खमीरीकृत भारतीय आहार – स्वस्थ पाचन के नायाब उपहार

खमीरीकृत अथवा किण्वित खाद्य पदार्थों का ज्ञान नया नहीं है. चिरकाल से ही खमीरीकृत भारतीय आहार में उपयोग किये जा रहे हैं.

वास्तव में, ये खाद्य पदार्थ और पेय बहुत ही प्राचीन समय से सही तरीके से संसाधित खाद्य उत्पादों में से रहे हैं, जिन्हें कई पीढ़ियों पहले भी हमारे पूर्वज खाते थे.[1]

पुरातत्ववेत्ताओं के अनुसार ऐसे प्रमाण उपलब्ध हैं,

जिनसे पता चलता है कि 7,000 से 8,000 साल पहले भी, इन खाद्य पदार्थों के बारे में हमारे पूर्वजों को पता था. [2]

आयुर्वेद में भी, खमीरीकरण (किण्वन) को दवा तैयार करने की सबसे अच्छी विधियों में से एक बताया गया है.[3]

हमारी शुरुआती सभ्यताओं ने इस प्रक्रिया के माध्यम से रोटी जैसे पकवान से लेकर आसव, अरिष्ट और सुरा भी बनाई.

भारत हमेशा किण्वित खाद्य पदार्थ बनाने में पारंपरिक रूप से समृद्ध रहा है.

देश के लगभग हर राज्य में एक अलग स्थानीय स्वाद के साथ विशेष किण्वित व्यंजन बनाये जाते हैं जो बड़े शौक से खाए जाते हैं.

शोध प्रमाणित करते हैं कि इडली, डोसा और दही जैसे किण्वित खाद्य पदार्थ 700 ई० पू० में भी प्राचीन भारतीयों को पता थे.[4]

दरअसल, हम भारतीय बहुत अधिक विविधता वाले किण्वित खाद्य पदार्थों को खाते हैं और इसलिए,

हमें यह जानकर आश्चर्य नहीं होना चाहिए कि भारतीयों के पेट में अमीर पश्चिमी देशों की तुलना में फायदेमंद बैक्टीरिया अधिक होते हैं.

और हम कई प्रकार के आहारों को आसानी से पचा लेते हैं.

खमीरीकृत भारतीय आहार – विविधता

किण्वित खाद्य पदार्थों के बारे में बात करें तो पूरे भारत में आपके लिए इसकी बहुत बड़ी और अच्छी श्रृंखला उपलब्ध है,

भारत के किण्वित खाद्य पदार्थों को उनकी मूल सामग्री के अनुसार वर्गीकृत किया जाता है, जिससे वे बनाए जाते हैं.

हम यहाँ भारतीय उपमहाद्वीप के कुछ शोध प्रमाणित किण्वित आहार बताने जा रहे हैं जिनमें महत्वपूर्ण औषधीय गुण मिलते हैं.

ये हैं औषधीय गुणों से भरपूर किण्वित आहार:

1 दही और छाछ मठा (Curd and buttermilk)

हालांकि दही की उत्पत्ति प्राचीन काल के नेपाल में हुई बताई जाती है, लेकिन भारत सहित इसे पूरी दुनिया में खाया जाता है.

आंतों को भरपूर फायदे देने वाला दही परंपरागत रूप से दूध के किण्वन से बनाया जाता है, [5]

आपको बताया जाता है कि दस्त अतिसार में दही में केला या ईसबगोल लेने से तुरंत लाभ मिलता है.

ज़ाहिर है, यह दही में उपलब्ध बैक्टीरिया के कारण ही होता है जो दस्तकारी हानिकारक बैक्टीरिया को मार देता है.

छाछ या मठा भी बहुत ही प्रसिद्ध पारंपरिक पेय है जो पूरे उत्तर और मध्य भारत में व्यापक रूप से उपभोग किया जाता है.

राजस्थान, मध्यप्रदेश और गुजरात में तो इसकी उपयोग व्यापकता अधिक देखी जाती है.

दही को मथकर जब मक्खन निकाल लिया जाता है तो बचे हुए तरल को छाछ, लस्सी या मठा कहते है.

chhachh lassi ke gun upyog labh fayde

ये शरीर को ताजगी के साथ ठंडक देने वाला ड्रिंक है जो आपको भरपूर कैल्शियम भी देगा वह भी बिना फैट के.[6]

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गुन्द्रुक (Gundruk)

यह नेपाल का मुख्य आहार है और भारत के भी अरुणाचल प्रदेश एवं सभी गोरखा क्षेत्रों के हर घर में खाया जाता है.

gundruk गूँदरुक

इसमें मुख्य रुप से मूली, शलगम, फूलगोभी, इत्यादि के पत्तों को थोड़ा सुखाकर फिर एक मिट्टी के बरतन में 15-20 दिन रख कर अचार बनाया जाता है. [7, 8]

शोध बताते हैं कि यह पेट की अधिकतर बिमारियों विशेषकर दस्त, अतिसार को ठीक करने में बहुत प्रभावी होता है. [9]

कांजी (Kanji)

ये ड्रिंक काले गाजर, चुकंदर, सरसों के बीज, हींग और पानी से बनती है.

