बेल (बिल्व) के औषधीय गुण health benefits of bel in hindi health benefits of bael in hindi

बेल (बिल्व) के शोध प्रमाणित 6 गुण – उपयोग कीजिये, स्वस्थ रहिये

बेल एक अतिविशिष्ट वनौषधि है जिसे आयुर्वेद तो उत्तम मानता ही है, आधुनिक शोध भी बेल (बिल्व) के गुणों से कम प्रभावित नहीं हैं.

आयुर्वेद में बेल के गुणों का उल्लेख इस प्रकार से दिया गया है:

श्रीफलस्तुवरस्तिक्तो ग्राही रूक्शो अग्निपित्तकृत्

वातश्लेष्महरो बल्यो लघुरुश्न्श्च पाचन:

(भावप्रकाश; गुडुच्यादि वर्ग: 13)

अर्थात,

बेल कषाय तथा तिक्त रस युक्त, ग्राही, रूक्ष, अग्निवर्धक, पित्तकारक,

वातकफ़ नाशक, बलकारक, लघु, उष्णवीर्य तथा पाचक होता है.

बेल (बिल्व) की पहचान

बेल एक माध्यम आकर का वृक्ष होता है जिसकी आयुर्वेदिक विशिष्टता भी है और पौराणिक, आध्यात्मिक अहमियत भी.

शाखाओं पर सीधे, मोटे, तीक्ष्ण 2-3cm तक लम्बे कांटे होते हैं.

टहनियों पर पत्ते विषमवर्ती होते हुए प्रत्येक सींक पर तीन तीन पत्रकों से युक्त रहते हैं.

बेलपत्र bel leaf bael leaf

पत्तों का आकार अंडाकार, भालाकार होता है.

बीच का पत्ता अन्य दो से बड़ा होता है.

ऐसी मान्यता है कि बेल पत्र को शिवलिंग पर चढाने से भगवान् शंकर प्रसन्न होते हैं और भक्तों को मनोवांछित फल देते हैं.

फल गोल होते हैं, 7 से 20cm तक के आकार के,

जिनके छिलके देखने में चिकने लेकिन लकड़ी जैसे कठोर होते हैं.

कच्चे रहने पर हरे रंग के , और पकने पर पीले भूरे रंग के हो जाते हैं.

फलों के भीतर छिलके से चिपका हुआ गूदा रहता है जो हलके रक्ताभ नारंगी रंग का होता है.

गूदे के अंदर बिनौले (cotton seed) जैसे मोटे मोटे बीज रहते हैं .

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फलों के अंदर से मंद मंद सुगंध आती है.

जंगली बेल के फल छोटे होते हैं और इनकी कुछ किस्में मादक भी होती हैं.

लेकिन लगाये हुए पेड़ के फल बड़े और अधिक स्वाद वाले होते हैं.

बेल के अन्य नाम

बिल्व के अन्य नाम इस प्रकार हैं:

English name: Wood/Stone apple, Bengal Quince, Indian Quince

Botanical name : Aegle marmelos

संस्कृत : बिल्व, श्रीफल,

बंगाली : सिरफल

मराठी: कवीठ

तमिल: विल्व मारम, विल्वा पज्हम

तेलगु : मरेडू

औषधीय उपयोग

बेल के सभी अंग जैसे जड़, छल, पत्ते, फूल और फल औषधीय उपयोग में लिए जाते हैं.

चूर्ण बनाने के लिए कच्चे फल, कैंडी मुरब्बे के लिए अधपके फल और शरबत के लिए पूरे पके फल उपयोग किये जाते हैं.

पत्तों, जड़ और छाल का उपयोग चूर्ण या क्वाथ बनाने के लिए किया जाता है.

दशमूल में जड़ या ताने की छाल उपयोग की जाती है.

1 पेट रोगों में लाभकारी

आयुर्वेद में बेल का उपयोग पेट के कई रोगों में लाभकारी बताया गया है.

इसे मृदु विरेचक भी बताया गया है और अतिसार रोकने वाला भी.

इसी कारण बेल का उपयोग कब्ज़ निवारण में भी किया जाता है,

IBS संग्रहणी में भी और आतों की सूजन (कोलाइटिस) में भी.

बेल को कोलाइटिस में लाभकारी पाया गया है.

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इसके सेवन से पेट की गैस, अफारा, अतिसार, विवंध, अलसर, सूजन जैसे पेट के समस्त रोगों में लाभ मिलता पाया गया है.

बेल के उपयोग से H. pylori नामक बैक्टीरिया के संक्रमण से भी राहत मिलती पाई गयी है. ( 1, 23)

2 डायबिटीज में उपयोगी

बेल के पत्तों और छल में पाया जाने वाला Umbelliferone नामक एक उत्तम एंटीऑक्सीडेंट माना जाता है.

