सोशल मीडिया पर आजकल लेखों का एक बड़ा अभियान देखने को मिलता है कि एल्युमीनियम के बर्तनों का उपयोग बंद कर दो
नहीं तो किडनी खराब हो जाएगी, कैंसर हो जायेगा, यादाश्त कमज़ोर हो जायेगी और पता नहीं क्या क्या रोग हो जायेंगे.
हालाँकि इन लेखों में कोई भी तर्कसंगत सबूत का उल्लेख नहीं मिलता न ही वे किसी वैज्ञानिक शोध पर आधारित होते हैं,
लेकिन उनकी भाषा और लिखने का लहजा सामान्य व्यक्ति को भ्रम में ज़रुर डाल देता है.
इसी अफवाह को सच्चाई मानते हुए, कई सारे सीधे सच्चे सज्जन जनों ने एल्युमीनियम के बर्तन, प्रेशर कुकर उपयोग करना छोड़ दिए हैं.
और पैकेजिंग फोइल्स के उपयोग बंद कर दिए हैं.
आईये पड़ताल करते हैं कि कैसे यह मनघडंत अभियान केवल उन मैगजीन्स और वेबसाइटस की करामत है
जो सनसनीखेज विषयों से लोगों को आकर्षित करने के हथकंडे अपनाती हैं
और सामान्य जनमानस को भ्रमित करती हैं.
एल्युमीनियम – संक्षिप्त परिचय
सब धातुओं जैसे लोहा, चांदी, जिंक, कैल्शियम, ताम्बा इत्यादि, में वज़न के हिसाब से,
एल्युमीनियम ही धरती की सतह पर सबसे अधिक पाई जाने वाली धातु (metal) है.
अब यदि हम धरती की सतह पर पाए जाने वाले तत्वों (elements) की बात करें
तो ऑक्सीजन, सिलिकॉन के बाद एल्युमीनियम ही सबसे अधिक पाया जाने वाला तत्व है. (1)
आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस, कार्बन; कोई भी इतनी अधिक मात्रा में नहीं मिलते जितनी मात्रा में अकेले एल्युमीनियम पाई जाती है.
यह बात इसलिए दोहराई गई है ताकि हम जान लें कि हमारे एक एक कदम पर, मिटटी की हर मुट्ठी में, पेड़ पौधों, जीव जंतुओं सब में, एल्युमीनियम पाई जाती है.
इसे हम हर सांस से, हवा के साथ अपने अंदर लेते रहते हैं.
यह त्वचा पर भी पाई जाती है, बालों में भी, नाखूनों में भी, दांतों कानों, आँखों में भी.
वास्तव में शरीर के हर अंग में एल्युमीनियम विद्यमान रहती है.
ऐसा बिलकुल नहीं है कि केवल बर्तनों के उपयोग से ही एल्युमीनियम हमारे शरीर में प्रवेश करती हो.
लाखों करोड़ों सालों से, जबसे इस धराधाम पर जीवन की शुरुआत हुई, तब से ही एल्युमीनियम हर प्राणी में पाई जाती है.
और किसी छोटी मोटी मात्रा में नहीं, बड़ी मात्रा में.
एल्युमीनियम धातु को अलग करके, उसके बर्तन बनाने की प्रक्रिया को तो, अभी सौ साल से कुछ ही ऊपर का ही समय हुआ है.
जीवविज्ञान में एल्युमीनियम का महत्व
अब प्रश्न उठता है जब हर जगह, हर प्राणी और हर वनस्पति, सब में एल्युमीनियम पायी जाती है
तो फिर हम खाद्य वनस्पतियों और आहारों में एलुमिनियम की मात्रा का उल्लेख क्यों नहीं करते
जैसा कि हम आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, फॉस्फोरस और मैंगनीज इत्यादि की मात्रा का करते हैं.
वास्तव में, धरती पर इतने बड़े पैमाने पर पाए जाने के बाबजूद एल्युमीनियम का जीव विज्ञान में कोई भी कार्य (function) नहीं पाया गया है.
एल्युमीनियम के लवण (Aluminium salts) अभूतपूर्व रूप से तटस्थ (neutral) अथवा बिना लाभ हानि वाले तथा विषहीन (nontoxic) भी होते हैं,
जिस कारण हमारा शरीर इनकी भारी मात्रा भी बड़े आराम से ग्रहण और सहन कर लेता है.
