ibs me kya khaye kya nahin

IBS, IBD & Gastritis – Diet Plan in Hindi

आप IBS, IBD और अन्य पेट रोगों के के लिये हमारे उत्पाद उपयोग कर रहे हैं।

ये उत्पाद आपको रोगमुक्ति अवश्य देंगे।

लेकिन औषधि और परहेज़ का स्वास्थ्य के साथ एक गहरा संबंध होता है।

औषधियाँ आपको रोगमुक्ति देती हैं।

और परहेज़ सुनिश्चित करते हैं कि आप रोगमुक्ति के साथ साथ स्वस्थ भी रहें और भविष्य में रोग को पनपने न दें।

IBS के दो तिहाई रोगी पाचन संबंधी दिक्कतों की ही शिकायत करते हैं।

और बहुत सारे IBS रोगियों को इस बात का ज्ञान नहीं होता कि उन्हें आसानी से क्या पचता है और क्या नहीं।

डाईट को लेकर सोशल मीडिया का सहारा लेते हैं, और विरोधावासी सलाहों के जाल में भ्रमित हो जाते हैं।

यहाँ जानिये, आपको क्या लेना है, क्या नहीं।

ध्यान रखिये, यह डाईट प्लान केवल सांकेतिक है, पूरा मार्गदर्शक नहीं। (It is a guideline and Not a  guide)

सुझाए गये आहारों का अवलोकन आपको अपने निजी अनुभव से भी करना है।

डाईट प्लान की पालन अवधि

यह डाईट चार्ट थोड़ी अवधि के लिये है, कि आप यथाशीघ्र पूरी रोगमुक्ति पा सकें।

इसे हमारा लंबे समय तक जारी रखने का इरादा नहीं है।

हम सभी विविध प्रकार के व्यंजन लेकर जीवन का आनंद लेना चाहते हैं।

चिंता न करें, रोग में थोड़ा सुधार आने पर और आपके खाद्य ट्रिगर्स की पहचान करने के बाद; आपको वे तरीके भी बताए जायेंगे, जिनसे आप अपने मनपसंद मुख्य आहार क्रमवार तरीके से लेना आरंभ कर सकते हैं।

आखिरकार, IBS से मुक्ति का सही अर्थ है, कि आप बेरोक टोक अपनी मर्जी के आहार ले पायें।

इस डाईट प्लान को कम वज़न वाले, घटते हुए वज़न वाले, या पोषण संबंधी कमियों वाले रोगियों को लंबे समय के लिये सुझाया भी नहीं जा सकता है। इसलिए इसे केवल अल्पकालिक जानिये।

फिलहाल के लिये, आपको यहाँ सुझाई  गई सुपाच्य और कष्टकारी वस्तुओं का पूरा ध्यान रखना है।

आहार का प्रभाव

प्रत्येक व्यक्ति पर आहार का प्रभाव अलग-अलग होता है।

आहार संबंधी कोई भी एक जैसी मानक सलाह नहीं हो सकती जो सभी के लिए कारगर हो।

IBS रोग की विभिन्न किस्में होने कारण कुछ आहार IBS-D में कष्टकारी हो सकते हैं,

लेकिन वही आहार IBS-C के लिये लाभकारी हो जाते हैं।

उदाहरण के लिये, दूध और घी IBS-D वालों के मल में चिकास, अथवा आँव, अथवा चिकनाई (Mucus) बढ़ा सकते हैं,

लेकिन यही घी और ठंडा दूध कब्ज वाली संग्रहणी (IBS-C) में फायदा पहुंचाकर कब्ज से राहत दिला सकते हैं।

इसलिए इस डाईट चार्ट का आपको स्वत: मूल्यांकन भी करना है कि क्या आपको सुपाच्य लगता है, और क्या नहीं।

यदि आपको किसी वस्तु के लगातार सेवन से कोई असहजता होती है तो उसे छोड़ सकते हैं।

ट्रिगर्स  की पहचान

कुछ खाद्य पदार्थ किसी समय तो सुपाच्य लगते हैं, और वही खाद्य पदार्थ किसी अन्य समय कष्टकारी हो जाते हैं।

