आँतों की सूजन (IBD) - लक्षण और इलाज

आँतों की सूजन (IBD) – जानिये क्या हैं लक्षण, किस्में और इलाज

पेट के रोगों में आँतों की सूजन (IBD) अथवा Inflammatory Bowl Desease एक ऐसी बीमारी है जिसे गंभीर और जटिल रोग माना जाता है।

भारत में इस रोग से लगभग 14 लाख लोग ग्रस्त हैं जो इसका इलाज करवा रहे हैं या करवाते हैं।

अनुमान है कि वास्तविक संख्या 4 से 5 गुणा अधिक हो सकती है।

क्योंकि बहुत सारे लोग इसे पेट का सामान्य रोग तब तक समझते रहते हैं जब तक कि समस्या खतरनाक रूप नहीं ले लेती है।

बड़ी आंत में सूजन (IBD) जिसे कई लोग आंतों का चिपकना भी कहते हैं, एक ऐसा रोग है जिसमें शुरू शुरू में पता ही नहीं चलता कि आँतों में सूजन आ गयी है।

रोगी इसे सामान्य उदर रोग, पेट का दर्द, आंव, मरोड़ या खून के दस्त ही समझ लेते है।

कई डॉक्टर भी इसे सामान्य उदर/पेट की इन्फेक्शन समझ लेते हैं और इलाज भी उसी का करने लगते हैं।

जब कुछ माह बाद पता चलता है कि इलाज तो काम ही नहीं कर रहा तब जाकर ध्यान IBD की तरफ जाता है।

वास्तव में यह रोग IBS संग्रहणी का ही एक बिगड़ा हुआ रूप है, लेकिन इसे IBS संग्रहणी नहीं कहा जा सकता।

IBS संग्रहणी पर विस्तृत लेख इस लिंक पर देखिये.

क्या होता है IBS संग्रहणी रोग – लक्षण, कारण और इलाज

आँतों की सूजन (IBD) की किस्में

आँतों की सूजन (IBD) जिसे पेट की सूजन भी कहते हैं, वास्तव में कई अलग अलग रोगों के समूह का नाम है.

इन सभी रोगों को दो प्रमुख रोगों में बाँट सकते हैं,

  1. अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative colitis), और 
  2. क्रोहन रोग (Crohn’s disease)

Inflamatory Bowel Disease

1 अल्सरेटिव कोलाइटिस (Ulcerative colitis)

अर्थात आंत में शोथ (सूजन) होना और घाव होना. इसे संक्षिप्त में UC भी कहा जाता है.

इस रोग में बड़ी आंत (Colon) ही प्रभावित होती है.

और घावों का नुकसान सामान्यत: उपरी सतह (Superficial) पर ही होता है, घाव गहरे नहीं होते.

रोग की तीव्रता और स्थान के हिसाब से अल्सरेटिव कोलाइटिस के कई उपरूप होते हैं (1)

जिनमें से मुख्य इस प्रकार से हैं:

A. अल्सरेटिव प्रोक्टाईटिस (Ulcerative proctitis)

इसमें सूजन केवल गुदा स्थान तक ही सीमित होती है.

इसमें रोगी को गुदाभाग में खुजली, चुभन का भान होता रहता है.

ऐसा भी भान होता रहता है कि शौच आ रहा है लेकिन वास्तव में शौच आता नहीं है.

मल के साथ कभी कभार खून भी आ जाया करता है जिसके बाद कुछ काल तक आंव का प्रकोप हो जाता है

यह अल्सरेटिव कोलाइटिस की सबसे कम तकलीफ देने वाली किस्म मानी जाती है. (2)

B. पैनकोलाइटिस (Pancolitis) या यूनिवर्सल कोलाइटिस

इस रोग में सूजन बड़ी आंत के सभी हिस्सों दायें, बायें, उपरी भाग और गुदाभाग में व्याप्त हो जाती है.

रोगी को मल त्याग में परेशानी होती है.

मल विसर्जन थोडा थोड़ा लेकिन बार बार होता रहता है.

6,7,8 बार भी.

मल के साथ आंव आती है और यदा कदा खून भी आता है.

कईयों को भारी कब्ज़ की शिकायत भी रहती है.

इस रोग में पोषक तत्वों का अवशोषण सही न हो पाने से रोगी का वज़न भी कम होने लगता है. (3)

C. प्रोक्टोसिग्म्यडीटिस (Proctosigmoiditis)

इस रोग में गुदाभाग और आंत के निचले हिस्से में सूजन पायी जाती है.

पेट खाली होते हुए भी ऐसा भान होता है कि शौच आ रहा है.

शौच रोक पाना असंभव हो जाता है.