और बड़े ही आराम से इसका निस्सारण भी करता है.
यही एक इकलौती ऐसी धातु है जिसे शरीर निस्सारण के सभी ज़रिये द्वारा बाहर भी निकालता रहता है.
बड़े ही सहज तरीके से एल्युमीनियम मूत्र, पसीने, मल, बालों और नाखूनों द्वारा शरीर से बाहर निकलती रहती है.
आपको पता ही होगा कि antacids में एल्युमीनियम हाइड्रोकसाईड उपयुक्त होता है
और एसिडिटी के निवारण के लिए इसकी 10 से 15 गोलियां या फिर इसकी जेल की दिन भर में आधी से एक शीशी तक उपयोग कर ली जाती है
जिसका मतलब है 20 से 30 ग्राम तक एल्युमीनियम ऑक्साइड.
अब सोचिये इतनी बड़ी मात्रा में न तो आप आयरन के लवण ले सकते हैं, न ही कैल्शियम या किसी अन्य खनिज तत्व के, क्योंकि इन सबकी इतनी मात्रा घातक मानी जाती है.
घातक खुराक मात्रा (lethal dose)
हर खाद्य वस्तु की एक घातक खुराक मात्रा (lethal dose) होती है जिसे लेने पर मृत्यु हो सकती है.
चाहे वह कैल्शियम हो, आयरन हो, कोई विटामिन हो या फिर चाहे पानी जैसी सामान्य ज़रूरी वस्तु.
कैल्शियम और आयरन की घातक मात्रा क्रमश: 250mg/kg और 120mg/kg से भी कम होती है.
यानि एक 65 किलोग्राम व्यक्ति के लिए 16 ग्राम कैल्शियम या लगभग 7.75 ग्राम आयरन जानलेवा हो जाता है.
इसका मतलब है इनके लवणों का क्रमश: 56 ग्राम और 27 ग्राम वज़न एकमुश्त खाना घातक होता है.
एल्युमीनियम के लवण aluminium sulfate में यह घातक खुराक मात्रा (lethal dose) 6207 mg/kg की है
जिसका मतलब है, कि एक 65 किलोग्राम व्यक्ति के लिए यह तभी घातक हो सकती है, जब इसके लवणों की 400 ग्राम से अधिक की मात्रा एकमुश्त खायी जाये.
मतलब सीधा है कि एल्युमीनियम की बेहद अधिक मात्रा शरीर द्वारा सहन की जा सकती है,
तुलना में, किसी भी अन्य धातु की घातक मात्रा की खुराक बड़ी ही कम होती है.
बर्तनों के उपयोग में धातुओं का प्रभाव
यह बात सही है कि जब भी आप किसी धातु के वर्तन का उपयोग खाना बनाने या खाने के लिए करते हैं तो क्षरण के कारण उस धातु विशेष के कुछ अंश खाने में भी मिल जाते हैं.
एक सीमा तक यह अंश कोई नुक्सान नहीं पहुंचाते, बल्कि अधिकांशत: लाभकारी ही रहते हैं.
खट्टी वस्तुओं से धातुओं का क्षरण बढ़ जाता है.
जब खट्टी वस्तुओं को अधिक देर तक धातुओं के बर्तन में रखा जाता है तो अधिक क्षरण के कारण धातु विशेष की मात्रा इतनी बढ़ जाती है जो खाने को नुक्सानकारी भी बना सकती है.
इसलिए आपने देखा होगा कि खट्टी वस्तुओं को ताम्बे, पीतल, लोहे या एलुमिनियम के बर्तनों में बना कर तुरंत उपयोग कर लिया जाता है.
यदि खट्टी वस्तुओं को एक दो दिन इन बर्तनों में ही रहने दिया जाए तो वे खाने लायक नहीं रहती.
इसलिए, क्योकि खटाई वाले आहार और बर्तन की धातु की आपसी प्रतिक्रिया लवण को बढ़ा कर व्यंजन के स्वाद को बिगाड़ देती है और इन्हें हानिकारक भी बना देती है.
ताम्बे, पीतल और लोहे के बर्तन की खटाई तो बेहद विषैली हो जाती है जो मृत्यु तक का संकट खड़ा कर सकती है.
इस प्रकार से होने वाले धातुओं के नुक्सान का अलग अलग अवलोकन करें तो ताम्बे, पीतल, स्टील, निकल, के बर्तनों के अधिक नुक्सान हैं
और एल्युमीनियम के सबसे कम.
