कचनार एक ऐसी वनौषधि है जिसके औषधीय गुण अन्य वनस्पतियों से कई तरह से भिन्न हैं. इसीलिए यह कहा जाता है कि कचनार अनमोल होता है.
कचनार (English names: Orchid tree और Mountain Ebony) Bauhinia जाति की वनस्पति है जिसमें लगभग 500 से अधिक किस्में पाई जाती हैं.
बहुत सी प्रजातियाँ जंगलों में पाई जाती हैं जबकि कुछ एक शोभा के लिए उद्यानों में लगाईं भी जाती हैं.
इसका botanical name: Bauhinia variegata है.
कचनार के फूल सफ़ेद रंग से लेकर गुलाबी, लाल, नीले, पीले, और दोरंगे भी होते हैं.
कचनार की विभिन्न प्रजातियाँ भारत, श्रीलंका, पाकिस्तान बांग्लादेश से लेकर बर्मा, चीन, हांगकांग तक और अमरीका के के कई गर्म इलाकों में मिल जाती हैं.
आयुर्वेद में कचनार के औषधीय गुणों के विस्तृत आख्यान उपलब्ध हैं.
इसका उपयोग शरीर के किसी भी भाग में ग्रंथि (गांठ) को गलाने के लिए किया जाता है.
रक्त विकार व त्वचा रोग जैसे- दाद, खाज-खुजली, एक्जीमा, फोड़े-फुंसी आदि के लिए भी कचनार की छाल का उपयोग किया जाता है.
औषधियों में कचनार की छाल का ही मुख्यत: उपयोग किया जाता है.
जबकि इसके फूल और कलियां वात रोग, जोड़ों के दर्द के लिए विशेष उपयोगी मानी गयी हैं.
कचनार अनमोल – उपयोग मात्रा और विधि
इसकी छाल का चूर्ण 3 से 6 ग्राम की मात्रा में प्रयोग किया जाता है,
फूलों का स्वरस 10 से 20 मिलीलीटर की मात्रा में और छाल का काढ़ा 30 से 50 मिलीलीटर की मात्रा में प्रयोग किया जाता है.
250 ग्राम छाल से 2 लिटर काढ़ा बन जाता है.
इसका काढ़ा बनाकर सुबह-शाम एक चम्मच शहद मिलाकर ले सकते हैं.
कचनार की छाल का महीन पिसा-छना चूर्ण 3 से 6 ग्राम (आधा से एक चम्मच) ठंडे पानी के साथ सुबह-शाम लें.
इसकी कलियों की सब्जी, अचार; फूलों का गुलकंद और रायता इत्यादि बनाये जाते हैं.
जो खाने में स्वादिष्ट, स्वास्थ्यकारी; और रक्त पित्त, फोड़े, फुंसियों का शमन करते है.
1 गाँठ, फोड़े, रसौली में
- कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके 20 ग्राम काढ़े में सोंठ मिलाकर सुबह-शाम पीने से गले की गांठ ठीक होती है।
कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें सोंठ का चूर्ण मिलाकर आधे कप की मात्रा में दिन में 3 बार पीने से गण्डमाला रोग ठीक होता है।
स्तनों की गांठ (रसौली)-कचनार की छाल को पीसकर चूर्ण बना लें।
इस चूर्ण की लगभग आधे ग्राम मात्रा में सौंठ और चावल के पानी (धोवन) के साथ मिलाकर पीने और स्तनों पर लेप करने से गांठ ठीक होती है।
4.फोड़े, फुंसी, बालतोड़ -कचनार की छाल, वरना की जड़ और सौंठ को मिलाकर काढ़ा बना लें।
यह काढ़ा लगभग 20 से 40 ग्राम की मात्रा में सुबह-शाम पीना चाहिए।
इसके सेवन से फोड़ा पक जाता है और ठीक हो जाता है।
इस काढ़े को फोड़े पर लगाने से भी लाभ होता है।
- कैंसर (कर्कट)-कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर पीने से पेट का कैंसर ठीक होता है।
2 सूजन
6.कचनार की जड़ को पानी में घिसकर लेप बना लें और इसे गर्म कर लें।
इसके गर्म-गर्म लेप को सूजन पर लगाने से आराम मिलता है।
3 बवासीर
- कचनार की छाल का चूर्ण बना लें और यह चूर्ण 5 ग्राम अथवा एक चम्मच की मात्रा में एक गिलास छाछ के साथ लें।
इसका सेवन प्रतिदिन सुबह-शाम करने से वादी बवासीर एवं खूनी बवासीर दोनों में बेहद लाभ मिलता है।
- कचनार की कलियों के पाउडर को मक्खन और शक्कर मिलाकर 21 या 31 दिन तक खाएं।
कचनार का चूर्ण 5 ग्राम की मात्रा में प्रतिदिन सुबह पानी के साथ खाने से भी बवासीर ठीक होती है।
4 प्रमेह
- कचनार की हरी व सूखी कलियों का चूर्ण प्रयोग किया जाता है।
इसके चूर्ण और मिश्री को समान मात्रा में मिलाकर 1-1 चम्मच दिन में तीन बार कुछ हफ्ते तक खाने से प्रमेह रोग में लाभ होता है।
5 भूख न लगना
- कचनार की फूल की कलियां घी में भूनकर सुबह-शाम खाने से भूख बढ़ती है।
6 खांसी, नज़ला और दमा
- शहद के साथ कचनार की छाल का काढ़ा मात्रा 2 चम्मच; दिन में 3 बार सेवन करने से खांसी और दमा में आराम मिलता है।
7 दन्त एवं मुख रोग
13. कचनार के पेड़ की छाल को आग में जलाकर उसकी राख को बारीक पीसकर मंजन बना लें।
इस मंजन से सुबह एवं रात को खाना खाने के बाद मंजन करने से दांतों का दर्द तथा मसूढ़ों से खून का निकलना बंद होता है।
14. कचनार की छाल को पानी में उबाल लें और उस उबले पानी को छानकर एक शीशी में बंद करके रख लें।
यह पानी 50-50 मिलीलीटर की मात्रा में गर्म करके रोजाना 3 बार कुल्ला करें।
इससे दांतों का हिलना, दर्द, खून निकलना, मसूढों की सूजन और पायरिया खत्म हो जाता है।
15. कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर उसमें थोड़ा-सा कत्था मिलाकर छालों पर लगाने से आराम मिलता है।
16. यदि मुंह से खून आता हो तो कचनार के पत्तों का रस 6 ग्राम की मात्रा में पीएं।
इसके सेवन से मुंह से खून का आना बंद हो जाता है।
8 पेट के रोग
17. कचनार की जड़ का काढ़ा बनाकर सेवन करने से अफारा दूर होता है।
18. पेट आंतों में कीड़े हों तो कचनार की छाल का काढ़ा पिएं।
19. कचनार के फूलों को चीनी के साथ घोटकर शर्बत बना लें.
