खाने के बीच या बाद में पानी

खाने के मध्य और अन्त में पानी पीने का महत्व

आयुर्वेद में पानी अथवा जल पर पूरा एक अनुभाग उपलब्ध है जिसे वारिवर्ग कहा जाता है।

इस वर्ग में पानी की किस्में, पीने के विस्तृत निर्देश; ठंडे गरम जल के प्रभाव, खाने के बीच या बाद में पानी के अनुपान इत्यादि के वर्णन हैं।

ये आयुर्वेदीय निर्देश आपको रोगमुक्त तो रखेंगे ही, साथ ही आपको पानी पीने पर आत्मिक तृप्ति और प्रसन्नता भी देंगे।

क्यों ज़रूरी है पानी पीने का सही तरीका जानना

इस लेख का उद्देश्य सोशल मीडिया पर चल रहे दुष्प्रचार का पटाक्षेप करना है जिसमें बताया जाता है

कि खाने के समय पानी नहीं पीना चाहिये। पानी एक घंटे बाद पीना चाहिए, इत्यादि इत्यादि।

बताया जाता है कि पानी पीने से अग्नि मंद पड़ जाती है।

यह भी कहा जाता है कि शीतल ठंडा पानी हमारी आंतो को सिकोड़ देता है, शरीर में फैट जमने लगता हैं,

नसें सिकुड़ जाती हैं, और ह्रदय की धमनियों में चर्बी कोलेस्ट्रॉल जमने लगती है; वगैरह वगैरह।

परिणाम

ऐसे गलत दुष्प्रचार से भ्रमित हो जाना  स्वाभाविक है।

परिणामस्वरूप लोग खाने के बीच या बाद में पानी पीना बंद कर देते हैं।

मन ठंडा पानी पीने का होता है लेकिन नहीं पीते।

जब इस प्रकार के नियम अपनाये जायेंगे तो लाभ की जगह नुकसान ही होगा। 

IBS संग्रहणी रोग में हम पानी और अन्य पेय लेने के नियम पर उतना ही बल देते हैं जितना कि अन्य नियमों पर। 

खाना खाते समय जल सेवन 

आयुर्वेद में स्पष्ट उल्लेख है:

‘भोजन के समय कुछ भी जल नहीं पीने से अन्न नहीं पचता है

और अधिक जल पीने से भी यही दोष होता है। 

अतैव मनुष्य को चाहिए कि भोजन करते समय में अग्नि बढाने के लिए थोडा थोडा करके (घूँट घूँट भर) बारम्बार जल पिये’

खाली पेट का अम्ल भूख का कारक होता है।

भोजन के आरंभिक पाचन की कारक अमाशय में अम्ल की मात्रा होती है। 

भोजन के अंतराल और अंत में अम्ल का हल्कापान (Dilution)अधिक प्रभावकारी होता है। 

कम अम्लता में पाचक एन्ज़ाइम जैसे कि Amylase और Lipase जो स्टार्च, कार्बोहाइड्रैट और घी तेल को तोड़कर मॉल्टोज़ में परिवर्तित करते हैं, अधिक कुशलता से कार्य करते हैं।

इसलिए भोजन के मध्य यदि आप दो चार घूँट पानी पीते हैं तो लाभ ही लाभ हैं

खाने के साथ और बाद में पानी पीना 

सोशल मीडिया में भोजन के बाद पानी पीने के साइड इफेक्ट बताये जाते हैं। 

कहा जाता है कि खाना खाने के बाद पानी पीने से अग्नि मंद पड़ जाती है। 

पानी एक घंटे बाद ही पानी पीना चाहिए। 

कोई यह नहीं बताता कि खाना खाने के बाद मुहं की लार द्वारा भोजन में मिलाये गये एंजाइम अधिक सक्रिय हो जाते हैं।

इसीलिए स्वाभाविक रूप से आपको खाने के तुरन्त बाद पानी पीने का मन करता है।

हलके तेज़ाब (Diluted acids) अधिक क्रियात्मक (Reactive) होते हैं बजाय कि सघन तेज़ाब (Concentrated acid) के।