इसे उरद दाल की पकौड़ी या वड़ा (कांजी वड़ा) में या बेसन की बूंदी मिला कर भी परोसा जाता है .

इसके आलावा आप इसे चावल, ओट्स, मल्टिग्रेंस, मूंग दाल और रागी से भी बना सकते हैं.

यह उत्तर भारत के लगभग हर प्रान्त और गली में पाया जाने वाला ड्रिंक है.

इसमें L. casei, L. brevis, L. plantarum, L. fallax, और L. fermentum नामक बैक्टीरिया पाये जाते हैं.

अनाजों के साथ किण्वन प्रक्रिया होने के कारण इस आहार से आपको भरपूर ऊर्जा, डायरिया जैसी पेट की बीमारियों में राहत, आपकी त्वचा का हाइड्रेटेड रहना और वायरल संक्रमण से बचाव जैसे बड़े फायदे जरूर मिलेंगे. [10]

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अपम और उत्पम

ये दक्षिण भारत के पैनकेक पकवान हैं और श्रीलंका में भी ये खूब खाए जाते हैं.

अप्पम उत्तपम appam utpam

इनको चावल और उरद दाल के पेस्ट (बैटर) को किन्डवित करने के बाद तवे पर सेंक कर तैयार करते हैं.

ढोकला (Dhokla)

ढोकला चावल और चने के पेस्ट (बैटर) को किण्वित करने से बनता है.

ढोकला dhokla

यह गुजरात का एक विशेष व्यंजन है जो कि अब लगभग पूरे भारत में सब जगह खाया जाता है.

इडली, वडा और डोसा (Idli and Dosa)

हालांकि आम तौर पर पूरे भारत के लोग इसका खूब आनंद उठाते हैं, किन्तु ये मूल रूप से दक्षिण भारत के खाद्य पदार्थ हैं.

इनको चावल और उरद दाल के पेस्ट (बैटर) को किन्डवित करके पैनकेक की तरह बनाते हैं.

इडली एक सांचे में डाल के स्टीम की जाती है, जबकि डोसा तवे पर सेंक कर बनता है और आम तौर पर स्वादिष्ट साम्भर (दाल में सब्जियाँ मिलाकर बनाया गया पकवान) के साथ खाया जाता है.

राबड़ी (Rabadi)

यह राजस्थान का पारम्परिक किण्वित पकवान है.

बाजरे, ज्वार या मक्की के आटे को जब छाछ में उबालकर पकाते हैं तो यह पकवान राबड़ी के नाम से जाना जाता है.

4-5 घंटे बाद इसमें Bacillus and Micrococcus sp. नामक लाभकारी बैक्टीरिया पनप जाते हैं.

जो पेट को ठंडक और शांति देते हैं.

कुलु या झोल

यह हिमाचल प्रदेश का किण्वित आहार है.

इसे भी राजस्थान की राबड़ी की भांति ही बनाया जाता है. फर्क केवल इतना है कि इसमें गेहूं के आटे या चावल का उपयोग करते हैं.

4-5 घंटे बाद इसमें  Lactobacillus sp. नामक लाभकारी बैक्टीरिया तैयार हो जाते हैं.

जो पेट को ठंडक और शांति देते हैं.

सिंकी (Sinki)

यह उत्तर पूर्वी भारत का पारंपरिक पेय है.

इसे गाजर की कांजी की भांति ही बनाते हैं लेकिन गाजर की जगह मूली (Radish root) उपयोग की जाती है. 

इसमें भी L. casei, L. brevis, L. plantarum, L. fallax, और L. fermentum नामक बैक्टीरिया पाये जाते हैं.

बोरे बासी, पाखला

यह दोनों नाम चावल के खमीरीकरण के उपयोग किये जाते हैं.

छत्तीसगढ़ में बोरे बासी कहते हैं और ओडिशा, बंगाल में पाखला (Odia: ପଖାଳ).

पके हुए चावलों को जब फिर से पानी में भिगो कर रख दिया जाता है तो 8-10 घंटे में इनका खमीरीकरण हो जाता है.

और हलकी सी खटास आ जाती है.

बोरे बासी bore basi

यह इतना प्रभावशाली व्यंजन है कि इसे खाने के बाद लू नहीं लगती और हलकी सी मादकता भी मिलती है.

जिससे शरीर तुरंत उर्जावान हो जाता है.

दहीभात

यह दक्षिण भारत विशेषकर आंध्रप्रदेश, तेलंगाना, कर्णाटक तमिलनाडू और केरल का विशेष व्यंजन है.

रात को चावल पकाने के बाद उसमें दही मिला देते हैं और फिर अगली सुबह या दोपहर को खाते हैं.

यदि आप देखें तो इस व्यंजन में दही और किण्वित चावल दोनों के गुण पाये जाते हैं.

