सब्जी, सलाद के अतिरिक्त, मूली (English name: Radish, Daikon; botanical name: Raphanus sativus) आयुर्वेद चिकित्सा में भी उपयोगी होती है।
इसको अलग अलग प्रकार से प्रयोग कर रोगों का उपचार भी किया जाता है।
मूली का रंग सफेद या जामुनी लाल हो सकता है।
लेकिन अंदर का भाग हमेशा सफ़ेद ही होता है.
पत्ते नवीन सरसो के पत्तों के समान, फूल सफेद, सरसो के फूलो के आकार के, और फल भी सरसो के समान ही होते है।
उन्हें सोगरी या मुन्गरे कहते है। सोगरी की सब्जी भी बनायी जाती है.
मूली के बीज सरसो से बड़े होते है.
बीजो में उड़नशील तैल होता है।
कन्द में आर्सेनिक 0.1 मिलीग्राम प्रति 100 ग्राम में रहता है।
मूली (Radish) के औषधीय गुण
मूली भूख बढ़ाने , पेट के कीड़े नष्ट करने वाली, पाईल्स, और सभी प्रकार की सूजन को ठीक करने में उपयोगी है.
आयुर्वेद के अनुसार कच्ची मूली कटु, तिक्त, उष्ण, रुचिकारक, पाचन, मधुर, बल्य, तथा मूत्र विकार, अर्श, क्षय, श्वास, कास, नेत्ररोग, एवं
वात, पित्त, कफ और रक्त विकारो को दूर करती है।
मूली की तासीर ठंडी होती है.
![मूली के 7 औषधीय गुण मूली के आयुर्वेद गुण लाभ फायदे](https://ayurvedcentral.com/wp-content/uploads/2017/02/Radish-muli-ke-fayde-e1487576378463-300x160.png)
पुरानी मूली चरपरी, गरम, अग्निवर्धक, होती है।
मूली की फली सोगरी किंचित गरम और कफ व वात नाशक होती है।
मूली के 7 औषधीय गुण व उपयोग
आयुर्वेद चिकित्सा में मूली को रोगानुसार प्रयोग किया जाता है. आईये जानते हैं मूली खाने के क्या क्या फायदे हैं.
1. पीलिया रोग
मूली के ताजे पत्तो को जल के साथ पीसकर उबाल ले,
दूध की भांति झाग ऊपर आ जाता है इसको छान कर दिन में तीन बार पीने से कामला अथवा पीलिया रोग मिटता है।
इस रोग में मूली की सब्जी भी खानी चाहिए।
2. पुरुष इन्द्रिय शैथिल्य
किसी किसी व्यक्ति को इंद्रिय शैथिल्य अथवा शिश्न में उत्तेजना न होना (Erectile dysfunction) रोग हो जाता है।
इस रोग में यदि मूली के बीजो को तेल में औटाकर उस तेल की कामेन्द्रिय (शिश्न) पर मालिश की जाये तो शिथिलता समाप्त हो जाती है
और फिर से उत्तेजना पैदा होने लगती है।
![](https://ayurvedcentral.com/wp-content/uploads/2017/02/muli-ke-gun-e1487576123654-300x177.jpg)
3. पथरी
मूली के पत्ते पथरी में बेहद लाभकारी होते हैं.
10 ग्राम मूली के पत्तो के रस में अजमोद मिलाकर पीना चाहिए।
या फिर मूली के पत्ते की सब्जी खानी चाहिये.
पथरी पिघल जाती है ।
4. बवासीर
मूली के पत्तो को छाया में सुखा कर पीसकर समान मात्रा में शक्कर मिलाकर 40 दिन तक 25 से 50 ग्राम की मात्रा में सेवन करना चाहिए ।
बवासीर में ताज़ी मूली या इसका जूस भी लिया जा सकता है.
5. मासिक धर्म
मूली के बीजों के चूर्ण को 3 ग्राम की मात्रा में देने से मासिक धर्म की रूकावट दूर होती है।
गर्भवती महिला को मूली के बीजो का सेवन नही करना चाहिए।
गर्भपात होने की संभावना हो सकती है।
![](https://ayurvedcentral.com/wp-content/uploads/2017/02/muli-ki-sabji-e1487576266724-300x158.jpg)
6. दाद
मूली के बीज के फायदे भी अनेक होते हैं.
इसका बीज बेहतरीन रक्तशोधक माना जाता है.
मूली के बीजो को नींबू में पीसकर लगाने से दाद में लाभ होता है।
7. प्लीहा रोग
मूली की चार फांक कर के छः ग्राम पिसा नौसादर छिड़क कर रात को ओस में रख दें,
सुबह जो पानी निकले उसको पीकर ऊपर से मूली की फांक खाने से फायदा होता है।
उपयोग विधियाँ
मूली को सलाद और सब्जी के रूप में लिया जाता है.
इसके पत्तों का शाक भी बनाते हैं.
मोंगरे, फलियों की सब्जी और अचार बनाये जाते हैं.
मूली का रस और इसके पत्तों का रस भी ले सकते हैं.
इसका जूस भी पिया जाता है.
मूली का रस निकालने की विधि बड़ी ही आसान है.
इसको मिक्सर ग्राइंडर में डालिये और रस निकाल लीजिये या फिर मूली को पीस कर निचोड़ लीजिये.
लेकिन जूस अथवा रस को अधिक मात्रा में नहीं लेना चाहिये.
मूली खाने का सही समय
मूली को हमेशा दिन के समय ही खाना चाहिये.
रात में कभी नहीं.
सारशब्द
साधारण सी दिखनी वाली मूली हमारे जीवन में कितनी महत्वपूर्ण हो सकती है, इसका प्रमाण दिए गए उपयोगों से सिद्ध हो जाता है।
इसलिए मूली का सेवन अवश्य ही करना चाहिए.
यदि आप मूली के फायदे और नुकसान जान लेंगे, तो हमेशा बेहतर सेहत ही पाएंगे.
बहुत बढ़िया लेख है, धन्यवाद
Nice information. Thanks for posting.