अमलतास अनमोल - 37 गुण व उपयोग

अनमोल अमलतास के 37 गुण और उपयोग

पीले फूलों से आच्छादित अमलतास के पेड़ की शोभा देखते ही बनती है, जो लगभग सभी जगह पाया जाता है। इस शोभाकर वृक्ष को बाग-बगीचों और घरों में सजावट के लिए भी लगाया जाता है। इसीलिए इसे कहते हैं अमलतास अनमोल

इसे संस्कृत में व्याधिघात, नृप्रद्रुम इत्यादि, गुजराती में गरमाष्ठो, बँगला में सोनालू कहते हैं.

इसका वानस्पतिक नाम कैसिया फिस्टुला (Cassia fistula) होता है।

आईये जानते हैं,  विभिन्न रोग उपचारों में इसके 37 उपयोग…

अमलतास अनमोल – पहचान

अमलतास ( english name: Golden Shower) एक मध्यम आकार का ( ऊंचाई 25-30 फुट) पेड़ है।

यह एक फूलो वाला एक सुंदर वृक्ष तो है ही, इसके गुण लाभ व उपयोग भी अनंत हैं।

अमलतास मैदानी भागों, निचली हिमालय श्रृंखला, विन्ध्याचल, पूवोत्तर राज्यों के जंगलों में अधिकता से मिलता है।

इसके पत्ते लगभग 3 से 6-7 इंच लंबे, चिकने और जामुन के पत्तों के समान होते हैं।

पेड़ की छाल मटमैली और कुछ लालिमा लिए होती है।

फूल डेढ़ से ढाई इंच व्यास के चमकीले, मखमली पीले रंग के होते हैं।

फूलों में कोई गंध नहीं होती।

 

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अमलतास की फलियां (pods) एक से दो फुट लंबी और बेलनाकार होती हैं।

कच्ची फलियां हरी और पकने पर काले रंग की लगभग पूरे वर्ष वृक्ष पर लटकती मिलती हैं।

फली में गूदे के साथ साथ 25 से 100 तक चपटे एवं हल्के पीले रंग के बीज होते हैं।

फली पकने पर गूदा कॉफ़ी के रंग का दिखता है।

बसंत ऋतु के पहले, अमलतास के पेड़ की पत्तियां झड़ जाती हैं।

इसके बाद नई पत्तियां और पीले फूल प्राय: एक साथ ही निकलते हैं।

फूलों के परागण के बाद फली लगती है जो डेढ़-दो फुट लम्बी, गोल और लटकी रहती है।

यह बेलनाकार, कठोर, व एक इंच व्यास तक की होती है।

कच्ची अवस्था में हरी और पकने पर लाल-काली हो जाती है।

इसकी फली के अंदर का भाग (गूदा) अनेक कोष्ठों में बंटा रहता है।

रासायनिक संरचना

अमलतास के पत्तों और फूलों में ग्लाइकोसाइड, तने की छाल में 10 से 20 प्रतिशत टैनिन,

जड़ की छाल में टैनिन के अतिरिक्त ऐन्थ्राक्विनीन, फ्लोवेफिन तथा

फल के गूदे में शर्करा 60 प्रतिशत, पेक्टीन, ग्लूटीन, क्षार, भस्म और पानी होता है।

उपयोगी अंग

अमलतास के फूल, गूदा व बीज है अधिकतर उपयोग किये जाते हैं जो दवाई के काम में आते है।

 

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इसकी छाल चमड़ा रंगने और सड़ाकर रेशे को निकालकर रस्सी बनाने में भी प्रयुक्त होती है।

अमलतास की विशेषता

अमलतास प्रकृति में शीतल, मधुर, भारी, स्वादिष्ट, स्निग्ध (चिकना), कफनाशक और पेट साफ करने वाला है।

साथ ही यह ज्वर (बुखार), दाह (जलन), हृदय रोग, रक्तपित्त, वातरोग, दर्द, गैस, प्रमेह (वीर्य विकार) एवं मूत्ररोग नाशक है।

