तुम ही मैं हूँ, फिर चिन्तन क्या, मैं ही तुम हो, फिर उलझन क्या
आदरणीय आलोक सहदेव जी द्वारा श्रीरामशरणम् को समर्पित आलौकिक भजन,
तुम ही मैं हूँ, फिर चिन्तन क्या
आपजी की सेवा में प्रस्तुत
तुम ही मैं हूँ, फिर चिन्तन क्या, मैं ही तुम हो, फिर उलझन क्या
तुम ही मैं हूँ, मैं ही तुम हो…
सब के भीतर एक ब्रह्म है, तेरी मेरी फिर अनबन क्या
तुम ही मैं हूँ, मैं ही तुम हो…
सारा झगडा मैं और तुम का, खून खराबा मैं और तुम का
क्रोध कपट दुश्मनी दोस्ती, सभी दिखावा मैं और तुम का
तुम ही मैं हूँ, मैं ही तुम हो…
फूलों में मकरंद तुम्हीं हो, मीठी मोहक गंध तुम्ही हो
तुम्हीं स्वासों के संचालक हो, योगी के आनंद तुम्हीं हो
तुम ही मैं हूँ, मैं ही तुम हो…
मल्यागिरी की पवन तुम्हीं हो, कलाकार का सृजन तुम्हीं हो
दुःख के गहरे अन्धकार में, आशाओं की किरण तुम्हीं हो
तुम ही मैं हूँ, मैं ही तुम हो…
(अनुमति के लिये आलोक सहदेव जी का अतिशय धन्यवाद)
Ati madhur gayan, ati madhur bhav. Jai ho.
Bilkul atmik shabd, bhav aur gayan. Thank you.
राम राम जी,
बहुत सुंदर. आनंद ही आनंद.
धन्यवाद
Welcome always, Himanshu ji. Thanks.
Thank you for sharing this beautiful composition. Amazing…