इस लेख में IBS संग्रहणी, IBD अथवा आंतों की सूजन; और पित्त विकारों की मुख्य औषधियों और सप्लीमेंट्स की सेवन विधि बताई गयी है।
इसमें आपकी समस्यानुसार भेजे गये लगभग सभी उत्पाद सम्मिलित होने चाहिये।
भेजे गये कुछ अन्य उत्पाद जो इस सूची में नहीं है, उनकी सेवन विधि और मात्रा अलग से भेजी जाती है।
आपका दायित्व
यदि आप पहली बार उत्पाद ले रहे हैं, तो आपको अपने सुधार की प्रगति समय समय पर अवश्य बतानी चाहिये, ताकि प्रगति के अनुसार आवश्यक सुधार, बदलाव किये जा सकें।
प्रगति की सूचना समयावधि इस प्रकार से है-
- प्रथम, 7-10 दिन में
- द्वितीय, 15-18 दिन में
- तृतीय, 25-30 दिन में
सूचना, व्हाट्सएप, ईमेल, या फोन पर दे सकते हैं।
सुधार की अनुमानित अवधि
औषधियाँ अपना प्रभाव 8-10 दिन में दिखाना आरंभ कर देती हैं,
अगले कुछ दिनों में आपको इलाज की अपेक्षित अवधि का अनुमान हो जाता है।
औषधियों के अन्य प्रभाव
कुछ औषधियों के अन्य गुण प्रभाव भी दिये गये हैं, जो आपके सामान्य वनस्पति ज्ञान के लिये उपयुक्त हो सकते हैं।
जैसे कि दारूहरिद्रा (Berberis) जिसका उपयोग हम यहाँ पेट आंतों के घावों और सूजन के लिये करते हैं।
लेकिन उसका उपयोग कई अन्य विकारों के लिये भी किया जाता है, जैसे कि मधुमेह (Diabetes), मूत्र तंत्र की इन्फेक्शन, लिवर रोग इत्यादि।
इस प्रकार की जानकारी आपका वनस्पति गुणज्ञान बढ़ाएगी और आशा है, आपका रुझान आयुर्वेद में बढ़ेगा।
1 रेम-आई बी एस (Rem-IBS)
यह IBS की मुख्य औषधि है। जिसका काम पेट को हानिकारक तत्वों से बचाना है।
रेम-आई बी एस (Rem-IBS) बड़ी आंत (Colon) के विकारों जैसे चिपचिपा मल आना, आँव चिकनाई आना, मल थोड़ा थोड़ा करके आना, गुदाभाग का पूर्णतया साफ न होना इत्यादि विकारों में लाभकारी है।
इसके उपयोग से छोटी आँत की इन्फेक्शन (SIBO) में भी पूरा लाभ मिलता है।
यह औषधि हल्की एसिडिटी, पेट की गैस, आफरा, डकार इत्यादि में भी लाभ देती है।
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैपस्यूल भोजन के 10-15 मिनट बाद (प्रातराश/नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन) पानी के साथ, तीन बार प्रतिदिन।
अधिक इन्फेक्शन की स्थिति में इसे हर चार घंटे में लेना चाहिए, तीन दिन तक।
यदि आँव अधिक आती हो तो खुराक की मात्रा एक एक से बढ़ाकर दो दो कैपस्यूल कर देनी चाहिये, जबतक कि सुधार न आ जाये।
बाद में मात्रा घटाई जा सकती है।
रोग ठीक होने के बाद भी इस औषधि को घर पर रखिये।
जब कभी मौसमी बदलाव के कारण पेट की असहजता अनुभव हो तो तीन चार दिन तक इसका सेवन लाभकारी रहता है।
यदा कदा इसके एक या दो कैपस्यूल लेने से तुरन्त राहत मिलती है।
इसे खाली पेट भी लिया जा सकता है।
2 पी बी एफ (PBF)
यह एक Prebiotic सप्लीमेंट है।
सरल शब्दों में, प्रोबायोटिक्स “अच्छे” बैक्टीरिया होते हैं जो आपके शरीर को स्वस्थ रखते हैं,