शायद इसी कारण ही बेल की छाल का उपयोग आयुर्वेद के दशमूल क्वाथ और दशमूलारिष्ट में किया जाता होगा.

Umbelliferone पर हुए शोध बताते हैं कि यह एक उत्तम एंटी ऑक्सीडेंट है

जिसके उपयोग से पैंक्रियास की बीटा कोशिकाओं को नुकसान होने से बचाया जा सकता है.

और जब बीता कोशिकाएँ नष्ट होने से बचने लगेंगी तो डायबिटीज होने या उसके अधिक पनपने से भी बचाव हो जायेगा. (4, 5)

3 ह्रदय रोग रोधी और कोलेस्ट्रॉल नियंत्रक

बेल के पत्ते का उपयोग कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण में लाभकारी रहता है.

शोध प्रमाणित करते हैं कि बेल के पत्तों के सेवन से ह्रदय की धमनियों में कोलेस्ट्रॉल का जमाव (atherosclerosis) को रोका जा सकता है.

पके बेल के चिप्स, शरबत के लिए

इसे कृत्रिम दवाओं के बेहतर विकल्प बताया गया है;

क्योंकि दवाओं के दुष्प्रभाव से किडनी और लिवर का नुकसान हो सकता है लेकिन बेल (बिल्व) के पत्तों में कोई भी ऐसे दुष्प्रभाव नहीं मिलते. (5, 6)

4 थकान रोधी

इंडियन जर्नल ऑफ़ फार्माकोलॉजी के जून, 2012 संस्करण में प्रकाशित एक शोध ने पाया कि बेल के उपयोग से तनाव और थकान के मानकों में कमी आ जाती है.

एक अन्य शोध ने 15 मिनट के ज़बरदस्ती तैरने से उत्पन्न थकान और त्रस्तता को बेल (बिल्व) के सेवन से ठीक होते पाया.

यह शोध जानवरों पर किये गए थे और इनकी प्रमाणिकता अभी मानव मॉडल पर होना बाकी है,

लेकिन निष्कर्ष आयुर्वेद के उस विश्लेषण से सहमत ज़रूर प्रतीत होते हैं जिसमें बेल को वातहर और रसायन बताया गया है (78)

5 लिवर के लिए उत्तम

बेल के पत्ते, छाल और फल लिवर के लिए उत्तम टॉनिक माने जाते हैं.

शोधों ने पाया है कि बेल के नियमित उपयोग से मदिरापान से उत्पन्न लिवर विकारों में लाभ मिलता है.

बेल के शरबत बनाने की प्रक्रिया

यह भी प्रमाण मिले हैं कि बेल (बिल्व) के उपयोग से लिवर में संचित विषतत्व निकल जाते हैं.

बेल (बिल्व) को बेहतरीन मलेरिया रोधी भी पाया गया है. (9, 10, 11)

6 बेहतरीन एंटी ऑक्सीडेंट और कैंसर रोधी गुण

फ्री रेडिकल्स के कारण ही हमारी आयु बढती है और इनकी अत्यधिक अधिकता के कारण कैंसर भी पनप जाया करते हैं.

एंटीऑक्सीडेंटस युक्त आहार हमारे शरीर तंत्र को रोगमुक्त भी रख सकते हैं और जवान भी.

शोधों ने बेल (बिल्व) फल को फ्री रेडिकल्स निस्सारण के लिए अद्भुत माना है.

इसे बेहतरीन एंटीओक्सिडेंट तत्वों युक्त पाया है जो हमें नीरोगी रख लम्बी आयु दे सकते हैं. (12, 13)

बेल (बिल्व) की उपयोग विधियाँ

बेल (बिल्व) का उपयोग कई प्रकार से किया जाता है.

डायबिटीज के लिए, कोलेस्ट्रॉल नियंत्रण या लिवर विकारों में इसके पत्तों या छाल का चूर्ण बना कर या क्वाथ बना कर उपयोग कीजिये.

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बेल (बिल्व) की कैंडी

छाल का क्वाथ सूजन औरजोड़ों की दर्द में किया जा सकता है.

पेट के सब प्रकार के विकारों के लिए बेल (बिल्व) फल का चूर्ण, कैंडी, मुरब्बा और शरबत उपयोग किये जा सकते हैं.

बेल के चूर्ण , मुरब्बा, कैंडी इत्यादि पूरे साल बाज़ार में उपलब्ध रहते हैं.

गर्मियों में ठेले वाले इसके शरबत भी बेचते हैं जहाँ लोग बड़े शौक से इसके ठन्डे शरबत का लुत्फ़ उठाते हैं.





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