ये सब ट्रिगर्स के कारण होता है।

ट्रिगर्स का अर्थ है ऐसे कारक जैसे पर्यावरण, मनोस्थिति, ऊर्जास्तर, रोग इत्यादि जिनके कारण पाचन क्रिया प्रभावित होती हो।

ट्रिगर्स की पहचान करने के लिए

सेवन, लक्षण और संबंधित कारकों (जैसे दैनिक दिनचर्या, तनाव, खराब नींद, दवाएं, आहार से पहले या बाद में खाए गये पदार्थ) के बारे में 2-3 सप्ताह तक डायरी रखना कारगर रहता है।

आहारीय एलर्जी और संवेदनशीलता

भारत में खाद्य एलर्जी (Food Allergy) बहुत कम पाई जाती है,

लेकिन IBS के 65% मरीज़ खाद्य संवेदनशीलता (Food Senstivity or Food Intolerance) से परेशान रहते हैं।

आहार की एलर्जी और संवेदनशीलता में भिन्नता  होती है।

एलर्जी में प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया (Immune Response) होती है, जैसे कि कुछ खाते ही तुरन्त उल्टी, सांस लेने में कठिनाई, त्वचा की तेज़ खुजली, चकते, नाक गले में अवरोध होना इत्यादि,

जबकि खाद्य संवेदनशीलता (Food Intolerance) में प्रतिरक्षा क्रिया नहीं होती। इसमें परिणाम कई घंटे या दिनों के बाद मिलते हैं। पहले कम फिर धीरे धीरे ज्यादा।

आहारीय संवेदनशीलता का मूल्यांकन रक्त परीक्षणों से किया जाता है; लेकिन, ये हमेशा सटीक नहीं होते। शोध भी इन परीक्षणों को कारगर नहीं मानते हैं।

संवेदनशीलता को परखना एक प्रक्रिया है, जिसमें कुछ दिनों से लेकर सप्ताहों, महीनों तक का समय लग सकता है।

इस प्रक्रिया में आहार के सहयोगी कारकों का अध्ययन भी शामिल होता है।

मानसिक प्रभाव (Mindset Effect)

हर इंसान की एक निजी निश्चित मानसिकता होती है।

यह मानसिकता हमारे जीवन के आध्यात्मिक, पारिवारिक, सामाजिक, विवेक और बुद्धि इत्यादि कारक संग्रहों से निर्मित होती है।

इसका प्रभाव हमारे व्यक्तित्व के हर पहलू में झलकता है, हमारी आहारीय पसंद और नापसन्द में भी।

लेकिन सोशल मीडिया के कारण अब हमारी आहारीय मानसिकता काफी तेजी से विचलित होती जा रही है।

सोशल मीडिया की परस्पर विरोधाभासी सलाहों और आधे अधूरे ज्ञानवर्धन के कारण जनसंख्या का एक बड़ा भाग असमंजस की स्थिति में  रहता है, कि क्या खायें क्या नहीं।

इसका एक दूसरा पहलू भी है। जब एक ही सलाह (सही या गलत) अलग अलग सूत्रों से बार बार मिलती है, तो समाज में एक भेड़चाल प्रभाव आने लगता है। जिसे हम बिना किसी विश्लेषण के अपनाने लगते हैं।

परिणामस्वरूप, मन में तीव्र परिभाषाएं निर्मित हो जाती हैं, जैसे कि मैदा बहुत खतरनाक होता है, आंतों में चिपक जाता है, इत्यादि।

आहारीय चेतन अवरोध (Diet mind blocks)

जब कुछ आहारों या खानपान नियमों के प्रति मानसिकता नकारात्मक हो जाती है तो इसे आहारीय चेतन अवरोध (Dietary mental block or Diet Mind Blocks) कहा जाता है।