यह गठिया रोग, गले की तकलीफ, आंतों का दर्द, रक्त की गर्मी और नेत्र रोगों में उपयोगी होता है।

अमलतास के 37 गुण व उपयोग

1 गले के रोग

अमलतास की छाल (पेड़ की छाल) के काढ़े से गरारा करने पर गले की प्रदाह (जलन), ग्रंथिशोध (गले की नली में सूजन) आदि रोग ठीक हो जाते हैं।

2 बिच्छू का विष

अमलतास के बीजों को पानी में घिसकर बिच्छू के दंश वाले स्थान पर लगाने से कष्ट दूर होता है।

3 बच्चों का पेट दर्द

अमलतास के बीजों की गिरी को पानी में घिसकर नाभि के आस-पास लेप लगाने से पेट दर्द और गैस की तकलीफ में आराम मिलता है।

4 त्वचा रोग

अमलतास के पत्तों को सिरके में पीसकर बनाए लेप को चर्म रोगों यानी दाद, खाज-खुजली, फोड़े-फुंसी पर लगाने से रोग दूर होता है।

यह प्रयोग कम से कम तीन हफ्ते तक अवश्य करें।

इसके पंचांग (पत्ते, छाल, फूल, बीज और जड़) को समान मात्रा में लेकर पानी के साथ पीसकर लेप बना लें।

इस लेप को लगाने से त्वचा सम्बंधी उपरोक्त रोगों में लाभ मिलता है।

5 मुखपाक (मुंह के छाले)

अमलतास की गिरी को बराबर की मात्रा में धनिए के साथ पीसकर उसमें चुटकी-भर कत्था मिलाकर चूर्ण तैयार करें.

इसकी आधा चम्मच मात्रा दिन में 2-3 बार चूसने से मुंह के छालों में आराम मिलता है।

6 वमन (उल्टी) हेतु

अमलतास के 5-6 बीज पानी में पीसकर पिलाने से हानिकारक खाई हुई चीज वमन (उल्टी) के द्वारा बाहर निकल जाती है।

7 पेशाब न होना

अमलतास के बीजों की गिरी को पानी में पीसकर तैयार किये गाढ़े लेप को नाभि के निचले भाग और यौनांग से ऊपर लगाएं।

पेशाब खुलकर कराने के लिए यह प्रयोग अचूक माना जाता है.

8 कुष्ठ (कोढ़)

अमलतास की 15-20 पत्तियों से बना लेप कुष्ठ का नाश करता है।

इसकी जड़ का लेप कुष्ठ रोग के कारण हुई विकृत त्वचा को हटाकर जख्म वाले स्थान को ठीक कर देता है।

9 त्वचा के चकत्तों में

अमलतास के नर्म पत्तों को पीसकर लेप करना चाहिए।

10 खुजली के लिए

इसके पत्तों को छाछ में पीसकर लेप करना चाहिये और कुछ देर बाद स्नान करना चाहिए।

11 कफरोग

अमलतास के गूदे में गुड़ मिलाकर और सुपारी के बराबर गोलियां बनाकर गर्म पानी के साथ देना चाहिए।

12 भिलावे की सूजन

भिलावे की वजह से त्वचा के मोटा और सख्त हो जाने पर व सूजन पैदा हो जाने पर इसके पत्तों का रस लगाने से त्वचा की सूजन ठीक हो जाती है।

13 बवासीर (Piles)

10 ग्राम अमलतास की फलियों का गूदा, 6 ग्राम हरड़ और 10 ग्राम मुनक्का (काली द्राक्ष) को पीसकर 500 मिलीलीटर पानी में पकायें।

जब यह आठवां हिस्सा शेष बचे तो उतारकर रख दें।

इस काढ़े को प्रतिदिन सुबह के समय देना चाहिए।

4 दिन में ही असर दिखाई देता है।

रक्त-पित्त यानी नस्कोरे फूटकर खून बहने, पेशाब साफ न होने और बुखार में भी यह काढ़ा दिया जाता है।

इससे दस्त साफ होकर भूख भी लगती है।

14 सूजन (Swelling) पर

अमलतास के पत्तों को सेंककर बांधने से सूजन उतरती है।

15 यकृत, प्लीहा (Liver & Spleen) में सूजन

लगभग 20 ग्राम की मात्रा में इसके ताजे फूल और 3 ग्राम की मात्रा में भुना हुआ सुहागा लें.