इसे कुछ वैज्ञानिक उदाहरण से समझा जा सकता है।

कार, स्कूटर की बैटरी में जब गंधक का तेजाब डाला जाता है तो पहले उसमें पानी में मिलाकर हल्का (Dilute) किया किया जाता है

क्योंकि हल्का ऐसिड ही बैटरी की प्लेटस से क्रिया करके बैटरी को चार्ज कर सकता है, सघन तेजाब से कोई रासायनिक प्रक्रिया नहीं होती और बैटरी चार्ज नहीं हो पाती।

सघन Nitric ऐसिड की  लोहे के साथ कोई क्रिया नहीं होती जब तक कि उसे पतला (Dilute) न किया जाये।

पाचन में अम्ल क्षार सन्तुलन

किसी भी तरल पदार्थ की अम्लता और क्षारीयता को पीएच(pH) पैमाने से नापा जाता है।

पीएच(pH) का मतलब है, हाइड्रोजन की शक्ति (potential of hydrogen)

यह किसी घोल में हाइड्रोजन आयन की सांद्रता/सघनता का माप होता है।

पीएच स्केल 0 से 14 तक होता है।

तेजाब / एसिड का पीएच 0 और 7 के बीच होता है, जबकि क्षार अथवा बेस का पीएच 7 से 14 तक होता है।

एसिड का स्वाद खट्टा होता है, जबकि क्षार का कड़वा।

7 का मतलब है न तेजाब न क्षार; न खट्टा न कड़वा बिल्कुल स्वाद हीन , जैसे पानी।

पेट की अम्लता 

हमारे खाली अमाशय की pH 1.5 के लगभग होती है जिसका मतलब है, तेज़ (Concentrated) तेजाब।

इतने तेज तेजाब में हमारे आमाशय को छोड़ कर कोई भी अन्य अंग बिल्कुल गल सकता है।

जब भोजन और उसके साथ मिली मुहँ की लार अमाशय में पहुँचती है तो इसकी अम्लता घटकर pH 3.5 से 5.0 के बीच पहुँच जाती है।

यदि आप रूखे  सूखे आहार जैसे सूखी सब्जी रोटी, राजस्थान की बैंगन बाटी, पूर्वाञ्चल की लिट्टी चोखा या महाराष्ट्र के बटाटा वडा पाव इत्यादि लेते हैं तो कम घटती है (pH 3.5 से 4.5 तक)

जबकि रसेदार भोजन के साथ यह घटकर pH 4.0 से 5.5 या उससे अधिक तक हो सकती है।

अच्छे पाचन के लिये, आहार की pH 6.0-6.5 तक पहुँच जानी चाहिये जिससे इसकी आगे की यात्रा सुगम हो जाये।  

यदि आप भोजन के साथ या तुरन्त बाद रसभरे फल, पानी, मठा, लस्सी इत्यादि पेय लेंगे तो अम्लता 6.0-6.5 तक पहुँच जाएगी। और पाचन सही से हो पाएगा। 

कितना पानी पीना चाहिये 

आप रूखे  सूखे आहार के साथ अधिक पानी या छाछ पीना चाहेंगे जबकि रसेदार भोजन के साथ कम मात्रा में।

यही है पानी की सही मात्रा! जिसे आयुर्वेद में सहजिच्छा कहा जाता है। 

सार में, पानी उतना पीना चाहिए जितनी आपकी सहज इच्छा हो। आपको तृप्ति मिल जाये।

अमाशय के बाद भोजन छोटी आंत में जाता है जहां लिवर, गॉल ब्लैडर और अग्न्याशय के रस (Juices) इसमें मिलते हैं।

यह सारे के सारे रस क्षारीय होते हैं जो भोजन की बची हुई अम्लता को समाप्त कर क्षारीय कर देते हैं।

हमारी छोटी आंत क्षारीय आहार को ही पचाने में सक्षम होती है।

यदि भोजन में अम्लता रह जाएगी तो फिर हमें अपच जैसी शिकायत हो सकती है।

ठंडा और गर्म पानी

आयुर्वेद और आधुनिक चिकित्सा दोनों में ठन्डे – गरम आहार, पानी और अन्य पेयों पर विस्तृत जानकारी उपलब्ध है.