बार बार मल के साथ खून आना आरम्भ हो जाता है.

पेट के निचले बाएं हिस्से में हल्का हल्का दर्द बना रहता है या फिर मरोड़ भी पड़ते हैं.

बीच में कभी कभी, अतिसार का भी प्रकोप हो जाया करता है. (4)

D. डिस्टल कोलाइटिस (Distal colitis)

जब सूजन का विस्तार गुदाभाग और आंत के बाएं हिस्से को प्रभावित करे तो इस नाम से जाना जाता है.

यह प्रोक्टोसिग्म्यडीटीस का उग्र रूप है.

इसमें आंत के पूरे बाएं हिस्से और गुदाभाग में दर्द बना रहता है जो अक्सर असह्य भी हो जाता है.

भूख कम लगती है, वज़न भी कम होने लगता है.

अतिसार की शिकायत रहने लगती है और मल के साथ खून और आंव का प्रकोप बढ़ जाता है. (5)

E. तीव्र गम्भीर अल्सरेटिव कोलाइटिस (Acute severe ulcerative colitis)

जब रोगी को 10 बार से अधिक मलत्याग होता है तो कोलाइटिस को इस श्रेणी का जाना जाता है.

यह कोलाइटिस का सबसे तीव्र और पीड़ादायी रूप है जिसका विस्तार बड़ी आंत के सभी भागों को प्रभावित करता है.

बार बार मलत्याग होने की दशा में अस्पताल में दाखिल होने की नौबत भी आ जाती है.

रक्त और आंव का प्रकोप भी लगातार बना रहता है.

बुखार रहने लगता है और बार बार के मलत्याग के डर से भूख में भी भारी कमी आ जाती है.

वज़न तेज़ी से गिरने लगता है.

यह कोलाइटिस का सबसे उग्र रूप है जो जानलेवा भी हो सकता है. (6)

आंतो की सूजन (IBD) के सामान्य लक्षण

सभी प्रकार की अल्सरेटिव कोलाइटिस (UC) में नीचे दिये सभी या इनमें से कुछेक लक्षण पाए जाते हैं:

पेट के निचले हिस्से में दर्द बने रहना,

अतिसार रहना, दिन भर में बार बार मल विसर्जन होना,

आँव (Mucus) का प्रकोप

कईयों को कई कई दिन तक मल के साथ खून भी आता रहता है।

कभी कभी वज़न कम होते जाना, लेकिन ये सब में नहीं होता है।

पहले आँखों के नीचे गड्डे दिखते हैं फिर चेहरा भी निस्तेज होता जाता है.

जोड़ों में दर्द, एनीमिया, बुखार और थकान का बने रहना। 

कईयों को विपत्तिजनक बुखार भी होता है.

इस रोग में कभी आप ठीक महसूस करते हैं और कभी रोगी (remission & relapse).

इस रोग को कई बार बवासीर (Piles) समझने की भूल भी हो जाती है.

ऊपर बताये गये लक्षण आंतों की सूजन कमजोरी के केवल सांकेतिक लक्षण हैं।

यह ज़रूरी नहीं कि सब में सभी लक्षण होते हों। 

2 क्रोहन रोग (Crohn’s disease)

संक्षिप्त में इसे CD भी कहा जाता है.

यह बीमारी मुंह से लेकर गुदाद्वार तक, पाचन नली के किसी भी हिस्से या पूरे तंत्र को प्रभावित कर सकती है।

यह छोटी आंत के आखिरी हिस्से में जो बड़ी आंत से जुड़ता है अधिक पायी जाती है।

इसका प्रकोप आंत के कुछ कुछ हिस्सों में पट्टियों (patches) में पाया जाता है.

इस रोग में लक्षण UC से भिन्न हो जाते हैं और आँतों के घाव बहुत गहरे हो जाते हैं.

कई बार इन घावों की गहराई आँतों के मसल्स वाली तह तक भी पहुँच जाती है.

यह आंतो में रुकावट (obstruction) या नासूर (fistulas) भी पैदा कर सकती है।

क्रोहन के रोग के लक्षण भी लगभग UC जैसे ही होते हैं.

लेकिन इसमें जो दर्द होता है वह सुई के चुभने या चिमटे की पकड़ जैसी असह्य पीड़ा देता है.

यह पेट के उपरी, निचले हिस्से में कहीं भी हो सकता है.

इस में विटामिन A, E, K,  B12 और आयरन की कमी हो जाती है;

पैरों जांघों में सूजन हो सकती है,

गुदा में नासूर (fistula) और पेट में गठान (lump) या गठानें  बन सकती हैं.

यह गठाने या तो रुकावट पैदा करती हैं या फिर आँतों में भी नासूर पनप जाते हैं.

