आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान में हरड अथवा हरीतकी (Chebulic Myrobalan) को सर्वोत्तम औषधियों में से एक माना गया है,
ग्रंथों में हरड़ को अनुलोमक, दीपक, बलदायक, रसायन कहा गया है।
लेकिन, हरड सेवन के ऋतु सम्बंधित कुछ नियम भी आयुर्वेद में बताये गए हैं.
ऐसा वर्णन है कि हरड का ऋतु सम्मत सेवन करने से न केवल इसके गुणों का पूरा लाभ मिलता है,
बल्कि इसके रसायन गुण भी उच्च कोटि के हो जाते है।
हरड की उपयोगिता
हरद में लगभग सभी रोग हरने का सामर्थ्य है।
इसका प्रयोग खांसी, दमा, ह्रदय के रोग, मूत्र रोग, पुराने दस्त, मलबन्ध, अफारा, वमन, हिचकी, बवासीर, अंतड़ियों के कृमि, जिगर और तिल्ली का बढ़ जाना, जलोदर, त्वचा के रोग, ज्वर तथा अन्य कई रोगों में होता है।
ऐसा कोई रोग है ही नही जिसको हरड़ जीत न सके,
किन्तु इसके लिए धैर्य के साथ युक्ति पूर्वक इसका प्रयोग करना आवश्यक है।
ऐसे खाईये हरड – रहेंगे जवान और नीरोगी
- वर्षा ऋतु अथवा जुलाई अगस्त में हरड़ को सैंधा नमक (Rock Salt) के साथ,
- शरद ऋतु अथवा सितम्बर अक्टूबर मे हरड़ को मिश्री (Sugar processed in earthern pot) साथ,
- हेमंत ऋतु (पहले भाग) नवम्बर दिसम्बर में अदरक (Ginger) के साथ,
- शिशिर ऋतु जनवरी फ़रवरी में पिप्पली अथवा मघ (Piper longum)के साथ,
- बसन्त ऋतु मार्च अप्रैल में मधु अथवा शहद (Honey) के साथ,
- गर्मी के दो महीनों मई जून में गुड़ (Jaggery) के साथ
किस अनुपात में
हरड़ और बताये गए अनुपान द्रव्यों का अनुपात इस प्रकार से रहना चाहिए:
- हरद और सैंधा नमक: आठ भाग में एक भाग
- हरड़ व मिश्री: चार भाग में एक भाग,
- हरीतकी व सौंठ (पिसी सूखी अदरक): आठ भाग में एक भाग,
- हरड़ व पिप्पली: आठ भाग में एक भाग,
- हरद व शहद: चार भाग में एक भाग,
- हरड़ व गुड़: चार भाग में एक भाग
अन्य विधान
प्रतिदिन प्रातःकाल हरड़ खाने का विधान बताया गया है।
इस रसायन प्रयोग में पकी हुई हरीतकी अथवा पीली हरड़ लेनी चाहिए।
हरद के नमकयुक्त योग जल के साथ लेने चाहिए और शेष सभी योगों को दूध के साथ लिया जा सकता है।
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