IBS संग्रहणी एक जटिल रोग है.
इस हठी रोग में यह जानना भी ज़रूरी हो जाता है कि किस किस्म की IBS के लक्षण आपके रोग में हैं.
जब तक आपको IBS संग्रहणी की 3 किस्में और लक्षण पता नहीं होंगे, इस रोग का सही और सटीक इलाज भी नहीं हो सकता.
इस रोग से त्रस्त देवियाँ और सज्जन अक्सर यह कहते मिलते हैं कि डॉक्टरों ने IBS रोग बताया है.
कई इलाज करवाए, कोई लाभ नहीं मिला.
जब तक इलाज चला तो ठीक रहे, लेकिन बाद में स्थिति फिर रोग वाली ही बन गयी.
इन सबके पीछे कई कारण हो सकते हैं लेकिन सबसे बड़ा कारण है, इस रोग की किस्मों के बारे में अनभिज्ञता, और इलाज में एक ही प्रकार की उपचार पद्धति अपनाना.
यद्यपि IBS संग्रहणी पर ब्लॉग में कई लेख लिखे जा चुके हैं, तथापि इस लेख में जानेंगे,
क्या हैं IBS संग्रहणी की 3 किस्में और लक्षण; और उन किस्मों के विशेष उपचार के बारे में.
IBS संग्रहणी की 3 किस्में और लक्षण
इस रोग की मुख्यत: तीन किस्में होती हैं
1 कब्जियत वाली संग्रहणी (IBS with constipation)
इसे IBS-C कहा जाता है.
इस प्रकार की IBS में कब्ज़ का बने रहना; पेट की जलन, जी मितलाना, पेट में दर्द, अफारा, गैस का प्रकोप बने रहना;
शौच में भारी अनियमितता; मल का कठोर, चिपचिपा होना;
कई बार मल के अंत में आंव का आना, गुदा में खुजली या जलन का अनुभव इत्यादि लक्षण होते हैं.
2 दस्त अतिसार वाली संग्रहणी (IBS with diarrhea)
इस प्रकार की बीमारी को IBS-D कहा जाता है.
इसमें कब्ज़ नहीं होती. मल पतला होते हुए भी ऐसा भान रहता है कि पेट ठीक से साफ़ नहीं हुआ.
फिर आपको दोबारा, तिबारा या अधिक बार हाजत होगी और आखिरी मल दस्त जैसा निकलने लगता है.
कईयों की सभी हाजत दस्त जैसी होती है, हाजत से पहले या मध्य में मरोड़ पड़ते हैं,
मल के साथ आंव या कभी कभार रक्त भी आ जाता है.
इसमें अफारा और गैस का प्रकोप बना ही रहता है.
3 बारी बारी से कब्ज़ और अतिसार वाली संग्रहणी (IBS with alternating constipation & diarrhea)
इस संग्रहणी में कभी कब्ज़ तो कभी दस्त के लक्षण मिलते हैं.
इसे IBS-A कहा जाता है.
दस्त होने के बाद भी पेट में मल फंसा ही रहता है जिससे पेट की गैस, मरोड़, पेट दर्द, अफारा इत्यादि बने ही रहते हैं.
इस संग्रहणी में भी मल में आंव, रक्त का आना जैसे प्रकोप भी होते हैं.
समानताएं
IBS संग्रहणी की किस्में और लक्षण जानने के बाद इन तीनों प्रकार की IBS संग्रहणी में कुछ समानताएं भी होती हैं.
पेट का सही से साफ़ न होना, भारीपन का बने रहना, गैस और अफारा का प्रकोप होना, मरोड़ और पेट दर्द (IBD) जैसे लक्षण सभी प्रकार की IBS में पाए जाते हैं.
स्वभाव में सुस्ती, चिडचिडापन, उर्जा की कमी, हंसी ख़ुशी के मौके का भी आनंद न ले पाना,
सेक्स जीवन में कमज़ोरी या विरक्तिभाव, हर कार्य में नकारात्मकता का भाव, डिप्रेशन इस रोग के मनोवैज्ञानिक लक्षण हैं.
दिमाग में हर समय, पेट की समस्या ही घर किये रहती है.
सृजनता (creativity) कुछ नया करने की इच्छा नहीं होती, घूमने फिरने, बाज़ार (shopping) करने, अपनों से मिलने पर भी आनंद प्राप्ति नहीं होती.