फिर जब भी कभी हम उन वस्तुओं को खाते हैं तो हमारी पूर्वाग्रही सोच के कारण वे वस्तुएं हजम नहीं हो पाती हैं।

गेहूं के चोकर में फ्रुक्टेन नामक कार्बोहाइड्रेट होता है, जो IBS से पीड़ित लोगों में गैस, डकार, पेट दर्द या दस्त का कारण बन सकता है।

गेहूं की sensitivity में हमें कईयों को गेहूं छोड़कर मैदा ट्राइ करने को कहना पड़ता है। क्योंकि मैदा में चोकर को हटाया गया होता है।

लेकिन उन्हें बड़ा अटपटा लगता है।

फिर जब हम यह बताते हैं कि भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश को छोड़कर सारी दुनिया मैदा ही खाती है,

और हमारी सेना में भी नाश्ते में मैदा ब्रेड दी जाती है, इत्यादि इत्यादि

तब जाकर वे नान, ब्रेड, बन, नूडल्स, पिज्जा खाने को तैयार होते हैं।

दस बारह दिन बाद जब वे मैदा का सकारात्मक प्रभाव अनुभव करते हैं, तब उनकी मैदा मानसिकता बदलती है।

आप में भी ऐसे कई आहारीय मानसिकता प्रभाव हो सकते हैं, जिनसे आपको अवश्य छुटकारा पाना चाहिये।

इसके लिये आपको अगले चरण में अलग से जानकारी भेजी जाती है, जिसका उद्देश्य आहारीय मानसिकता को सकारात्मक बनाना होता है।

यहाँ हम आपको आहारों के लिये बाध्य नहीं करते हैं, आपको इन्हें मानना या न मानना स्वैच्छिक होता है।

अनाज

Food Allergy

यदि आपको गेहूं से दिक्कत होती है, तो दो तीन सप्ताह के लिये इसका उपयोग मत कीजिये।

इसमें वह सब शामिल है, जो गेहूं से बनाए जाते हैं। जैसे बिस्किट्स, केक इत्यादि सब कुछ।

इलाज के दो या तीन सप्ताह बाद आप गेहूं का भुना (Roasted) दलिया ट्राइ कर सकते हैं। हो सकता है, दलिया आपको सुपाच्य लगे।

दलिया में दूध नहीं मिलाना है (क्योंकि कईयों को दूध भी तकलीफ देता है), इसके साथ केवल दाल या सब्ज़ियाँ ही लेनी हैं।

इलाज के एक माह बाद आपको गेहूं लेने के कुछ उपाय बताए जायेंगे। जिन्हें आप क्रमवार तरीके से अपना कर मूल्यांकन कर सकते हैं।

चावल सामान्यत: सुपाच्य होता है।

यदि ऐसा नहीं है तो कुछ सप्ताह के लिये चावल छोड़ देना चाहिये। बाद में इसे फिर से लिया जा सकता है।

चावल को सुपाच्य बनाने के तरीके आपको अगले चरण में बताये जायेंगे।

आपके लिये मिलेट (मोटे अनाज) जिसमें जोवार, बाजरा, कलमी, चेना, कुर्थी (कुलथी), कोंदो, जंगोरा, रागी (लाछमी या मंडुआ), मक्का, किनोआ, अरारोट, जई (Oat) अधिक हितकारी हैं।

जई (Oat) की भांति नाश्ते में मखाना भी एक बेहतरीन विकल्प है। IBS-C में लाभकारी है।

दालें और बीन्स

food intolerance

दालों में मसूर, मूंग, वाल दाल (महाराष्ट्र, गुजरात) सर्वश्रेष्ठ,

तुअर (अरहर), मोठ, लोबिया, बटला, सफेद चना मध्यम सुपाच्य होते हैं।

राजमाह, काला चना, उड़द, सूखे मटर कष्टकारी होते हैं।

छिलका निकली दालें अधिक सुपाच्य होती हैं।

आप छिलका निकली, धुली उड़द, मूंग और चना दाल ट्राइ कर सकते हैं।

सब्ज़ियाँ, सलाद और फल

fruits & vegetables for ibs

सब्जियां, सलाद 

हितकारी

लौकी, करेला, परवल, कुंदरु, हरी फलियाँ (हरी बीन्स), बैंगन, हरी शिमला मिर्च (बेल मिर्च),