शायद यही कारण है कि दक्षिण भारतीयों के पेट अधिक उत्तर भारतियों से अधिक ताकतवर माने जाते हैं.

कुलचे, भठूरे और किण्वित रोटी

गेहूं के आटे या मैदे को गूंधकर 4 से 8 घंटे के लिये मौसम के हिसाब जब  सामान्य तापमान पर रख दिया जाता है तो हवा के बैक्टीरिया इसका खमीरीकरण कर देते हैं.

जब इसकी रोटियां बनायी जाती हैं तो बैक्टीरिया के प्रभाव से ये कार्बनडाइऑक्साइड के कारण थोड़ी फूल जाती हैं.

इन्हें ही कुलचे या भटूरे, बबरू या फूली रोटी कहा जाता है, जो उत्तर भारत में शौक से खाए जाते हैं.

हालाँकि कुछ जगह तल कर बनायी गई रोटी को भटूरा और ओवन, तंदूर या तवे पर सेकी रोटी को कुलचा कहते हैं.

kulche bhature

दक्षिण भारत में आटे को गूंधते समय उसमें थोड़ा दूध और दही मिलाने की परम्परा है.

जिससे खमीरीकरण जल्दी और बेहतर हो जाता है.

इनका स्वाद भी थोड़ा सा खट्टा हो जाता है.

खामिरिकृत रोटियां, पचने में बेहद हलकी होती हैं.

आयुर्वेद और विज्ञान दोनों ही एकमत हैं कि खमीरयुक्त अनाज ताज़े अनाज से कई गुना बेहतर होते हैं.

साथ ही, इन्हें खाने से कब्ज़ की शिकायत नहीं होती, और गैस अफारा में भी लाभ मिलता है.

अचार

आपने अक्सर सुना होगा कि पेट खराब होने पर नीम्बू के पुराने आचार खाने से तुरंत लाभ मिलता है.

यह तीन कारणों से होता है.

एक तो नीम्बू का आचार  छिलके समेत बनाया जाता है जिस कारण नीम्बू के astringent गुणों का लाभ हमें पाचन में मिल जाता है.

दूसरा बड़ा कारण है कि आचार बनाने से खाद्य सामग्री में लाभकारी बैक्टीरिया पाए जाते हैं जो आपके पाचन को दुरुस्त करने में सहायक होते हैं.

achar अचार
Vegetables pickles without oil

यही नहीं, आचार बनाने से FODMAPs भी विघटित हो जाते हैं और भारी गरिष्ठ आहार भी सुपाच्य बन जाते हैं.

तो याद रखिये, यदि आपको गोभी से गैस अफारा होते हैं तो गोभी का अचार बना कर खाईये, आपको कोई परेशानी नहीं होगी.

और स्वाद भी सामान्य सब्जी से बेहतर लगेगा.

लगभग हर सब्जी का आचार बनाया जा सकता है,

आलू, कचालू से लेकर गोभी, भिन्डी तक का आचार बनाया जा सकता है,

यहाँ तक कि टमाटर जैसी रसेदार फलों और  सब्जियों तक का आचार बनाया जा सकता है,

एक बात और ऐसा नहीं है कि आपको हर आचार तेल दाल कर ही बनाना होता है.

आप चाहें तो आचार बिना तेल के भी बना सकते हैं.

सारशब्द

साक्ष्य आधारित अध्ययनों ने बताया है कि खाद्य पदार्थों का किण्वन हमारी आंत वनस्पति के लिए बहुत अच्छा होता है

और यह हमारे पाचन तंत्र के कामकाज में सुधार करता है.

किण्वित खाद्य पदार्थ हमारे प्रतिरक्षा तंत्र (Immune system) और आंत स्वास्थ्य के लिए आवश्यक फाइबर और खनिजों में समृद्ध होते हैं

हालांकि, शरीर के उचित कामकाज के लिए किन्डवीकृत पदार्थों के बहुत से फायदे हैं,

फिर भी इन्हें बनाते वक़्त अच्छी तरह से स्वच्छता सुनिश्चित करनी चाहिए

ताकि उन्हें उपयोग करने के दौरान किसी भी प्रतिकूल प्रभाव से आप बचे रहें.




12 thoughts on “खमीरीकृत भारतीय आहार – स्वस्थ पाचन के नायाब उपहार”

  1. छाछ और दही का मैने IBS मे उपयोग किया और मुझे बहोत हि फायदा हूआ.
    शर्माजी आपका बहोत आभारी हूँ.
    धन्यवाद. …..

  2. बहुत बहुत धन्यवाद. हम लोगों ने पारम्परिक भोजन छोड़ कर बड़ी गलती की है. आपका लेख आखें खोल देने वाला है. आपका आभार और पुन: धन्यवाद.

  3. जय जय राम काले जी
    आपका मेरा स्नेह काफी पुराना है.
    अतिशय धन्यवाद, आपके आशीर्वाद के लिये.

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