कभी हमारे भी जहाज चला करते थे

कभी हमारे भी जहाज चला करते थे – बचपन में

कभी हमारे भी जहाज चला करते थे

हवा में भी।

पानी में भी।

दो दुर्घटनायें हुई…

सब कुछ ख़त्म गया…

कभी हमारे भी जहाज चला करते थे – हवा में

एक बार क्लास में हवाई जहाज उड़ाया।

टीचर के सिर से टकराया।

स्कूल से निकलने की नौबत आ गई।

बहुत फजीहत भी हुई, अलग से पिटाई भी हुई।

फिर कसम दिलाई गई कि दोबारा ऐसा नहीं होगा।

कसम खायी, स्कूल में अपनी सीट बचाई

औऱ जहाज उडाना छूट गया।

कभी हमारे भी जहाज चला करते थे – पानी में

वारिश के मौसम में, मां ने अठन्नी दी।

चाय के लिए दूध लाना था।

कोई मेहमान आये थे।

हमने गली की नाली में जहाज चला दी

अठन्नी अपने जहाज में बिठा दी।

तैरते जहाज के साथ हम चल रहे थे।

ठसक के साथ।

खुशी खुशी।

अचानक तेज बहाब आया।

जहाज डूब गया।

साथ में अठन्नी भी डूब गई।

ढूंढे से ना मिली।

मेहमान बिना चाय पिये चले गये।

फिर जमकर ठुकाई हुई।

घंटे भर मुर्गा भी बनाया गया।

और तब से हमारा…

पानी में जहाज तैराना भी बंद हो गया।

ज़माना बदल गया है…

आज प्लेन औऱ क्रूज के सफर में उन दिनों की याद आती है।

बच्चे ने दस हजार का मोबाइल गुमाया तो मां बोली,

कोई बात नहीं, पापा दूसरा दिला देंगे।

हमें अठन्नी पर मिली सजा याद आ गई।

आलम यह है कि आज भी हमारे सर मां-बाप के चरणों में श्रद्धा से झुकते हैं।

और हमारे बच्चे हैं कि…

वे ‘यार पापा,यार मम्मी’ कहकर बात करते हैं।

वाकई जाना बदल गया है

हम प्रगतिशील से प्रगतिवान हो गये हैं।

Contributed by: JP Tiwari, Bhopal; with hearty thanks.





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