गाजर, मूली, शलगम, टिंडा, शक्करकन्दी, ककड़ी, खीरा, आलू, अदरक, सभी सुपाच्य होते हैं।

सभी शाक सुपाच्य होते हैं जैसे कि पालक, चौलाई, बथुआ, मेथी, सरसों का साग।

IBS में सोआ का साग विशेष रूप से लाभदायक होता है।

सलाद में मूली, गाजर, खीरा, ककड़ी का सेवन श्रेयस्कर है

मध्यम

टमाटर पौष्टिक होते हैं, लेकिन IBS के रोग में इन्हें लेने का तरीका बदलना जरूरी होता है।

कभी भी आप टमाटर का उपयोग बिना पकाये न करें। न ही इसका सलाद खायें।

इसे केवल अन्य सामग्री के साथ पका कर ही लें। जिससे ये सुपाच्य हो जाता है।

यही नियम प्याज़ पर भी लागू होता है।

कष्टकारी

लहसुन, हरी मटर, फूलगोभी, पत्ता गोभी, ब्रोकोली, मशरूम, अरबी, कचालू।

कच्चे चुकंदर, प्याज़, लहसुन, पत्ता गोभी और टमाटर का सलाद।

फल

फलों का सेवन भोजन के अन्त में करना चाहिये।

खाली पेट लिये गये मीठे और खट्टे फल पेट को भारी और असहज कर सकते है।

केला और अमरूद खाली पेट लिये जा सकते हैं।

हितकारी फल 

केला, अमरूद, खरबूजा, पपीता, संतरा, मौसम्मी, माल्टा, अनार, काले अंगूर, किवी, अनानास, लोकाट, शहतूत, ताज़े अंजीर दो

मध्यम

आम का सेवन हितकारी भी होता है, अहितकर भी हो सकता है। यदि इसकी शुगर पच जाती तो हितकारी, अन्यथा कष्टकारी।

अपने निजी अनुभव के अनुसार इसे लेने का विचार करें।

ऐसा ही अन्य मीठे फलों के साथ भी है।

आम, चीकू, सीताफल जैसे मीठे फल कम मात्रा में लें।

कष्टकारी

सेब, चेरी, आम, आड़ू, नाशपाती, आलूबुखारा, तरबूज, किशमिश, सूखा आलूबुखारा, खुमानी।

मेवे (Dry fruits)

ibs के लिये ड्राइ fruits Dry Fruits For IBS Patients

मेवे पोषक तत्वों से भरपूर होते हैं और इन से  कई स्वास्थ्य लाभ मिलते हैं। ये विटामिन्स, खनिज, प्रोटीन, और फ़ाइबर से भरपूर होते हैं।

पाचन और मल त्याग की समस्या ठीक होती है। हड्डियां मज़बूत होती हैं।

इनमें हानिकारक संतृप्त वसा (Saturated fat) कम और लाभदायक असंतृप्त वसा (Unsaturated fat) अधिक होती है।

मेवे में आर्जिनिन (arginine) जैसे अमीनो अम्ल भी पाए जाते हैं।

मेवे खाने से ताकत मिलती है और एनर्जी लेवल बढ़ता है।

ब्लड प्रेशर नियंत्रित रहता है और हृदय स्वस्थ रहता है।

इनके सेवन से आन्तरिक सूजन (आंतों की सूजन) कम होती है, कोशिकाओं की क्षति रुकती है।

तनाव कम होता है, नींद की गुणवत्ता में सुधार होता है।

आयुर्वेद में मेवों को शक्तिदायक और सेहत के लिए गुणकारी माना गया है।

मेवे खाने से तीनों दोषों (वात, पित्त, और कफ) को संतुलित रखने में सहायता मिलती है, ऐसा आयुर्वेद का मत है।

