यदि आप आयुर्वेद प्रेमी हैं तो गिलोय की पहचान करना और इसके गुणों को जानना एक अति महत्वपूर्ण विषय है.
गिलोय अथवा गुडूची (Botanical name: Tinospora cordifolia) संभवत: एक ऐसी वनौषधि है जिस पर सब से अधिक शोध हुए हैं.
ये शायद इसके अनेकों गुणों के चलते हुआ है.
आयुर्वेद में सन्दर्भ है :
राम – रावण युद्ध के बाद, देवताओं के राजा इंद्र ने अमृत की वर्षा कर राक्षसों द्वारा मारे गए वानरों को पुनर्जीवित किया था.
पुनर्जीवित वानरों के शरीर से अमृत की बूंदे जहाँ जहाँ गिरी, वहां गिलोय की उत्पत्ति हुई.
इसी कारण गुडूची को आयुर्वेद में अमृता भी कहा गया है.
अमृत तुल्य गिलोय की पहचान
यह एक बहुवर्षिय लता होती है जिसके पत्ते पान के पत्ते की तरह होते हैं.
गिलोय की लता जंगलों, खेतों की मेड़ों, पहाड़ों की चट्टानों आदि स्थानों पर सामान्यतः कुण्डलाकार चढ़ती पाई जाती है.
जिस वृक्ष को यह अपना आधार बनाती है, उसके गुण भी इसमें समाहित रहते हैं. इस दृष्टि से नीम पर चढ़ी गिलोय श्रेष्ठ औषधि मानी जाती है.
इसका काण्ड छोटी अंगुली से लेकर अंगूठे जितना मोटा होता है.
बहुत पुरानी गिलोय में यह बाहु जैसा मोटा भी हो सकता है.
इसमें से स्थान-स्थान पर जड़ें निकलकर नीचे की ओर झूलती रहती हैं.
बेल के काण्ड की ऊपरी छाल बहुत पतली, भूरे या धूसर वर्ण की होती है, जिसे हटा देने पर भीतर का हरित मांसल भाग दिखाई देने लगता है.
काटने पर अन्तर्भाग चक्राकार दिखाई पड़ता है.
पत्ते खाने के पान जैसे एकान्तर क्रम में व्यवस्थित होते हैं.
ये लगभग 2 से 4 इंच तक व्यास के होते हैं. स्निग्ध होते हैं तथा इनमें 7 से 9 नाड़ियाँ होती हैं.
पत्र-डण्ठल लगभग 1 से 3 इंच लंबा होता है. फूल ग्रीष्म ऋतु में छोटे-छोटे पीले रंग के गुच्छों में आते हैं.
फल भी गुच्छों में ही लगते हैं तथा छोटे मटर के आकार के होते हैं.
पकने पर ये रक्त के समान लाल हो जाते हैं. बीज सफेद, चिकने, कुछ टेढ़े, मिर्च के दानों के समान होते हैं.
उपयोगी अंग काण्ड है.
पत्ते भी उपयोग होते हैं.
गिलोय के अन्य नाम
संस्कृत में गिलोय की पहचान
गुडूची, मधुपर्णी, अमृता, अमृतवल्लरी, छिन्ना, छिन्नरुहा, वत्सादनी, जीवन्ति, सोमा, सोमवल्ली, कुण्डली, चक्रलक्षनिका, धीरा, विशल्या, रसायनी, चन्द्रहासा, व्यस्था, मण्डली व देवनिर्मिता इत्यादि गिलोय के अन्य नाम हैं.
अन्य भारतीय नाम
देश के विभिन्न हिस्सों में गिलोय को गुरूच, गुडुच, गुलंच, गुल्ज, गुलज, पालो, गुल्वेल, गुलवेल, गरुड़वेळ, गलो, अमरदवल्ली, अमृत्वल्ली, तिप्पतीगे, शिन्दिलकोडी, अमरिडवल्ली, गुलंचा, गिलो, अमरितु, अमृतवेळ इत्यादि नामों से जाना जाता है.
यदि आपको कोई अन्य नाम पता हो तो बताने की कृपा करें.
अमृत तुल्य गिलोय के सक्रिय तत्व
आधुनिक शोधों ने ये निष्कर्ष निकाला है कि गिलोय में तीन ऐसे मुख्य अवयव हैं जो इसे अनंत गुणकारी बनाते हैं. ये हैं
- Giloin glucoside,
- Gloinin, एवं
- Gilosterol
इसके अतिरिक्त इसमें Berberine भी पाई जाती है जो दारुहल्दी (Berberis aristata) या रसौंत व अन्य कुछ वनौषधियों में भी पाई जाती है.
गिलोय विशेष
आयुर्वेद में अमृता को त्रिदोष शामक बताया गया है.
जिसका मतलब है, कि इसकी प्रकृति दोष के अनुसार बदल जाती है.
पित्त प्रकोप में ये शीतल होती है जब कि कफ़ दोष के लिये गर्म.
ये गिलोय की अदभुत खासियत है.
इस लिंक पर देखिये क्या हैं गिलोय के विभिन्न उपचारों में उपयोग.
गिलोय सत्व
गिलोय के सत्व अथवा घनसत्व (Extract) को सतगिलोय, गिलोयसत्व, गिलोय घनवटी इत्यादि नामों से जाना जाता है.
यह सत्व दो प्रकार से बनाया जाता है:
- वनस्पति को पानी में घोलकर जिसे aquous extract या water extract कहते है.
- वनस्पति को किसी साल्वेंट (alcohol, hexane,) में घोलकर, जिसे solvent extract कहते हैं.
Solvent extracts अधिक गुणकारी माने जाते हैं.
क्योकि इनमें वनस्पति के तेल व अन्य अघुलनशील तत्व भी आ जाते हैं, जैसे कि टेनिन इत्यादि.
गिलोय की उपयोग विधि और मात्रा
गिलोय का तना ही मुख्यत: उपयोग होता है.
कुछ योगों में इसकी जड़ या पत्ते भी उपयोग में लाये जाते है.
तने का सत्व, काढ़ा या चूर्ण उपयोग में लिया जाता है.
सत्व के रूप में गिलोय की मात्रा 100mg से लेकर 500mg तक प्रतिदिन लेनी चाहिए.
चूर्ण की मात्रा 2 ग्राम से 10 ग्राम तक, प्रतिदिन लेना लाभकारी होता है.
काढ़े की मात्रा 30ml से 100ml तक ली जाती है.
(काढ़ा बनाने के लिए 200 ग्राम गिलोय को कूट लें और दो लिटर पानी में 15 मिनट तक प्रेशर कुकर में उबाल लें.)
रोग निवारण के लिये अधिक मात्रा का विधान है जबकि टॉनिक के रूप में कम मात्रा का नित्य सेवन करना हितकारी रहता है.
सारशब्द
अमृत तुल्य गिलोय से अनंत लाभ मिलने के कारण ही इसे अमृता कहा गया है.
गिलोय का नित्य उपयोग हमें निरोग रख कई रोगों से बचा सकता है.