मौन से वह सब घटित हो सकता है जो बोलने से नहीं होता। यही है मौन की महिमा.
जब तक मन है तब तक सांसारिक उपद्रव हैं
मन गया कि संसार भी गया; और संन्यास शुरू।
यहाँ सन्यास का का अर्थ है फ़िज़ूल के विचारों और कर्मों से जुड़े रहने का भाव.
योग कहता है…
ऊर्जा और सत्य का द्वार है मौन
जिसे एकाग्रता चाहिये या मन का भरपूर व सही उपयोग करना है वह आत्मिक शक्ति पर विश्वास करेगा।
योग में भी, किसी भी क्रिया को करते समय मौन का महत्व माना जाता रहा है।
मौन से जहाँ मन की मौत हो जाती है वहीं आत्मा जाग जाती है जिससे आत्मिक शक्ति भी बढ़ती है।
जिसे मोक्ष के मार्ग पर जाना है या कुछ नया करना है वह मन की मौत में विश्वास रखता है.
इसीलिए संतजन, विज्ञानी, महापुरुष, खोजकर्ता इत्यादि सभी,
कभी भी फ़िज़ूल की बातें नहीं करते.
वे अधिकतर मौन ही रहते हैं, केवल नपी तुली काम की ही बात करते हैं.
क्यों ज़रूरी है मौन
हो सकता है कि पिछले 15-20 वर्षों से आप व्यर्थ की बहस करते रहे हों।
वही बातें बार-बार सोचते और दोहराते रहते हों जो कई वर्षों के क्रम में सोचते और दोहराते रहे।
क्या मिला उन बहसों से और सोच के अंतहीन सिलसिले से?
मानसिक ताप, चिंता और ब्लड प्रेशर, ह्रदय रोग या डॉयबिटीज।
योगीजन कहते हैं
जरा सोचें, आपने अपने जीवन में कितना मौन अर्जित किया और कितनी व्यर्थ की बातें।
किस दिन या समय रखें मौन
ऑफिस में काम कर रहे हैं या सड़क पर चल रहे हैं।
कहीं भी एक कप चाय पी रहे हैं या अकेले बैठे हैं।
किसी का इंतजार कर रहे हैं या किसी के लिए कहीं जा रहे हैं।
सभी स्थितियों में व्यक्ति के मन में विचारों की अनवरत श्रृंखला चलती रहती है और विचार भी कोई नए नहीं होते।
रोज वहीं विचार और वही बातें जो पिछले कई वर्षों से चलती रही हैं।
चुप रहने का अभ्यास करें और व्यर्थ की बातों से स्वयं को अलग कर लें।
सिर्फ श्वासों के आवागमन पर ही अपना ध्यान लगाए रखें और सामने जो भी दिखाई या सुनाई दे रहा है उसे उसी तरह देंखे जैसे कोई शेर सिंहावलोकन करता है।
सोचे बिल्कुल नहीं और कहें कुछ भी नहीं, अधिक से अधिक चुप रहने का अभ्यास करें।
यदि आप कोई मंत्र जपते हैं तो उसका मानसिक जाप भी कर सकते हैं, मंत्र में विलीन हो जाईये।
हफ्ते में एक दिन मौन रखने की भी परम्परा है और कई लोग रोज़ एक या दो घंटे का मौन रखते हैं,
जैसे कि सुबह उठते ही या फिर दोपहर या रात के भोजन के बाद.
यदि आप ब्लडप्रेशर से राहत चाहते हैं तो सुबह मौन रखिये, और यदि नींद की समस्या है तो रात के भोजन के बाद.
यदि परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं तो दिन में दो तीन बार 10-15 मिनट का मौन रख लिया करें.
मौन के लाभ जानकार आप आश्चर्यचकित हो जायेंगे.
साक्षी भाव में रहें
अर्थात किसी भी रूप में इन्वॉल्व ना हों।
हर विचार को, सुखद या दुखद स्मृति को दूर से देखिये, उससे भागने या उसे भगाने का प्रयास न करें.
वे स्वयं ही विलुप्त होते जायेंगे.
यदि कोई बड़ी चिंता है तो उस चिंता को भी साक्षी भाव से तब तक देखें कि वह विलुप्त हो जाए.
यकीन मानिए, मौन से बड़ी से बड़ी चिंता का समाधान हो जाता है.
यदि आप ध्यान कर रहे हैं तो आप अपनी श्वास की ध्वनि सुनते रहें
और उचित होगा कि आसपास का वातावण भी ऐसा हो, जो आपको श्वासों की गति को सुनने दें।
घर के बाहर, पूर्णत: शांत स्थान पर मौन का आनंद लेने वाले जानते हैं
कि उस मध्य वे कुछ भी सोचते या समझते नहीं हैं,
केवल हरी भरी प्रकृति को निहारते हैं और स्वयं के अस्तित्व को टटोलते हैं
मौन की अवधि
वैसे तो मौन रहने का समय नियुक्ति नहीं किया जा सकता.
कहीं भी कभी भी और कितनी भी देर तक मौन रहकर मौन का लाभ पाया जा सकता है।
किंतु फिर भी किसी भी नियुक्त समय और स्थान पर रहकर हर दिन ध्यान या मौन 20 मिनट से लेकर 1 घंटे तक किया जा सकता है।
क्या करें मौन में
मौन में सबसे पहले जीव्हा चुप होती है, फिर धीरे-धीरे मन भी चुप होने लगता है।
मन में जब चुप्पी गहराएगी तो आँखें, चेहरा और पूरा शरीर शांत होने लगेगा।
तब इस संसार को नए सिरे से देखना शुरू करें।
जैसे एक 2 साल का बच्चा देखता है।
जरूरी है कि मौन में केवल श्वासों के आवागमन को ही महसूस करते हुए उसका आनंद लें।
या फिर मन्त्र मुग्ध हो कर मंत्र का अवलोकन तब तक करें जब तक कि मन्त्र भी विलुप्त न हो जाए.
यह है मौन की महिमा
मौन से आत्मिक शक्ति बढ़ती है।
जब आत्मिक शक्ति बढ़ती है तो मन भी बलवान बनता है.
और शक्तिशाली मन में किसी भी प्रकार का भय, क्रोध, चिंता और व्यग्रता नहीं रहती।
मौन के अभ्यास से सब प्रकार के मानसिक विकार समाप्त हो जाते हैं।
रात में नींद अच्छी आती है।
यदि मौन के साथ ध्यान का भी प्रयोग किया जा रहा है तो व्यक्ति निर्मनी दशा अर्थात बगैर मन के जीने वाला बन सकता है.
इसे ही ‘मन की मौत’ कहा जाता है जो आध्यात्मिक लाभ के लिए अति आवश्यक है।
मन को शांत करने के लिए मौन से अच्छा और कोई दूसरा रास्ता नहीं।
मन की जागरूकता (होश) का विकास होता है।
मौन से सकारात्मक सोच का विकास होता है।
सकारात्मक सोच हमारी अंतरशक्ति को बल प्रदान करती है।
ध्यान योग और मौन का निरंतर अभ्यास करने से बीमारियों से लड़ने की क्षमता भी बढ़ती है,
विशेषकर ब्लड प्रेशर,अनिद्रा रोग, तनाव, डिप्रेशन, गुस्सा आना जैसे विकारों में ज़रूर लाभ मिलता है।