जबकि प्रीबायोटिक्स ऐसे खाद्य पदार्थ हैं जो उनके (प्रोबायोटिक्स) विकास को बढ़ावा देते हैं।
अथवा इन्हें आप प्रोबायोटिक्स का आहार भी मान सकते हैं।
PBF का कार्य पेट के लाभकारी बैक्टीरीया को बढ़ाना और आंतों को तरावट देना है।
इसके सेवन से आहार को हमारे पाचन तंत्र में गतिशीलता भी मिलती है, जिससे मल विसर्जन (Gut evacuation) क्रिया में सुधार मिलता है।
सेवन मात्रा एवं विधि
PBF की आधा चम्मच मात्रा दही, छाछ या पानी में मिला घोलकर नाश्ते या दोपहर (किसी एक) के भोजन,और रात के खाने के बाद, दो बार दैनिक लीजिये।
यदि यह दिन में दही या मठा के साथ और रात को ठंडे या गुनगुने दूध में लिया जाये तो लाभ अधिक मिलता है।
दूध के साथ इसमें आप रूहअफजा, शहद या शक्कर इत्यादि मिला सकते हैं, जबकि दही छाछ के साथ इसमें काला नमक, भुना जीरा इत्यादि मिला सकते हैं।
कब्ज की स्थिति में रात की सेवन मात्रा दोगुनी अर्थात एक चम्मच भी की जा सकती है।
3 एनाबोल-एन (Anabol-N)
एनाबोल-एन (Anabol-N) एक चयापचय (मेटाबोलिक ) सुधारक योग है, जिसके उपयोग से चयापचय संबंधित कई विकारों में सुधार मिलता है।
इसका उपयोग IBS संग्रहणी, गठियावात, गाउट, यूरिक एसिड, cholesterol में किया जाता है।
पेट के रोगों में सामान्य तौर पर इसका सेवन एक ही बार 45 दिन के लिये किया जाता है।
गठियावात, गाउट, यूरिक एसिड और cholesterol में इसका सेवन लंबी अवधि (2-3 महीने) तक किया जाता है।
यह हल्का पित्त निवारक भी होता है, जिससे पेट की गैस, एसिडिटी, डकार इत्यादि में भी लाभ मिलता है।
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैपस्यूल प्रातराश/नाश्ता के आधे घंटे पहले, और एक कैपस्यूल संध्या सायंकाल समय, 5 से 6 बजे के बीच, पानी के साथ, 2 बार प्रतिदिन।
गठियावात, गाउट, यूरिक एसिड, cholesterol की स्थिति में खुराक दिन में तीन बार लेनी चाहिये,
जिसमें तीसरी खुराक दोपहर भोजन से पहले ले सकते हैं।
4 गट-सी एल आर (Gut-CLR)
आयुर्वेद में पंचकर्म का विधान है, जिससे शरीर का शोधन किया जाता है, यानि विषतत्वों का पंचकर्म द्वारा निकालना।
आजकल के व्यस्त जीवन में पंचकर्म के लिये समय निकालना मुश्किल हो जाता है।
यदि आप गट-सी एल आर (Gut-CLR) द्वारा अपने पेट को सप्ताह में एक बार या महीने में दो बार साफ कर लेते हैं तो आप संचित विषतत्वों का निकास कर कई रोगों से बचे रह सकते हैं।
गट-सी एल आर (Gut-CLR) एक हल्का सौम्य योग है जिसे रेचक, विरेचक या आरेचक (Purgative, Laxative or aperient) की श्रेणी में रखा जा सकता है।
इसके सेवन से बड़ी आँत (Colon) और मलाशय (Rectum) की सफाई करने में आसानी होती है।
खुराक मात्रा एवं विधि
आधा चम्मच सुबह उठते ही, निहार मुहँ गुनगुने गरम पानी के साथ।
जब एक हाजत/मोशन हो जाये, तो एक गिलास पानी और पी लीजिये।
आपको एक मोशन और आना चाहिये।