कईयों को मल में आंव का आना, कभी कभार रक्त भी आना (ulcerative colitis), ऐसा महसूस होना कि
पेट में कुछ रुक गया है (Crohn’s desease),
नाभि खिसक गयी है, या गुदा में भारीपन, जलन या खुजली का आभास होना जैसे लक्षण भी हो जाया करते हैं.
यह विशेष लक्षण पुराने हो चुके IBS रोग में ही परिलक्षित होते हैं.
पुरानी IBS में जोड़ों या शरीर में दर्द बने रहना जैसे लक्षण भी पनप जाते हैं.
IBS संग्रहणी की 3 किस्में और लक्षण – विशेष टिप्पणी
शोध बताते हैं कि तीनों प्रकार की संग्रहणी मरीजो की संख्या लगभग एक समान पाई जाती है.
यह भी प्रमाण हैं कि कालान्तर में एक किस्म की संग्रहणी दूसरी किस्म में परिवर्तित हो जाया करती है.
यानि कब्ज़ वाली अतिसार वाली में और अतिसार वाली कब्ज़ वाली में, या कब्ज़ अतिसार दोनों वाली में.
IBS का उपचार अथवा इलाज
IBS रोग की जटिलताओं के चलते इसका एक समग्र उपचार ही एकमात्र उपाय है.
यही कारण है कि पारम्परिक चिकित्सा इस रोग का पूरा उपचार कर ही नहीं पाती.
इस प्रकार की चिकित्सा केवल लाक्षणिक लाभ दे सकती है
जिससे रोग बार बार पनपता ही रहता है और इसकी उग्रता बढती ही जाती है.
पारम्परिक उपचार में एंटीबायोटिक्स और एंटीप्रोटोज़ोअल दिए जाते हैं.
यह दवाएं इतनी तेज़ होती हैं की हानिकारक बैक्टीरिया के साथ साथ यह पेट के लाभकारी बैक्टीरिया की लगभग 20000 प्रजातियों (संख्या तीन लाख करोड़ से अधिक) का भी पूरा सफाया कर देती हैं.
लाभकारी बैक्टीरिया की ज़रूरत
लाभकारी बैक्टीरिया के नष्ट हो जाने से हमारी पाचन शक्ति क्षीण हो जाती है
और भोजन में उपलब्ध गिने चुने बैक्टीरिया से ही हमारा पाचन तंत्र काम चलाने लगता है.
जब इन गिने चुने बैक्टीरिया को संतुलित करने वाले बैक्टीरिया पेट में नहीं होते तो इनकी संख्या इतनी बढ़ जाती है कि यह उपद्रव पैदा करने लगते हैं.
ठीक वैसे ही जैसे किसी जंगल में अकेले हिरण ही छोड़ दिए जाएँ और कोई शेर, चीते, बाघ न हों;
तो कुछ समय में इनकी संख्या इतनी बढ़ जायेगी कि जंगल में घास भी नहीं बचेगी और फिर हिरण भी भूख से मरने लगेंगे.
IBS का इलाज चहुँमुखी होना चाहिए.
जिससे हानिकारक बैक्टीरिया का सफाया हो सके.
लाभकारी बैक्टीरिया को बढाया जा सके.
पेट के विषतत्वों का निकास हो, और रोग से उत्पन्न घावों और अन्य विकारों जैसे लीकीगट, लिवर अक्षमता, आँतों की सूजन का भी कारगर उपचार हो.
इस रोग में अकेली एक औषधि न देकर रोगानुसार कई औषधियों का समावेश किया जाना चाहिए.
इसी कारण आयुर्वेद सेंट्रल द्वारा IBS इलाज का पूरा कोर्स इस रोग में दिया जाता है.
यह कोर्स किसी को तो सभी औषधियों के साथ, किसी को चार से छे के साथ और कुछ को केवल दो तीन दवाओं का ही लेना होता है.
इस रोग के उपचार में अपने खानपान का अध्ययन और बदलाव प्रबंधन भी ज़रूरी होता है.
ऐसे आहार जो आपके रोग को कम करते हों उन्हें अपनाना और
रोगकारी आहारों को छोड़ना या उन्हें उपयोग करने के तरीके में बदलाव करना भी IBS इलाज का अहम हिस्सा रहते हैं.