IBS, IBD और गैस्ट्राइटिस में रोज़ 25 से 40 ग्राम मेवे खाने चाहिए।

हितकारी ड्राइ फ्रूट्स 

बादाम, अंजीर, अखरोट, छुहारा, काली किशमिश (Black Raisins), मूंगफली, कद्दू बीज, सूरजमुखी बीज, भुनी हुई अलसी, खजूर, बेहतरीन ड्राइ फ्रूट्स होते हैं।

इस लिंक पर जानिये मूंगफली के स्वास्थ्य लाभ। 

कष्टकारी ड्राइ फ्रूट्स 

काजू, किशमिश, पिस्ता, खुमानी, सूखा आलूबुखारा

दूध और डेरी उत्पाद

milk, curd and cheese for ibs patients

लगभग सभी पेट रोगों में दूध कष्टकारी पाया जाता है।

इस कष्ट का मुख्य कारण Lactose नाम का पदार्थ होता है, जो दूध का मुख्य शक्तिदायक घटक होता है।

Lactose पचाने के लिये लैकटेज (Lactase) नामक एन्ज़ाइम की ज़रूरत होती है, जिसका हमारी छोटी आंत में रिसाव होता है।

जब रोग के कारण यह लैकटेज (Lactase) नामक एन्ज़ाइम बन नहीं पाता या कम बनता है, तो हम दूध पचाने में अक्षम हो जाते हैं।

IBS और IBD के रोग में दूध और कष्टदायक हो जाता है। उन्हें इसे लेने से पेट में गैस बढ़ जाती है, दस्त लग जाते हैं। IBS C वालों को इससे कब्ज हो जाती है।

जब 15-20 दिन बाद रोग में सुधार आ जाये तो रात के भोजन के बाद आधा चम्मच PBF प्रीबायोटिक एक गिलास ठंडे दूध में मिला कर 4-5 दिन तक ले कर देखें।

यदि चाहें तो शुरुआत आधा दूध आधा पानी मिला कर भी की जा सकती है।

यदि सब ठीक रहता है तो ऐसे ही रोज रात को दूध लेते रहें, PBF प्रीबायोटिक मिलाकर।

एक माह बाद दूध की नित्य मात्रा धीरे धीरे बढ़ा सकते हैं।

दही और पनीर (Curd & Cheese)

अधिकतर यह होता है कि दूध तो नहीं पचता लेकिन दही, छाछ, पनीर जैसे दूध के उत्पाद सहन हो जाते हैं।

जब दूध का दही बनता है, तो लैक्टोस को बैक्टीरीया लैक्टिक ऐसिड (Lactic Acid) में बदल देते हैं।

अधिकतर लोगों को लैक्टिक ऐसिड (Lactic Acid) पच जाता है, इसलिए उनके लिये दही, पनीर सुपाच्य होते हैं।

एक या दो दिन पुराना दही, जो थोड़ा खट्टा हो गया हो, में अधिक शक्तिशाली बैक्टीरीया पनप जाते हैं।

आप पुराना दही ले सकते हैं या फिर ताजे दही में पुराना दही मिलाकर भी ले सकते हैं।

दूध की संवेदनशीलता धीरे धीरे समाप्त हो सकती है।

नोट:

कभी भी दही और छाछ या मठा खाली पेट नहीं लें, इन्हें भोजन के अन्त में ही लेना चाहिये।

खाली पेट दही या मठा लेने से एसिडिटी और अफारा बढ़ जाते हैं। साथ ही अमाशय के तेज़ाब से दही के लाभकारी बैक्टीरिया नष्ट हो जाते हैं।

दही या मठा के साथ यदि PBF Pre Biotic Supplement मिला लिया जाये तो लाभकारी बैक्टीरिया जल्दी बढ़ते हैं।