यही नहीं, इस लिहाज से कांच, सिरेमिक, प्लास्टिक के बर्तनों से भी अधिक नुक्सान होने की संभावना है क्योकि उनके निर्माण में अधिक घातक रसायनों का उपयोग होता है.
फिर तो, केवल सिलिकॉन के बर्तन ही एकमात्र विकल्प बचते हैं जिनमें कोई क्षरण नहीं होता.
आहार और पर्यावरण में एल्युमीनियम
हमारे शरीर में एल्युमीनियम के मुख्य स्रोत आहार, पानी और हवा है, न की एल्युमीनियम के बर्तन.
एल्युमीनियम के बर्तनों से बेहद कम एलुमिनियम हमारे शरीर में पहुँचती है.
हर सांस के साथ एल्युमीनियम हमारे शरीर में पहुँच रही है.
सांस द्वारा ली गयी एल्युमीनियम सीधे ही शरीर के हर भाग में पहुँच जाती है.
हमारे आहार में भी एल्युमीनियम रहती है.
उदाहरण के तौर पर टमाटर में 9 ppm (दस लाख हिस्सों में 9) एलुमिनियम पाई जाती है.
अब यदि आप इन टमाटरों को किसी एल्युमीनियम के बर्तन में पकाया जाये तो केवल 3ppm की बढ़ोतरी होकर यह 12ppm हो जायेगी.
यह मात्रा बेहद कम और सुरक्षित है.
दूसरी ओर, एक चम्मच या एक गोली antacid जैसे Gelusil या Diagene में aluminum hydroxide के रूप में 83000ppm एलुमिनियम होती है
और इन दवाओं की प्रतिदिन सुरक्षित मात्रा 18 चम्मच तक बताई जाती है.
ज़रा गौर कीजिये कि 18 चम्मच antacid में कितनी भारी भरकम मात्रा आप ले सकते हैं, जिसे सुरक्षित माना गया है.
जहाँ एक गोली में 83000ppm एलुमिनियम सुरक्षित मानी जाती हो,
वहां खट्टे टमाटर पकाने पर केवल 3ppm की एल्युमीनियम बढ़ने की फ़िक्र करना बिलकुल बेमानी और तर्कहीन कहानी है.
जिसे बेवजह तूल देकर जनमानस में भ्रम फैलाया जा रहा है.
कैसे शुरू हुआ एल्युमीनियम का भ्रम
2007 में NCBI का एक शोधपत्र प्रकाशित हुआ था.
इस शोध में एल्युमीनियम के कारखानों में काम करने वालों पर एल्युमीनियम के प्रभावों का विश्लेषण किया गया था.
हालांकि इस लेख में स्पष्ट उल्लेख था कि शोध का उद्देश्य कारखानों में एलुमिनियम की अत्यधिकता (Over exposure) से होने वाले व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिम प्रभावों का मूल्यांकन करना था,(1)
लेकिन सनसनीखेज मीडिया नें इसे ऐसे पेश किया जैसे एल्युमीनियम की वजह से हर घर में बड़ी तबाही आ गयी हो.
क्या है व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिम
यह जगजाहिर है कि कारखानों में किसी भी वस्तु से सालों साल संपर्क में रहने के कुछ दुष्परिणाम अवश्य होते हैं
जिन्हें व्यावसायिक स्वास्थ्य जोखिम (Professional health risk) कहा जाता है.
ये जोखिम कई प्रकार के उद्योगों में पाए जाते हैं.
यह सीमेंट, रिफाइनरी, स्टील, केमिकल्स, पेंट, प्लास्टिक के कारखानों में होते ही हैं.
स्टील, ताम्बा, पीतल अर्थात सब प्रकार की धातुओं के निर्माण कारखानों में भी होते हैं.
ऐसे ही एल्युमीनियम के उद्योगों में भी कुछ स्वास्थ्य जोखिम होते हैं.
लेकिन इस प्रकार के जोखिमों के मूल्यांकन को घरेलू उपयोग के साथ जोड़ कर देखना बिलकुल तर्कहीन है.