कहीं भी यह नहीं मिलता कि हमें ठंडा पानी नहीं पीना चाहिए।

ठंडा पानी पीने का मन तभी करेगा जब शरीर अपना पित्त शांत करना चाहता हो। 

गर्मियों में पक्षी, कुत्ते, बिल्लियाँ सभी को ठंडा पानी पसंद होता है तो फिर हमें क्यों नहीं.

ठंडा पानी केवल उन्हें प्रभावित कर सकता है जिनके गले ठन्डे के प्रति संवेदनशील हों अथवा जिन्हें एलर्जी वाले खांसी जुकाम की शिकायत हो.

पानी को आँतों में पहुँचने के लिए अमाशय से होकर जाना पड़ता है.

और अमाशय पानी के तापमान को बढ़ा कर ही आगे भेजता है.

इस प्रक्रिया में अमाशय की दीवारों को ठंडक मिल जाती है और कुछ समय के लिए पित्त तेजाब का बनना भी कम हो जाता है.

फलस्वरूप आपको एसिडिटी से राहत मिल जाती है.

शरीर की रक्त नलियों और कोशिकाओं तक पहुँचने के लिए पानी को पहले आपकी छोटी आंत तक पहुंचना पड़ता है.

और जब तक ठंडा पानी अमाशय में रुकने के बाद आँतों तक पहुँचता है; इसका तापमान शरीर के तापमान तक पहुँच गया होता है.

यह बेबुनियाद और कोरा वहम है कि ठंडा पानी आँतों या रक्त वाहिकाओं तक ठंडा ही पहुँच जाए.

इसी प्रकार,

वसा या फैट को कोशिकाओं तक पहुँचाने का काम Triglycerides करते हैं न कि पानी.

शरीर में चर्बी जमने का सम्बन्ध केवल हमारे मेटाबोलिज्म से होता है न कि ठन्डे गरम पानी से।

गुणकारी जल और सहजिच्छा

आयुर्वेद में उल्लेख है, जो जल अति शीतल, स्वच्छ, गंधरहित हो

जिसका रस पूर्ण रूप से मालूम न पड़ता हो,

शीघ्र प्यास को शांत करने वाला,

लघु तथा ह्रदय के लिए हितकर या ह्रदय को प्रिय हो;

तो उसे प्रशस्त गुणवाला अर्थात उत्तम जल समझना चाहिए।

यहाँ दो बातें ध्यान देने योग्य है.

1 अति शीतल, और

2 ह्रदय को प्रिय

इनसे समाधान हो जाता है कि स्वस्थ व्यक्ति को वही पानी पीना चाहिए जिसे पीने के लिए उसका मन करे।

यदि आप स्वस्थ हैं तो आपका मन करेगा कि ठंडा पानी ही पिया जाये.

आपको बिना मतलब कुनकुना गर्म जल पीने की कोई आवश्यकता नहीं.

हाँ, अत्यंत ठंडी सर्दियों में आपका मन ठंडा पानी पीने को नहीं करेगा, तब ज़रूर सादा या हल्का गर्म पानी लेना चाहिये।

प्यास एक प्राकृतिक क्रिया है

परिश्रम मजदूरी करने वाले खाना खाते ही भरपेट पानी पी लेते हैं.

उन्हें कोई तकलीफ नहीं होती, बल्कि उनका पाचन हमारे पाचन से कहीं अधिक शक्तिशाली होता है।

वे बिलकुल स्वस्थ पाए जाते हैं.

यदि खाना खाने के बीच या बाद में पानी की  इच्छा है, तो जल अवश्य लीजिये।

प्यास हमारी सहज प्रकृति है जिसे अवश्य ही पूरा किया जाना चाहिए.