दूध के अन्य पौष्टिक विकल्प

आप छिलका निकली सोयाबीन से दूध बना सकते हैं।

ऐसे ही पके ताज़े नारियल का भी दूध बनाया जा सकता है।

छिलका निकले बादाम से भी बढ़िया गुणकारी दूध बना सकते हैं।

इन सभी वैकल्पिक दूध से दही भी बनाया जा सकता है।

मसाले

spices good for ibs

किसी भी आहार को स्वादिष्ट और सुपाच्य बनाने का काम मसाले करते हैं।

IBS और दूसरे पेट रोगों में कुछ मसाले लाभकारी होते हैं और कुछेक कष्ट भी देते हैं।

लाभकारी मसालों से पेट रोगों में राहत भी मिलती है।

लाभकारी मसाले 

धनिया (हरा और सूखा), सौंफ, जीरा, सोआ, बड़ी इलायची, छोटी इलायची, पुदीना, अदरक, सोंठ, हल्दी, मेथी,

कष्टकारी मसाले 

लहसुन, प्याज़, लौंग, जावित्री, जायफल, अजवायन, कलौंजी, अजवायन

एक भ्रांति है कि लहसुन, अजवायन, लौंग इत्यादि गैस को कम करते हैं।

फौरी तौर पर यह सही भी है, लेकिन तासीर गरम होने के कारण ये पित्त को बढ़ा देते हैं,

जिससे IBS और एसिडिटी के लक्षण उग्र हो जाते हैं।

मक्खन, घी और तेल

best Ghee butter and cooking oils for ibs

तेल और घी मक्खन हमारे भोजन का अभिन्न अंग होते हैं।

इनसे हमें ऊर्जा मिलती है और यह भोजन पकाने के काम भी आते हैं।

घी और मक्खन

घी और मक्खन दोनों ही लाभकारी होते हैं, लेकिन रोग ठीक होने तक इन्हें कम मात्रा में ही लेना चाहिये।

यदि आपको दूध से परेशानी होती है, तो आप मक्खन की जगह घी लें क्योंकि इसमें बिल्कुल भी लैक्टोज़ नहीं होती जबकि मक्खन में इसकी थोड़ी सी मात्रा (3% तक) बची रहती है।

घी में ब्यूटिरेट (Butyrate) नामक फैटी एसिड होता है जो पाचन के लिए महत्वपूर्ण होता है। इसमें सूजनरोधी गुण भी होते हैं।

ब्यूटिरेट (Butyrate) बड़ी आंत में कोशिकाओं को पुनर्जीवित करने में सहायता करता है

और उन्हें ऊर्जा प्रदान करता है, जो पाचन और बड़ी आंत के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण है।

घी का एक छोटा चम्मच खाने में अलग से डालें, लाभ मिलेगा।

खाद्य तेल

सर्वोत्तम

मूंगफली, सूरजमुखी, तिल, अलसी, नारियल, जैतून (ऑलिव), कुसुम (safflower) और सरसों के तेल सर्वोत्तम होते हैं।

ये सब कच्ची घानी (Cold Pressed) की विधि से बनाए जाते हैं, जिसमें बीजों को दबाकर निचोड़ा जाता है, और तेल निकाल लिया जाता है।

इस विधि से प्राप्त तेल प्राकृतिक होते हैं। इन्हें बीज से निकालने के लिये न तो कुछ मिलाया जाता है, न ही गरम करके रिफाइन किया जाता है।

मध्यम

मक्का, चावल के छिलके (राइसब्रान), सोयाबीन के तेल सॉलवेन्ट विधि से बनाए जाते हैं, जिसमें इन्हें किसी सॉलवेन्ट (Hexane) में गरम करके निकाला जाता है।

इस प्रक्रिया में इनके पोषक तत्व (असंतृप्त वसा) कुछ हद तक नष्ट हो जाते हैं।

संतृप्त वसा को हानिकारक माना जाता है, जबकि असंतृप्त वसा स्वास्थ्यवर्धक होती है

हानिकारक 

रिफाइन्ड और बलेंडेड तेल शोधों द्वारा स्वास्थ्य के लिये हानिकारक पाए गये हैं, इन्हे लेने से बचिए।