मोशन के बाद आपको एक या आधा गिलास पानी और पीना है, कि तीसरी बार भी मोशन हो जाये।
दो या तीन मोशन में आपका पेट पूरा साफ हो जाना चाहिये।
इस प्रक्रिया में एक से डेढ़ घंटे का समय लग सकता है।
आपने इस दौरान, कुछ भी ठोस आहार नहीं लेना है। केवल पानी या चाय कॉफी ले सकते हैं।
IBS के इलाज की शुरुआत में इसे एक से तीन दिन तक ले सकते हैं, जबतक कि आपको पेट साफ होने और हलकेपन का अनुभव न हो जाये।
यदि पहली बार ही अच्छे से पेट साफ हो जाता है, फिर आपको दो या तीन दिन तक इसे लेने की आवश्यकता नहीं है।
बाद में इसका उपयोग सप्ताह में एक बार कीजिये।
पुरानी और अधिक कब्ज़ की स्थिति में सेवन मात्रा थोड़ी बढ़ा कर, दिन में दो बार लीजिये, रात को सोते समय और सुबह निहार मुहँ। रात की खुराक ठंडे पानी के साथ भी ले सकते हैं।
5 एसिरेम (Acirem)
एसिरेम (Acirem) एक शक्तिशाली पित्त निवारक योग है।
इसके उपयोग से पुरानी एसिडिटी, आफरा, गैस, खट्टी डकारें (Acid reflux), GERD और अल्सर जैसे विकारों में सहायता मिलती है।
इसका मुख्य संघटक DGL अथवा डीग्लाइसीराइज़िनेटेड लिकोरिस (de-glycyrrhizinated licorice or DGL) है जो संसाधित मुलेठी का घनसत्व (Extract) होता है। DGL को मुलेठी से ग्लाइसीराइज़िन अणु को निकालकर बनाया जाता है।
एसिरेम (Acirem) पेट के यानि पेप्टिक (Peptic) और मुहँ के यानि एफ़्थस (Aphthus) अल्सर के इलाज में मदद करता है।
शोधों के अनुसार एसिरेम (Acirem) में प्रत्युक्त DGL इकलौती ऐसी वनस्पति है, जो बिना किसी साइड इफेक्ट के काम करती है।
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैपस्यूल प्रातराश/नाश्ता, दोपहर और रात के खाने से आधे घंटे पहले, और एक कैपस्यूल सायंकाल 4 से 6 बजे के बीच, पानी के साथ, चार खुराक प्रतिदिन।
सुधार आने पर सेवन मात्रा तीन या दो कैपस्यूल्स प्रतिदिन की जा सकती है।
रोग सही हो जाने के बाद भी इसे घर पर ज़रूर रखिये।
यदा कदा असिडिटी, गैस होने पर इसके एक या दो कैपस्यूल लेने से तुरन्त राहत मिलती है।
6 सोमेलो (Somalo)
सोमेलो (Somalo) के उपयोग से मंद या गतिहीन बड़ी आंत (Colon) की गतिशीलता में सुधार होता है,
कालांतर में मल निकासी नियमित होने में सहायता मिलती है।
इसका उपयोग पुरानी हठी कब्ज के निवारण, मल निष्क्रमण (Bowel evacuation) की अनियमितता के लिये किया जाता है।
इसके उपयोग से भोजन को भारीपन मिलता है, जिसके परिणाम स्वरूप मल विसर्जन आसान और मलाशय पूरा खाली होने में सहायता मिलती है।
इसमें घृतकुमारी (Aloe Vera) का घनसत्व (Extract) उपयोग किया जाता है जिसमें aloe-emodin, aloin, aloesin, emodin, और acemannan जैसे तत्व पाए जाते हैं।
इनमें से aloin की विशेष निधारित मात्रा का उपयोग सोमेलो में किया जाता है जिससे यह अधिक गुणकारी बन जाती है।
खुराक मात्रा एवं विधि
