीजिये.
नतीजे आपको चौंका देंगे.
ध्यान ही हमें नैसर्गिक चिनमयता दे सकता है जो अन्य कोई भी सांसारिक वस्तु नहीं दे सकती.
मंगल कामनाएं, आपका ध्यान सफल हो.