धनतेरस का गूढ़ आध्यात्मिक महत्त्व है.
सांसारिक वस्तुएं वैसे ही नष्ट होती रहती हैं, जैसे कि पेन, कॉपी, जूते, चप्पल, कपड़े और हमारा शरीर.
संतजन कहते हैं जब हम अपनी माता या पिता (परमेश्वर) से कुछ नहीं मांगते तो उन्हें फ़िक्र होने लगती है
कि कैसे हमारी संतान हमसे कुछ भी नहीं मांग रही.
वे कहते हैं कि सिमरन करके नही मांगने वाले के प्रभु ऋणी हो जाते हैं.
समय रहते यदि प्रभु के नाम का फिक्स्ड डिपाजिट कर लिया जाये, तो यही एक ऐसी पूँजी है जिसका कभी क्षरण नहीं होता.
देवियों, सज्जनों, ऐसा संतजन कहते हैं जिसमें कोई संशय नहीं हो सकता.
सुनिए, परम आदरणीय भोला जी अंकल का गायन, जो आत्मिक भी है और प्रेरणादायक भी.
गायन पारम्परिक है जिसके शब्द इस प्रकार से हैं:
पायो निधि राम नाम, सकल शांति सुख निधान ।
सिमरन से पीर हरे, काम, क्रोध, मोह जरे,
आनन्द रस अजर झरे, होवे मन पूर्ण काम ॥
पायो निधि . . .
रोम रोम बसत राम, जन जन में लखत राम,
सर्व व्याप्त ब्रह्म राम, सर्व शक्तिमान राम ॥
पायो निधि . . .
ज्ञान ध्यान भजन राम, पाप ताप हरन नाम,
सुविचारित तथ्य एक, आदि अंत राम नाम ॥
पायो निधि . . .
Beautiful, blissful. Thanks
आपकी post हमारी आजकल की मनोदशा पे एक कठोर कुठाराघात है. काश हम जान जाएँ कि केवल प्रभु प्रेम से ही सब काम बनते हैं, संसार से नहीं.
True, and very true
True
True and very nice