आरंभ में एक कैपस्यूल भोजन के बाद (प्रातराश/नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन) पानी के साथ, तीन बार प्रतिदिन।
कुछ दिनों में, जब सुधार अनुभव होने लगे, तो मात्रा एक कैपस्यूल दिन में दो बार की जा सकती है।
कालांतर में केवल रात को एक या दो कैपस्यूल्स लेने से ही परिणाम मिल जाते हैं।
7 लिवर टॉनिक प्रीमिक्स (Liver tonic premix)
लिवर टॉनिक प्रीमिक्स बेहतरीन चुनिंदा जड़ी बूटियों के घनसत्व (Extracts) से निर्मित गुणकारी योग है,
जिसके उपयोग से लिवर और स्प्लीन (Spleen) को बल मिलता है। (See Composition)
उनकी कार्य कुशलता बढ़ती है। फलस्वरूप, भूख जागृती बढ़ती है और पाचन में सुधार आता है।
क्योंकि यह घनसत्व (Extracts) से निर्मित होता है, इसलिए इसमें नमी पकड़ने की प्रवृत्ति रहती है, जैसे कि कॉफी पाउडर में।
इसलिए उपयोग के बाद इसे खुला नहीं छोड़ना चाहिये, किसी जार इत्यादि में रख सकते हैं।
नमी पकड़ने की स्थिति में यह थोड़ा ढेलेदार या गांठदार हो सकता है, लेकिन इसकी गुणवत्ता में कोई अन्तर नहीं आता है।
इसका स्वाद थोड़ा कड़वा होता है।
चिंता न करें, लिवर को कड़वी वस्तुएं ही पसंद होती हैं। एक दो दिन बाद आपका मन इसे लेते रहने को कहेगा।
सेवन मात्रा एवं विधि
लगभग एक तिहाई या आधा चाय का चम्मच एक कप गरम पानी में अच्छी तरह घोल मिलाकर, इसका रोज़ प्रात:काल खाली पेट, सेवन कीजिये।
लिवर की अधिक खराबी में इसे दिन भर में तीन चार बार भी लिया जा सकता है।
IBS संग्रहणी के इलाज के आरम्भ में इसे फ्री दिया जाता है। बाद में आप इसे 180 रुपए में खरीद सकते है।
8 शलाकी (Boswellia)
शलाकी अथवा बॉसवेलिया (Boswellia) एक ऐसी वनौषधि है, जिसके उपयोग से कई लाभ मिलते हैं।
इसे कुंडुर, सलाई, चित्ता, परांगी, समब्रानी भी कहा जाता है।
शरीर के अंदर की हर आंतरिक सूजन में इससे लाभ मिलता है।
आधुनिक शोध इसे आंतों की सूजन के लिये सर्वोत्तम वनस्पति मानते हैं।
अन्य रोगों में इसका उपयोग पीठ, मांसपेशियों, जोड़ों, कमर की सूजन और दर्द, त्वचा की झुर्रियों के लिये भी किया जाता है।
पुराने जमाने में या देहात में आज भी; प्रसूता महिला को प्रसव के बाद जो लड्डू खिलाए जाते थे, उनमें पाँच प्रकार की गोंद भी मिलाई जाती थी।
उन्हीं पाँच में से एक शलाकी भी होती है।
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैपस्यूल भोजन से पहले या बाद (प्रातराश/नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन) पानी के साथ, तीन बार दैनिक। सुधार आने पर मात्रा दिन में दो बार।
9 दारूहरिद्रा (Berberis)
शलाकी की तरह दारूहल्दी अथवा दारूहरिद्रा (Berberis) भी एक ऐसी वनस्पति है,
जो कई रोगों को सुधारने की क्षमता रखती है।
इसे हम यहाँ आंतों के घाव सुखाने में और सूजन कम करने में उपयोग करते हैं।
आधुनिक शोधों ने इसे मधुमेह के लिये सबसे प्रभावी वनौषधि पाया है।
यह लिवर की परेशानियों, पीलिया में, त्वचा रोगों में, मूत्र प्रणाली विकारों में,