यदि आप भोजन के साथ सूप या अंत में पानी की जगह छाछ या मठा लेते हैं तो वे भी पानी का ही लाभ देते हैं। 

शीतल जलपान के योग्य जन 

पित्त रोग, मूर्छा, गर्मी, दाह, विष, रक्तविकार, श्रम, मदात्य, भ्रमरोग, वमन जैसे रोग वालों के लिए

और जिनका अन्न पचा हुआ न हो; ऐसे लोगों के लिए शीतल जल पीना हितकर होता है.

शीतल जलपान के निषेध विषय

पसली का दर्द, जुकाम, वातरोग, अफारा, बद्धकोष्ठ (कब्ज़) नवीन ज्वर, अरुचि, श्वास, खांसी, हिचकी के रोगों में ठंडा पानी नहीं पीना चाहिये.

मक्खन, तेल घी इत्यादि गरिष्ठ वस्तुओं के सेवन बाद  शीतल जल नहीं पीना चाहिए।

तले आहार (जैसे समोसा, कचौरी, पकोड़े, मंगोड़े, जलेबी इत्यादि) लेने के बाद भी ठंडा पानी नहीं पीना चाहिये।

ऐसे में या तो गर्म जल लेना चाहिये या फिर आधे घंटे बाद ठंडा जल पीना चाहिये.

थोड़े जलपान के विषय

अरुचि, मन्दाग्नि, ग्रहणी, जुकाम, शोथ, मुखप्रसेक (मुख में पानी भर आना), उदररोग, विशेषकर संग्रहणी रोग में, नेत्रविकार, ज्वर, व्रण (घाव) और मधुमेह (diabetes) में थोडा थोडा करके जल पीना चाहिए.

ऐसे रोगों में एकदम पेट भर पानी पीने से भारीपन और असहजता सहनी पड़ सकती है।

अंशूदक – विशेष गुणकारी जल

जिस जल के ऊपर सारा दिन सूर्य की किरणें पड़ी हों और साड़ी रात चंद्रमा की किरणें पड़ी हों उसे ‘अंशूदक’ कहते हैं.

यह जल स्निग्ध गुणयुक्त, त्रिदोषनाशक, निर्दोष, आन्तरिक्ष जल के समान, बलकारक, रसायन, मेधा के लिए हितकर,

शीतल, लघु तथा अमृत के सामान होता है.

आप इस अंशूदक जल स्वयं तैयार कर सकते हैं।

कांच की बोतल में पानी भर कर पूरा दिन धूप में रखें, फिर रात को भी चांदनी में पड़ा रहने दें।

अगले दिन सुबह फ्रिज में रख लें और उपयोग करें।

यह जल निश्चय ही लाभकारी होता है, ऐसा आयुर्वेद का मत है।

पानी पचने की अवधि

आयुर्वेद में पानी पचने के तीन परिमाण बताये गए हैं, जो इस प्रकार हैं:

अति शीतल जल (Chilled water) एक प्रहर (3 घंटे) में पचता है.

साधारण (सामान्य ) जल दो प्रहर (6 घंटे) में पच जाता है.

औटाकर किंचित गरम जल (shaked water) आधे प्रहर (डेढ़ घंटे) में पचता है।

खड़े और बैठ कर पानी पीना

आयुर्वेद में खड़े होकर पानी पीने के नुक्सान बताये गये हैं.

जबकि विज्ञान में इस बारे में कोई विशेष शोध नहीं हुए हैं.

ऐसे में हमें आयुर्वेद की ही बात माननी चाहिये और बैठ कर पानी पीने के फायदे ही समझने चाहिये।

सारशब्द

गर्मियों में सामान्यत: पानी ठंडा ही पीना चाहिए। यदि आप स्वस्थ हैं तो आपका मन  ठंडा पानी ही पसंद करता है.

सर्दियों में गर्म जल पिया जा सकता है.

भोजन के बीच में दो चार घूँट पानी पी सकते हैं।

भोजन के अंत में इच्छानुसार पानी पीना चाहिए.

पानी उतना पीना चाहिए जो प्यास को बुझा कर तृप्ति दे।

पानी तब पीना चाहिए जब आपका मन करे.

कभी भी एकमुश्त एक दो लिटर पानी इकठ्ठा न पियें।

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