घर पर बनाईये त्रिकटु चूर्ण – जानिये क्या हैं फायदे

आयुर्वेद में  कुछ वनस्पतियों के योग भी बनाये जाते हैं जिन्हें अलग नामों से जाना जाता है. त्रिफला चूर्ण, त्रिकटु चूर्ण, दशमूल, पंचमूल इत्यादि ऐसे ही नाम हैं जिनमें एक से अधिक वनौषधियों का समावेश रहता है.

काली मिर्च (Piper nigrum),

पिप्पली (Piper longum) और

सौंठ अथवा सुखाई हुई अदरक (Zingiber officinalis)

के समभाग योग के चूर्ण को त्रिकटु या त्र्युषण कहा जाता है.

आयुर्वेद में उल्लेख है:

पिप्पली श्रंगवेरं च मरिचं त्र्युष्ण विदु: |

मतलब शुंठी, कालीमिर्च एवं पिप्पली इन तीनो के मिश्रण को त्रिकटु कहा जाता है |

अर्थात तीन कटु द्रव्यों का योग|

शुंठी, कालीमिर्च एवं पिप्पली इन तीनों की प्रकृति उष्ण (गरम) और वायु हरने वाली होती है.

शायद इसी कारण इस योग को  त्र्युषण कहा गया होगा.

त्रिकटु चूर्ण कफ शामक भी होता है|

मुख्यत: इसका उपयोग पाचन एवं सभी प्रकार के आमवात दोषों में किया जाता है|

योगवाही होता है त्रिकटु चूर्ण

शोधों द्वारा त्रिकटु के सभी घटक योगवाही भी पाये गए हैं.

योगवाही का मतलब है ऐसे द्रव्य जो आहार के पोषण तत्वों के अवशोषण को बढ़ा दें.

यदि आप टमाटर के सलाद में या फिर दूध में थोडा त्रिकटु चूर्ण मिला दें तो आप इनके अधिक पोषक तत्वों को ग्रहण कर पाएंगे.

त्रिकटु चूर्ण के सेवन से भूख की कमी अथवा अग्निमांद्य, अरुचि, पाचन विकार,

श्वास, कास, गुल्म, प्रमेह, मेदोरोग एवं त्वचा विकारों में लाभ मिलता है|

यह चूर्ण एंटी वायरल एवं सूजाकरोधी (एंटीइन्फ्लामेटरी) औषधीय गुणों से युक्त होता है,

जो इसे वायरस एवं सूजन से छुटकारा दिलाने में उपयोगी बनाते हैं|

 घर पर त्रिकटु चूर्ण बनाने की विधि

चूर्ण बनाने के लिए तीनों घटक द्रव्यों की समभाग मात्रा ले लीजिये.

यानि सोंठ (शुंठी), कालीमिर्च और पिप्पली सभी एक समान वज़न में.

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यदि आपको 150 ग्राम त्रिकटु चूर्ण बनाना है तो सभी की 50 – 50 ग्राम मात्रा लेनी चाहिये |

सोंठ का पाउडर बनाना थोडा कठिन काम हो सकता है और इसका बना बनाया पाउडर बाज़ार में भी मिल जाता है.

पिप्पली और काली मिर्च का चूर्ण आपको घर पर ही तैयार करना चाहिए.

पिप्पली के केवल फल का भाग ही लेना चाहिए, उसकी डंडियों को अलग कर उपयोग न करें.

काली मिर्च और पिप्पली का पाउडर बनाने के लिए इन्हें मिक्सर/ग्राइंडर में थोडा ग्राइंड भर करना होता है.

सभी घटकों का बारीक चूर्ण बनाने के पश्चात इन्हें आपस में मिला दें |

और लीजिये, आपने त्रिकटु चूर्ण तैयार कर लिया|

इस चूर्ण को किसी जार या खुले मुहं की बोतल में बंद करके रखें, क्योंकि खुला रखने से इनके तैलीय flavonoids कम हो जाते हैं |

एक बात पक्की है.

घर पर बनाया त्रिकटु चूर्ण अधिक प्रभावी होता है, बजाये कि बाजारू चूर्ण के|

मात्रा एवं सेवन विधि 

पेट विकारों के लिए त्रिकटु की सामान्य मात्रा आधे ग्राम से एक ग्राम तक की है.

खांसी, जुकाम, नज़ला  और एलर्जी के लिए यह मात्रा दोगुनी भी कि जा सकती है.

अग्निमांद्य (भूख न लगना): खाने के समय से आधा घंटा पहले पानी के साथ लें.

अपच, अफारा (वायुगोला) और अजीर्ण  जैसे पाचन विकार में: खाने के तुरंत बाद पानी के साथ.

खांसी, जुकाम और सम्बंधित एलर्जी में: शहद में मिलाकर दिन में तीन से चार बार.

मेदोरोग (पेट का मोटापा): खाली पेट, दिन में दो बार पानी के साथ.  सेवन काल में त्रिफला चूर्ण का उपयोग भी करना चाहिए.

थाइरोइड विकारों में: खाली पेट, दिन में दो बार पानी के साथ. साथ ही कचनार गुगुल  का उपयोग भी करना चाहिए.

त्रिकटु के सेवन में सावधानियां 

बवासीर रोग में इस चूर्ण का सेवन नहीं करना चाहिए |

यदि आवश्यकता हो तो वैद्य से परामर्श अवश्य लेना चाहिए |

पित्त प्रकृति या उष्ण प्रकृति के लोगों को भी त्रिकटु का सेवन वैद्य से परामर्श लेकर ही करना चाहिए|

गर्मियों की ऋतू में इससे परहेज करना लाभदायक है |

गर्भधारण और मासिक धर्म की समस्या में महिलाओं को त्रिकटु का अधिक उपयोग नहीं करना चाहिए |

पेट में जलन, शरीर में उष्णता एवं एसिडिटी की समस्या उत्पन्न हो सकती है.

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