त्वचा रोगों में, गठिया और जोड़ों के दर्द में भी हितकारी जानी जाती है।
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैपस्यूल भोजन से आधा घंटा पहले (प्रातराश/नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन) पानी के साथ, तीन बार दैनिक।
आंतों के रक्तस्राव में सुधार आने पर मात्रा घटा कर दिन में दो बार पर्याप्त रहती है।
10 रेम-आई बी डी (Rem IBD)
रेम-आई बी डी (Rem IBD) का उपयोग आंतों की सूजन में किया जाता है।
विभिन्न वैज्ञानिक शोधों द्वारा इसके सभी घटक तत्व प्रभावकारी पाए गये हैं।
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैप्सूल पानी के साथ, भोजन के 10-15 मिनट बाद, दिन में तीन बार।
यह अपना प्रभाव दिखाने में 10 से 15 दिन तक का समय ले सकती है।
सुधार आने पर इसकी खुराक मात्रा धीरे धीरे घटाई जाती है।
11 कोलरेक्टो (Colrecto)
गुदाभाग यानि मलाशय (Rectum) और मलद्वार (Anus) के कई रोग होते हैं
जिनमें से पाइल्स, फिस्टुला, हेमोरोइड्स, Proctitis और SRUS (Solitary Rectal Ulcer Syndrome) मुख्य माने जाते हैं।
जब मलत्याग सहज रूप से नहीं होता और मलत्याग के बाद गुदाभाग पूरा खाली नहीं होता है, तो ये विकार पनपते हैं।
जब विकार लम्बे समय तक बने रहते हैं तो इन्फेक्शन बड़ी आंत के अंतिम छोर में भी पहुँच जाती है और proctitis जैसे रोग भी हो जाते हैं।
Colrecto (कोलरेक्टो) एक ऐसी औषधि है जो इन सभी रोगों में कारगर रहती है.
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैपस्यूल भोजन के बाद (प्रातराश/नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन) छाछ या पानी के साथ, तीन बार प्रतिदिन।
सेवन काल में मूली, मूली की भाजी और छाछ लेने से अधिक लाभ मिलता है।
विशेष: मल विसर्जन क्रिया में कभी भी अधिक ज़ोर नहीं लगाना चाहिये, और न ही लंबे समय तक बैठना चाहिये।
यदि आप ये नियम पाल लेंगे तो गुदा भाग के रोग होने की संभावना काफी कम हो जाती है।
12 प्युनिका डी एस (Punica DS)
प्युनिका डी एस (Punica DS) का उपयोग आंतों की सूजन (IBD) और उस IBS-D में किया जाता है,
जहां दैनिक मल विसर्जन की आवृत्ति 3-4 बार, या अधिक होती हो।
इसके उपयोग से आंतों को आराम मिलता है, और मरोड़, ऐंठन में सुधार होता है।
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैपस्यूल भोजन के 10-15 मिनट बाद (प्रातराश/नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन) पानी के साथ, तीन बार प्रतिदिन।
मल त्याग आवृति में सुधार आने पर सेवन मात्रा दिन में दो बार या एक बार की जा सकती है।
13 एंज़ीडो (Enzido) enzymes
एंजाईम्स आहार के पोषक तत्वों (nutrients) को पूरा पचाने में सहायता करते हैं, इम्यूनिटी अथवा रोगप्रतिरोधक क्षमता बढ़ाते हैं।
परिणामस्वरूप आप ऊर्जावान अनुभव करते हैं।