आंत की इस रूकावट को strictures कहा जाता है, जिसमें आंत का प्रभावित हिस्सा संकरा (narrow) हो जाता है.

जब ऐसा होता है तो खाना ठीक से आगे बढ़ नहीं पाता, प्रोटीन अवशोषित नहीं हो पाती (protein energy malnutrition) और वज़न कम होने लगता है.

बड़ी आंत की सूजन (IBD) के कारण

वैसे तो आँतों की सूजन (IBD) के कई कारण हो सकते हैं जो नीचे दिए चित्र से समझे जा सकते हैं.

लेकिन सबसे बड़ा कारण हानिकारक दर्द निवारक दवाओं और एंटीबायोटिक्स  का उपयोग ही पाया जाता है।

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दूसरा बड़ा कारण IBS संग्रहणी रोग है जिसमें हानिकारक बैक्टीरिया आँतों को नुक्सान पहुँचाने लगते हैं।

हालांकि IBS संग्रहणी और आंतो की सूजन (IBD) दो अलग अलग रोग होते हैं।

लेकिन अधिकतर मत इसे IBS का ही बिगड़ा हुआ रूप मानते हैं।

अन्य कारणों में इम्यूनिटी, तनाव, अनुवांशिकता, खानपान अनियमितता, प्रदूषित आहार भी मुख्य माने जाते हैं।

आंतों के घाव – पेट के कैंसर का बड़ा कारण

आंतो की सूजन (IBD) के कारण पेट के कैंसर की भी सम्भावना बढ़ जाती है।

यदि रोग 10 साल से अधिक पुराना हो गया हो तो यह सम्भावना 18% तक बढ़ जाती है जिसे आयु का प्रभाव और बढ़ा देता है।

मतलब, यदि आयु 20 से 30 के बीच है तो प्रभाव में 8% और 30 वर्ष के बाद 15% और 50 वर्ष बाद यह खतरा 27% से अधिक और बढ़ सकता है.

यानी 50 वर्ष की आयु में कुल खतरा 43% तक बढ़ जाता है.

बड़ी आंत की सूजन के उपाय

दुर्भाग्यवश आधुनिक औषधि पद्धति में आंतों की कमजोरी (IBD) के उपचार, इलाज केवल अस्थाई राहत (remission) ही दे पाते हैं.

इस पद्धति में corticosteroids तथा/या 5-aminosalicylic acid (5ASA) जैसे mesalamines का उपयोग किया जाता है.

स्टेरॉयडस के अपने दुष्परिणाम रहते हैं, जिस कारण इन्हें लम्बे समय तक नहीं दिया जा सकता.

Mesalamine भी कुछ समय बाद निष्प्रभावी साबित होने लगती हैं.

CD के लिए सर्जरी का भी उपयोग किया जाता है जिसके अपने दुष्प्रभाव होते हैं.

यदि आंतों में एक घाव की रूकावट ऑपरेशन से ठीक की जाती है तो सर्जरी से हुए घावों में कुछ समय बाद दूसरी रूकावट पैदा होने लगती है.

आंतों में सूजन के लिए होम्योपैथिक दवायें भी पूरी कारगर नहीं पाई जाती।

आंतों की सूजन का आयुर्वेदिक इलाज

आयुर्वेद जैसी वैकल्पिक चिकित्सा में इन रोगों का उपचार व्रण नाशक (injury healing) और रोगरोधी योगों (immunity modulators) से किया जाता है, जो कारगर भी होता है और स्थाई भी.

पेट में सूजन की आयुर्वेदिक दवाओं के योगों में ऐसी औषधियों का उपयोग किया जाता है, जो रोग को समूल नाश करने की क्षमता रखती हों।

यदि रोग IBS के कारण पनपा हो तो इसका इलाज IBS संग्रहणी के साथ ही या बाद में किया जाता है, जिसमें कुछ अतिरिक्त उत्पाद दिये जाते हैं जो सूजन और घावों को शीघ्र ठीक करने का काम करते हैं।

IBS संग्रहणी के पूरे इलाज की जानकारी इस लिंक पर देखी जा सकती है.

https://ayurvedcentral.com/product/complete-course-ibs-treatment/

इस रोग में कुछ प्राकृतिक सप्लीमेंट्स का उपयोग करना भी लाभकारी रहता है, जो घावों को जल्दी सही करने और इम्यूनिटी बढ़ाने में सहायक होते हैं।

आँतों की सूजन (IBD) के ठीक होने के बाद भी काफी सजग रहने की ज़रूरत होती है।

इसलिए खानपान और दिनचर्या में उचित नियम रखने चाहिए।




 

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