आयुर्वेद में मघ पिप्पली को एक उच्च स्थान प्राप्त है.
मघ और पिप्पली एक ही वनस्पति के दो नाम हैं.
इसे रसायन, सुगंधी, दीपक (appetite excitant), पाचक, वातहर, कफ़घन्न व उष्ण बताया गया है.
आईये, जानते हैं पिप्पली से मिलने वाले लाभों को, जो आपको इसे अपनी रसोई में रखने के लिये बाध्य कर सकते हैं.
मघ पिप्पली – अन्य नाम और गुण विशेष
पिम्पली, तिप्पली, हिप्प्ली, लिंडी पीपल, तिप्पली इत्यादि मघ पिप्पली के अन्य भारतीय नाम हैं.
इसे पीपर, गज पिपली इत्यादि अन्य नामों से भी जाना जाता है.
कई जगह इसे गंथोड़ा भी कहा जाता है जबकि गंथोड़ा तगर को भी कहा जाता है.
अंग्रेजी में इसे Long pepper कहा जाता है जबकि इसका वानस्पतिक नाम Piper longum है.(1)
मघ पिप्पली एक Piperaceae वर्ग की वनस्पति है. (2)
पिप्पली में उपलब्ध पाइपरीन, पाइपप्रीडीन व चाविसीन नामक द्रव्य पाए जाते हैं जो इसे विशेष गुण प्रदान करते हैं. (3, 4)
आयुर्वेद में इसका उपयोग अपचन, अग्निमंदय, उदरशूल, कास, श्वास, स्वरभंग, आमवात, प्रसूतिज्वर, वातरक्त, अंगघात इत्यादि कई विकारों के लिये बताया गया है.
सन्दर्भ है कि ये शरीर की धातुओं को पुष्ट करके उनकी रक्षा करती है.
ये एक वनौषधि है लेकिन कई भारतीय घरों में भी इसकी बेल लगाईं हुई मिल जाती है.
पिप्पली इसके फल को कहा जाता है जबकि इसकी जड़ को पीपलामूल कहा जाता है.
मघ पिप्पली के 10 उपयोग
पिप्पली का उपयोग आधुनिक भारतीय व्यंजनों में नगन्य हो गया है.
लेकिन मलेशिया, इंडोनेशिया इत्यादि देश, जो पुरानी भारतीय सभ्यता के ही विस्तार हैं; में इसका उपयोग लगभग हर रसोई व व्यंजन में होता है.
वे यदि किसी पकवान में काली मिर्च डालेंगे, तो साथ में पिप्पली भी अवश्य डालेंगे.
आईये जानते हैं पिप्पली के विशेष औषधीय उपयोग
1. अग्निमांद्य (Loss of appetite)
बुखार इत्यादि के कारण जब भूख कम हो तो पिप्पली चूर्ण का आधा चम्मच शहद के साथ दिन में भोजन समय से एक घटा पहले लें.
छोटे बच्चे जो खाना खाने में आनाकानी करते हों, उन्हें भी यह प्रयोग दिया जाता है, लेकिन उन्हें एक चौथाई चम्मच ही दें.
2. दांत दर्द व मसूड़ों की सूजन में
पिप्पली, सेंधा नमक, हल्दी समभाग लेकर उसे सरसों के तेल में मिलाएं.
इस पेस्ट को दांतों मसूड़ों में लगा कर दो मिनट बाद कुल्ला कर लें.
अचूक लाभ मिलता है.
3. अपचन व अफारा (Indigestion & flatulence)
पिप्पली चूर्ण, मुलेठी चूर्ण व सौंठ समभाग मिला कर एक चम्मच लें.
इसे भोजन के बाद लेने से अपचन (indigestion) में भी लाभ मिलता है.
4. अनिद्रा में (Insomnia)
अनिद्रा (Insomnia or sleeplessness) में पिप्पली का चूर्ण बना कर उसमें समभाग मिश्री या देशी शक्कर मिला लें.
दिन में दो या तीन बार लेने पर अनिद्रा रोग में लाभ मिलता है.
यह प्रयोग बुढ़ापे की अनिद्रा में अधिक कारगर रहता है जिसमें कमज़ोर पाचन कम नींद का कारण रहता हो.