एन्ज़ाईम्स पेट के वातावरण को खुशनुमा रख प्रसन्नता संबंधित हॉर्मोन्स, जैसे कि serotonin, dopamine के स्राव (secretion) को बढ़ाते हैं, जिससे हमारी मनोदशा (mood) में सुधार होता है और हम खुशमिजाज़, हल्का, कर्मठ बन पाते हैं।
बाजार में उपलब्ध अधिकतर उत्पादों में दो चार किस्म के enzymes ही होते हैं, क्योंकि एन्ज़ाईम्स काफी महंगे होते हैं।
फलस्वरूप, उनसे आपको पूरा लाभ नहीं मिलता है।
ENZIDO (एंज़ीडो) एक जांचा परखा सम्पूर्ण संतुलित एन्ज़ाईम्स फार्मूला है जिससे बेहतर उत्पाद शायद ही कहीं मिलता हो।
इसमें लगभग हर प्रकार के एन्ज़ाईम्स रहते हैं, जो IBS, IBD, Gastritis से ग्रसित पाचन तंत्र को शक्तिमान बना समग्र लाभ दे सकता है।
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैपस्यूल भोजन के साथ (प्रातराश/नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन), तीन बार प्रतिदिन। चार छह दिन बाद इसे दो बार लेना भी पर्याप्त रहता है।
14 ब्रेंज़िम (Brenzim) एंज़ाईम्स
ब्रेंज़िम (Brenzim) एंजाईम्स और ENZIDO (एंज़ीडो) एंजाईम्स लगभग एक जैसे उत्पाद हैं, केवल घटक मात्रा की शक्ति अलग अलग होती है।
ब्रेंज़िम (Brenzim) एक कम कीमत का उत्पाद है।
एन्ज़ाईम्स पेट के वातावरण को खुशनुमा रख प्रसन्नता संबंधित हॉर्मोन्स, जैसे कि serotonin, dopamine के स्राव (secretion) को बढ़ाते हैं,
जिससे हमारी मनोदशा (mood) में सुधार होता है और हम खुशमिजाज़, हल्का, कर्मठ और ऊर्जावान महसूस कर पाते हैं।
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैपस्यूल भोजन के साथ (प्रातराश/नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन), तीन बार प्रतिदिन।
चार छह दिन बाद इसे दो बार लेना भी पर्याप्त रहता है।
15 अग्निमंथ (Agnimanth)
अग्निमंथ (Agnimanth) का उपयोग दीपन (Anorexia – भूख बढ़ाने) और पाचन (Dyspepsia – अपच) के लिये किया जाता है।
यह पेट की आँव अथवा चिपचिपी चिकनाई में कारगर रहता है, चयापचय में सुधार करने में भी सहायता करता है।
पाचन तंत्र को सुधारने, भूख बढ़ाने, और विषाक्त पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने में कारगर है।
बलगम से उत्पन्न गले एवं फेफड़ों की विकृतियाँ, कोलेस्ट्रॉल और ट्राइग्लिसराइड कंट्रोल करने के लिए भी अग्निमंथ (Agnimanth) लाभकारी रहता है।
सेवन मात्रा एवं विधि
भूख जगाने के लिये:
एक कैपस्यूल भोजन से आधा घंटा पहले (प्रातराश/नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन), तीन बार प्रतिदिन, पानी के साथ।
चार छह दिन बाद इसे दो बार लेना भी पर्याप्त रहता है।
अपच के लिये:
एक कैपस्यूल भोजन के अन्त में (प्रातराश/नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन), तीन बार प्रतिदिन, पानी के साथ।
चार छह दिन बाद इसे दो बार लेना भी पर्याप्त रहता है।
16 अम्लान्ता (Amlanta)