इसे सुबह-शाम पीने से कब्ज दूर होती है और मल साफ होता है।
20. कचनार के फूलों का गुलकन्द रात में सोने से पहले 2 चम्मच की मात्रा में कुछ दिनों तक सेवन करने से कब्ज दूर होती है।
21. कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर, इसके 20 मिलीलीटर काढ़ा में आधा चम्मच पिसी हुई अजवायन मिलाकर प्रयोग करने से लाभ मिलता है।
सुबह-शाम भोजन करने बाद इसका सेवन करने से एसिडिटी, अफारा (पेट फूलना) व गैस की तकलीफ दूर होती है।
22. बार-बार दस्त आना- कचनार की छाल का काढ़ा बनाकर दिन में 2 बार पीने से दस्त रोग में ठीक होता है।
23. यदि पेशाब के साथ खून आता हो तो-
कचनार के फूलों का काढ़ा बनाकर सुबह-शाम पीने से पेशाब में खून का आना बंद होता है।
इसके सेवन से रक्त प्रदर एवं रक्तस्राव आदि भी ठीक होता है।
24. खूनी दस्त-दस्त के साथ खून आने पर कचनार के फूल का काढ़ा सुबह-शाम सेवन करना चाहिए।
इसके सेवन से खूनी दस्त (रक्तातिसर) में जल्दी लाभ मिलता है।
9 शरीर का सुन्न होना
25. कचनार की छाल का चूर्ण बनाकर 2 से 4 ग्राम की मात्रा में खाने से रोग में लाभ होता है।
इसका प्रयोग रोजाना सुबह-शाम करने से त्वचा एवं रस ग्रंथियों की क्रिया ठीक हो जाती है।
त्वचा की सुन्नता दूर होती है।
10 रक्तपित्त अथवा खून की विषाक्तता
26. कचनार के फूलों का चूर्ण बनाकर, 1 से 2 ग्राम चूर्ण सुबह-शाम चटाने से रक्त पित्त का रोग ठीक होता है।
कचनार का साग खाने से भी रक्त पित्त में आराम मिलता है।
27. कचनार के सूखे फूलों का चूर्ण बनाकर लें.
इस चूर्ण एक चम्मच की मात्रा में शहद के साथ दिन में 3 बार सेवन करें।
इसके सेवन से रक्तपित्त में लाभ होता है।
फूलों की सब्जी बनाकर खाने से भी खून का विकार (खून की खराबी) दूर होता है।
11 कुबड़ापन
28. अगर कुबड़ापन का रोग बच्चों में हो तो उसके पीठ के नीचे कचनार का फूल बिछाकर सुलाने से कुबड़ापन दूर होता है।
29. लगभग 1 ग्राम का चौथाई भाग कचनार और गुग्गुल को शहद के साथ मिलाकर सेवन करने से कुबड़ापन दूर होता है।
30. कुबड़ापन के दूर करने के लिए कचनार का काढ़ा बनाकर सेवन करना चाहिए।
12 उपंदश (गर्मी का रोग या सिफिलिस)
31. कचनार की छाल, इन्द्रायण की जड़, बबूल की फली, छोटी कटेरी के जड़ व पत्ते और पुराना गुड़ 125 ग्राम।
इन सभी को 2.80 किलोग्राम पानी में मिलाकर मिट्टी के बर्तन में पकाएं.
जब यह पकते-पकते जब आधा बचे तो इसे उतारकर छान लें।
अब इसे एक बोतल में बंद करके रख लें और सुबह-शाम सेवन करें।
13 स्वरभंग एवं गले के रोग
32. गलकोष प्रदाह (गलकोष की सूजन)-खैर (कत्था) के फल, दाड़िम पुष्प और कचनार की छाल।
इन तीनों को मिलाकर काढ़ा बना लें और इससे सुबह-शाम गरारा करने से गले की सूजन मिटती है।
33. गला बैठना-कचनार मुंह में रखकर चबाने या चूसने से गला साफ होता है।
इसको चबाने से आवाज मधुर (मीठी) होती है.
यह गाना गाने वाले व्यक्ति के लिए विशेष रूप से लाभकारी है।
14 लिवर एवं थायरॉयड दोष
कचनार के फूल थायराइड की सबसे अच्छी औषधि माने जाते हैं।
यदि लिवर में कोई दोष हो, कमज़ोरी हो, तो कचनार की जड़ का काढ़ा पीने से त्वरित लाभ मिलता है।