5. मोटापे में (Obesity)
पिप्पली वात व कफ़ नाशक होने से मोटापे में काफी लाभकारी रहती है.
गर्म होने के कारण इसे चर्बी जमाव रोधी बताया जाता है.
मोटापा घटने के लिये पिप्पली की जड़ का चूर्ण उपयोग किया जाता है, फल का नहीं. पिप्पली जड़ के चूर्ण का एक चम्मच दिन में तीन बार, पानी के साथ लेने पर मोटापे में निश्चित लाभ मिलता है.
इसे लेने के बाद कम से कम एक घंटे तक कुछ भी न खाएं.
6. लिवर बढ़ने पर (Liver enlargement)
कई कारणों से लिवर बड़ा होकर कार्यक्षमता में कमज़ोर हो जाता है.
इसके लिये पिप्पली का चूर्ण, मुलेठी का चूर्ण समभाग लेकर मिला लें.
इ सकाएक चम्मच लेकर शहद मिला कर दिन में तीन या चार बार लेने से लिवर के बढे आकार में तेज़ी से लाभ होता है.
7. मायग्रेन में (Migraine)
पिप्पली चूर्ण में समभाग बच (flagroot) का चूर्ण मिला लें.
इसका आधा चम्मच गर्म पानी या दूध के साथ लेने पर मायग्रेन में लाभ मिलता है.
8. दूध बढ़ाने के लिये (Galactogogue)
जिन देवियों के बच्चा होने पर दूध बनने में कमी होती हो, उन्हें पिप्पली चूर्ण व शतावरी चूर्ण समभाग मिला कर रख लेना चाहिए.
इस योग के एक चम्मच चूर्ण को शहद मिला कर लें; ऊपर से दूध पी लें.
दिन में तीन बार लेने पर दूध में निश्चित बढ़ोतरी होने लगती है.
चाहें तो इस योग में विदारीकन्द भी मिलाया जा सकता है.
9. संग्रहणी रोग में (Irritable Bowel Syndrome)
संग्रहणी (IBS) रोग में पिप्पली का उपयोग लगभग हर आयुर्वेदिक औषधि में किया जाता है.
पिप्पली चूर्ण को समभाग त्रिफला चूर्ण, बेलगिरी चूर्ण के साथ मिला कर लेने से संग्रहणी रोग में लाभ मिलता है.
यह एक घरेलु उपाय है; हो सकता है यह पुरानी हठी संग्रहणी में इतना कारगर न हो.
10. खांसी, जुकाम में
पिप्पली, अदरक और काली मिर्च समभाग (लगभग एक चम्मच) में लेकर इसे आधा लिटर पानी में 10 मिनट तक उबाल लें.
फिर छान लें.
इसमें स्वादानुसार शहद मिला लें.
एक बेहतरीन कफ़ सिरप तैयार है.
इसका एक चम्मच दिन में तीन चार बार लेने पर खांसी, जुकाम, गले की खराश व छाती की जकड़न में लाभ मिलता है.
इस योग में शहद की जगह नमक मिला कर गरारे करने में भी उपयोग होता है.
त्रिकटु (Trikatu)
पिप्पली, अदरक और काली मिर्च के समभाग मिश्रण को आयुर्वेद में त्रिकटु कहा जाता है.
इसे त्रिकुटा, त्रिकुटी भी कहते हैं.
त्रिकटु एक योगवाही औषधि है, जिसका मतलब है, ऐसी औषधि जो अन्य दवाओं या आहारों को शरीर में बेहतर ढंग से पहुंचाए.
त्रिफला की भांति त्रिकटु का भी आयुर्वेद में एक विशिष्ट स्थान है.
त्रिकटु को अग्निवर्धक, मेद और कफनाशक, और कई प्रकार की एलर्जी के लिए उत्तम माना जाता है.
सारशब्द
पिप्पली एक रसोई में रखने व उपयोग करने योग्य वनस्पति है.
आयुर्वेद में इसके फल और जड़ के उपयोग का विधान है.
बताये गए 10 उपयोगो के अतिरिक्त भी यदि इसका नित्य सेवन एक रसायन के रूप में किया जाए, तो कई रोगों से बचा जा सकता है.
इसे अपने मसालों में स्थान दीजिये; लाभ ही लाभ मिलेगा.
Good Herb Pipile
Yes Kiransankar ji.