रिफाइन्ड तेल वे होते हैं जिन्हें उच्च तापमान पर गरम करके स्वादहीन बनाया जाता है, और जले हुए भाग को अलग कर दिया जाता है।

इस प्रक्रिया को refining कहा जाता है। सॉलवेन्ट विधि से बनाए अधिकतर तेल रिफाइन्ड भी होते हैं।

बलेंडेड तेल वे होते हैं जिनमें मुख्य तेल में सस्ते, कम गुणकारी तेल मिला कर तैयार किया जाता है।

विविध

मिठाईयां

छेना, रसगुल्ला, रसमलाई, जलेबी, इमरती, सँदेश, श्रीखंड, मिष्टी दोई  का सेवन कम मात्रा में किया जा सकता है।

भोजन के बाद थोड़ा सा डार्क चॉकलेट (with 70-80% cocoa), लेने से पाचन सुधारता है, इसमें लाभकारी (Polyphenols) मिलते हैं।

आप थोड़ी मात्रा में चॉकलेट आइसक्रीम, चॉकलेट केक भी ले सकते हैं।

मांसाहार

मांसाहार में चिकन और मछली ले सकते हैं। इन दोनों को सफेद माँस कहा जाता है, जो हल्का और सुपाच्य होता है।

ये तंदूर, ओवन, एयर फ्रायर में पकाये जा सकते हैं। Stew भी किये जा सकते हैं।

इन्हें केवल लाभकारी मसाले और कम तेल मात्रा में पकाया जाना चाहिये।

ध्यान रहे, इन्हें सादा ही पकायें। तेज़, हानिकारक मिर्च मसाले और अधिक घी तेल से बचें।

अंडे भी पौष्टिक, संतुलित मांसाहार होते है। यदि आपको अंडे कोई दुष्प्रभाव नहीं देते हैं, तो अवश्य ले सकते हैं।

यदि इनके सेवन से आँव, चिकनाई का प्रकोप बढ़ता है, तो फिर इन्हें न लेना ही श्रेयस्कर है।

मदिरापान

लाल रंग की वाइन (Red Wine) आपके लिये उत्तम है। ये काले अंगूरों से बनती है और इसमें लाभदायक Polyphenols पाये जाते हैं।

व्हिस्की, वोदका, जिन, मध्यम होते हैं,

बियर, रम, बकार्डी कष्टकारी होते हैं। IBS में बियर का सेवन न ही करें तो बढ़िया।

ऐल्कहॉल का सेवन सीमित मात्रा में ही करें, अधिक मदिरापान कष्टकारी हो सकता है।

सारशब्द

भोजन से पहले और बाद में मन ही मन ईश्वर का धन्यवाद करना एक बेहतरीन आध्यात्मिक क्रिया है, जो निश्चय ही आपके पाचन में सुधार ला सकती है।

हमेशा भूख से थोड़ा कम भोजन खायें।

नाश्ता, दोपहर और रात का भोजन निश्चित समय पर लेने की आदत डालें।

किसी समय के भोजन में बहुत विलम्ब होने पर स्किप करना ही श्रेयस्कर होता है।

भोजन को धीरे धीरे आराम से, प्रसन्नचित होकर लें, जल्दबाज़ी बिल्कुल नहीं करें।

अच्छी तरह से चबा कर, मुहँ की लार मिलाकर निगला गया भोजन अधिक सुपाच्य हो जाता है।

सकारात्मक रहें, रोग पर अधिक ध्यान न दें।

सोशल मीडिया में प्रचारित भ्रामक नुस्खों पर विवेकपूर्ण निर्णय लें।

रोज़ कुछ समय आत्म चिंतन के लिये निकालिये। रात 8 बजे से सुबह 8 बजे तक मोबाईल, टेलिविज़न से दूर रहिये।

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