सुबह और शाम इसे हल्के गर्म पानी के साथ को देने से यकृत और प्लीहा वृद्धि के कारण पैदा होने वाली सूजन दूर हो जाती है।

16 कब्ज

10 ग्राम अमलतास का गूदा और 10 ग्राम मुनक्का मिलाकर खाने से शौच साफ आती है और कब्ज समाप्त हो जाती है।

अथवा, अमलतास और इमली के गूदे को पीसकर रख लें।

फिर इसे सोने से पहले पीने से सुबह शौच अच्छी तरह से आती है।

17 विसर्प (छोटी-छोटी फुंसियों का दल बनना)

अमलतास के पत्तों को पीसकर घी में मिलाकर लेप करने से विसर्प में लाभ होता है।

18 शिशु की फुंसियां

इसके पत्तों को दूध के साथ पीसकर लेप करने से नवजात शिशु के शरीर पर होने वाली फुंसियां और छाले दूर हो जाते हैं।

19 श्वास

इसकी फली का गूदा पानी में उबालकर पीने से दस्त साफ होकर श्वास की रुकावट मिटती है।

इससे कब्ज भी दूर हो जाती है।

20 पेट दर्द

पेट दर्द और गैस में अमलतास के गूदे को बच्चों की नाभि के चारों ओर लेप करने से लाभ होता है।

पेट दर्द और अफारे में इसके बीज की मज्जा को पीसकर बच्चों की नाभि के चारों ओर लेप करने से भी लाभ होता है।

21 पक्षाघात (facial paralysis)

अमलतास के पत्तों के रस की पक्षाघात ग्रस्त अंग पर मालिश करने से लाभ होता है।

22 लकवा (paralysis) होने पर

लगभग 10 ग्राम से 20 ग्राम अमलतास के पत्तों का रस पीने तथा चेहरे पर अच्छी तरह से नियमित रूप से मालिश करने से मुंह के लकवे में लाभ मिलता है।

23 सुप्रसव (आसानी से बच्चे का जन्म) के लिये

प्रसव (प्रजनन) के समय अमलतास की फली के 2 चम्मच छिलके 2 कप पानी में उबालकर उसमें शक्कर मिलाकर छानकर गर्भवती को पिलायें.

बच्चा सुख से पैदा हो जाता है।

24 प्रसव का दर्द

बच्चा पैदा होने में यदि बहुत अधिक कष्ट हो रहा हो तो अमलतास 10 ग्राम को पानी में गर्मकर थोड़ी सी शक्कर मिलाकर पीना चाहिए।

25 अर्दित

(यह एक प्रकार का वायु रोग है जिसमें रोगी का मुंह टेढ़ा हो जाता है)

इसके 10-15 पत्तों को गर्म करके उनकी पुल्टिस बांधने से सुन्नवात, गठिया (जोड़ों का दर्द) और अर्दित में फायदा होता है।

वात वाहिनियों के आघात से उत्पन्न अर्दित एवं वात रोगों में अमलतास के पत्तों का रस पिलाने से लाभ होता है।

अमलतास के पत्तों का रस पक्षाघात से पीड़ित स्थान पर मालिश करने से भी लाभ होता है|

26 उदावर

पेट की अन्तड़ियों का सही ढंग से काम न करना को उदावर कहते हैं.