यदि कारखानों के स्वास्थ्य जोखिमों को पारिवारिक उपयोग से जोड़ कर ही देखना हो तो फिर
हमें न तो घर पेंट करवाने चाहिए (क्योंकि पेंट भारी प्रदूषक होता है),
न ही प्लास्टिक की कोई भी वस्तु उपयोग करनी चाहिए (क्योंकि प्लास्टिक कैंसर कारक होता है), और न ही
स्टील, ताम्बा, पीतल; किसी प्रकार के बर्तन उपयोग करने चाहिए (क्योंकि उनकी घातक खुराक मात्रा यानि lethal dose इतनी कम है कि चार पांच दिन से ताम्बे के बर्तन में रखी खटाई, पूरे परिवार को हॉस्पिटल दाखिल करवा सकती है या स्वर्गलोक भी भेज सकती है)
ऐसे दुष्प्रचार के लेख देख कर कई बार लगता है कि यदि हम उनकी कही बातों पर अमल करना हो तो…
हम सबको फिर से जंगलों में जाकर बस जाना चाहिए!!!
विचारणीय तथ्य
सोशल मीडिया में आजकल यह भी बताया जाता है कि हमें मिट्टी के बर्तन उपयोग करने चाहिए.
मिट्टी के बर्तनों के गुणगान गए जाते हैं, अनंत लाभ भी बताये जाते हैं.
जबकि एल्युमीनियम को रोगों का ज़िम्मेदार बताया जाता है.
उन्हें बस एक बात बताइये;
कि मिटटी के बर्तनों में सिलिकॉन के बाद यदि कोई तत्व सबसे अधिक होता है तो वह एल्युमीनियम ही होता है.
फिर प्रश्न पूछिये,
फिर कैसे मिट्टी के बर्तन बेहतर और एल्युमीनियम घातक हो जाती है.
प्रश्न वाजिब है, और शायद पूरा शंका समाधान भी कर दे.
एल्युमीनियम का बेधड़क उपयोग कीजिये
साँसों, पानी, भोजन आहार, पर्यावरण, सब जगह विपुलता में आपको एल्युमीनियम मिलती है.
आपको एल्युमीनियम सम्बन्धी किसी भी वहम में पड़ने की कोई ज़रूरत नहीं है…
और न ही अपने बर्तन, कुकर फेंकने की.
मज़े के साथ एल्युमीनियम का उपयोग कीजिये और स्वस्थ रहिये.
वेबसाइट के ब्लॉग पर नज़र रखिये.
अगले किसी लेख में एलुमिनियम और अन्य धातुओं का विशेष तुलनात्मक विश्लेषण भी करेंगे.
सन्दर्भ लेख साभार
1 https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC2782734/table/T2/
2 https://en.wikipedia.org/wiki/Aluminium
3 http://www.biology-pages.info/A/Aluminum.html
4 https://www.canada.ca/en/health-canada/services/household-products/safe-use-cookware.html
5 https://www.ncbi.nlm.nih.gov/pmc/articles/PMC2782734/
आपने हमारे ज्ञान चक्षु खोल दिये हैं, आभार है आपका
Aapka lekh sarahniy hai, hamaare yahan janata bekar ki baaton se gumrah hoti hai. khas kar Baba jaise logon se, jinhen n to kuchh pata hai n hi ve koi sahi baat batate hain. Thanks
Aajkal Ramdev aur Rajiv Dixit type ka itna chalan hai ki sahi baat pata hi nahi lagti. me bhi Dr hun lekin lagta hai in logo ne janta ko itna gumrah kiya hai ki, asb ek bhedchaal me unki baat maanne lagte hai.
Your article is an eye opener for all.
Thanks to you.
Thanks for sharing this beautiful and highly informative post.
In India, people get swayed by unfounded statements made by a few who claim themselves as great health experts. I have gone through the speeches by Baba Ramdev and Rajiv Dixit, who have mislead the masses by making controversial claims that have no reference either in Ayurveda or in science.
Your post should be shared by all so that unnecessary fears about aluminium are dispelled.
I admire your effort where you have addressed everything threadbare.
Thanks again, and best wishes.
Very nice blog. It’s very helpful for
all.
Thank you, Shalini ji, for your inspirational words!
आपने एकदम उचित समय पर सही जानकारी दे दी, वरना मैं तो अलमुनियम के बर्तनों को अपने किचन से हटाना चाहता था।
धन्यवाद दिनेश जी!
आप भी एक ब्लॉगर हैं, और मुझे आपका ब्लॉग पढ़ने का अवसर मिला।
मंगल कामनायें!