अम्लान्ता (Amlanta) में ऐसी सिद्ध भस्मों का संयोजन है जिसके बारे में आयुर्वेद में लिखा गया है कि इनके उपयोग से पेट की अम्लता वैसे ही नष्ट होती है जैसे एक हाथी सिंहों के झुंड को तितर बितर कर देता है।
तीव्र पित्त विकार और नाभि खिसकने में इसे Acirem के साथ एक पूरक औषधि के रूप में दिया जाता है, जिससे कि रोग सुधार में तेजी लाई जा सके।
नाभि खिसकने के विकार में इसे तीन माह तक अवश्य लेना चाहिये।
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैपस्यूल भोजन के पहले, मध्य या बाद में पानी के साथ, दिन में तीन बार।
सुधार आने पर मात्रा दिन में दो बार की जा सकती है।
17 Curcuma-ES (करक्यूमा ई एस)
Curcuma-ES हल्दी की तीन बेहतरीन प्रजातियों का समायोजन है जिनके आयुर्वेद और विज्ञान दोनों ही गुणगान करते हैं।
इसे आंतों की बीमारियों (IBD) जैसे सूजन, पेट आंत के घाव (अल्सरेटिव कॉलीटिस) में उपयोग किया जाता है।
यह गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल समस्याओं जैसे पित्त विकारों और अल्सर इत्यादि में भी सुधार लाती है।
सेवन मात्रा एवं विधि
आरंभिक काल में इसका एक कैपस्यूल दिन तीन बार भोजन के पहले या बाद में।
सुधार आने पर मात्रा दिन में दो या एक बार कर देना चाहिये।
18 प्रॉबिस प्रोबायोटिक्स (Probis Probiotics)
प्रॉबिस प्रोबायोटिक्स (Probis Probiotics) पाचन स्वास्थ्य के लगभग हर पहलू को कई तरीकों से लाभ पहुंचाते हैं।
इसमें उन सब उत्कृष्ट बैक्टीरीया के स्ट्रेन्स का समायोजन है जो पेट और पेट रोगों से उत्पन्न मानसिक विकारों में लाभकारी जाने जाते हैं।
इसके उपयोग से पाचन मजबूत होता है और आप बार बार के पेट विकारों से बचे रहते हैं।
सामान्यत: इसका उपयोग रोग में सुधार आने के बाद किया जाता है। लेकिन कुछ परिस्थितियों में इसका उपयोग आरंभ में ही सुझा दिया जाता है।
सेवन मात्रा एवं विधि
एक कैपस्यूल भोजन के तुरंत बाद, पानी के साथ, दिन में दो बार। सुधार आने पर मात्रा दिन में एक बार की जा सकती है।
विशेष: पेट में प्रोबायोटिक्स स्थापित होने में थोड़ा समय लेते हैं।
किसी किसी को शुरुआत के कुछ दिनों में हल्की गैस, आफ़रा इत्यादि हो सकते हैं, जो स्वत: ही शांत सही हो जाते हैं। यह प्रॉबिस प्रोबायोटिक्स (Probis Probiotics) के बैक्टीरीया की विभिन्न प्रजातियों का वर्चस्व स्थापित करने का दौर होता है जिनका पेट के उपलब्ध बैक्टीरीया कुछ समय तक प्रतिकार करते हैं।
विविध
यदि एक से अधिक औषधियों के सेवन काल एक ही हैं, तो आप उन्हें एक साथ ले सकते हैं।
औषधियों के कोई भी दुष्प्रभाव नहीं होते हैं। निसंकोच, आप इन्हें अपनी अन्य औषधियों के साथ ले सकते हैं।
आपात स्थिति में कोई भी औषधि किसी भी समय ली जा सकती है, इसके सेवन के लिये समय विशेष की आवश्यकता नहीं है।
Best, thank you
ये बढ़िया है, सब दवाओं की सेवन विधि एक ही जगह दे दी है।