4 साल से लेकर 12 साल तक के बच्चे के पेट में यदि जलन तथा उदावर्त रोग से पीड़ित हो तो उसे अमलतास की मज्जा को 2-4 नग मुनक्का के साथ देना चाहिए।

27 विरेचन (दस्त लाने वाला)

अमलतास के फल का गूदा सर्वश्रेष्ठ मृदु विरेचक है।

यह बुखार की अवस्था में बच्चों एवं गर्भवती महिलाओं को दिया जाता है।

इसके फल का 15-20 ग्राम गूदे को मुनक्का के रस के साथ देने से उत्तम विरेचन होता है।

28 दमा के लिए

अमलतास की गिरी का काढ़ा बनाकर पीने से मल त्याग होकर दमा मिट जाता है।

29 उल्टी कराने के लिये

अमलतास के 5 से 7 बीज का चूर्ण बनाकर रोगी को खिलाने से तुरंत उल्टी हो जाती है।

30 उपदंश (सिफिलिस)

अमलतास, नीम, हरड़, बहेड़ा, आंवला तथा चिरायता के काढ़े के साथ विजयसार और खैरसार मिलाकर पीने से हर तरह के उपंदश रोग मिट जाते हैं।

इसके बीजों को पानी के साथ पीसकर उपदंश के घाव पर लगाने से उपदंश के घाव जल्द खत्म हो जाते हैं।

इसका गुदा 3 ग्राम की मात्रा में रोज खाने से उपंदश लगभग 8-9 दिनों में ही ठीक हो जाता है।

31 गठिया (Arthritis) रोग

अमलतास के पत्ते को सरसों के तेल में तलकर रखें। इन्हें भोजन के साथ खाने से घुटने का हल्का दर्द दूर होता है।

32 उरूस्तम्भ

जांघ का सुन्न होना उरुस्तम्भ कहलाता है.

अमलतास के पत्ते को बांधने से जांघ का सुन्न होना ठीक हो जाता है।

इससे शरीर के दूसरे अंग का सुन्न होना भी ठीक हो जाता है।

33 चेहरे के लकवे के लिए

10 से 20 मिलीलीटर अमलतास के पत्तों का रस रोगी को सुबह और शाम पिलायें

इसके साथ ही इसी रस से चेहरे की मांसपेशियों पर दिन और रात को लगातार मालिश करते रहने से जरूर लाभ होगा।

34 डब्बा रोग

बच्चों की पसलियों के चलने को डब्बा रोग कहते हैं.

इसकी एक फली लेकर उसे जला लें और बारीक पीसकर शीशी में भरकर रख लें।

जब बच्चे की पसली चल रही हो तो उस समय 1 चुटकी चूर्ण चटा दें।

जल्दी आराम मिल जायेगा।

 

35 चेहरे के दाग

इसके मुलायम पत्तों को पीसकर चेहरे पर लेप करने से चेहरे के सारे काले दाग समाप्त हो जाते हैं।

36 जलने पर

इसके पत्तों को पानी के साथ पीसकर शरीर के जले हुए भाग पर लगाने से आराम आ जाता है।

37 नाड़ी घाव

अमलतास, हल्दी और मंजीठ बराबर मात्रा में लेकर उसे अच्छी तरह से पीस लें।

उस पिसी हुई पेस्ट से बत्ती बनाकर नाड़ी के घाव पर रखने से सभी कारणों से उत्पन्न नाड़ी के घाव में लाभ होता है।

अमलतास का गुलकन्द

अमलतास के ताज़े फूलों को चीनी में मिलाकर गुलकंद भी बनाते हैं, जिसे पेट क्रियाओं को सुचारू रखने के लिये अति लाभकारी माना जाता है.

इसमें काली मिर्च और अदरक ज़रूर मिला लेनी चाहिए.

इसके सेवन से कब्ज़ रोग का निवारण होता है.

विशेष सावधानी

अमलतास के गूदे को औषधि के रूप में प्रयोग में अज्वायन, अदरक, पिप्पली का समावेश अवश्य रखना चाहिए।

इसे अकेले प्रयोग करने से कभी कभी पेट में दर्द तथा मरोड़ पैदा हो सकते है.

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